असामी मानुष
चाय और टाइगर ग्लूकोस बिस्किट का नाश्ता अभी अभी खत्म हुआ। नीले बार्डर की गुलाबी सूती धोती वाली औरत खिड़की की तरफ घूम के झोले से सफेद पन्नी निकालती है, पन्नी की गांठ हल्की थी, बार बार खुलनी थी लंबे सफर में। औरत पन्नी से दो हरे पत्ते निकालती है, एक सूखा और एक हरा। सूखे पत्ते पर चूने का टीका लगा कर बर्थ के दूसरे छोर पर बैठे उम्रदराज़ शौहर को पकड़ा देती है। झक्क सफेद बनियान, पाजामा और दाढ़ी वाला शौहर अंगूठे से हथेली पर सूखे पत्ते को खूब रगड़ता है, होंठ में दबा कर बैठे बैठे आंखे बंद कर लेता है।
वो हरे वाले पत्ते में भीगी डली लपेटती है, सूखे हरे पत्ते के टुकड़े के साथ मुंह में धर लेती है। तर्जनी वाली उंगली के पहले पोर से चूना लपेटती है। हरे को चबाते हुए जब जब पोर पे लगे चुने को नीचे वाले दांतों से समेटती है। तब हरा और लाल होता जाता है। वो बारिश के मौसम में ट्रेन की खिड़की से अपने हरे वक़्त को तेज़ी से निकलते हुए देखती रहती है। खिड़की से आती तेज़ हवा उसके सर पर पड़ी ओढ़नी को टिकने नही देती है। वो अड़ी रहती है खिड़की पर ओढ़नी संभालते हुए। ये सफर उसके बाहर देखने का है। उसकी बड़ी होती आंखें ट्रेन की खिड़की से हर वो दृश्य पहचान जाती हैं, जिसे उन्होंने कभी नही देखा।
#monsoondiary
#traindiary
चाय और टाइगर ग्लूकोस बिस्किट का नाश्ता अभी अभी खत्म हुआ। नीले बार्डर की गुलाबी सूती धोती वाली औरत खिड़की की तरफ घूम के झोले से सफेद पन्नी निकालती है, पन्नी की गांठ हल्की थी, बार बार खुलनी थी लंबे सफर में। औरत पन्नी से दो हरे पत्ते निकालती है, एक सूखा और एक हरा। सूखे पत्ते पर चूने का टीका लगा कर बर्थ के दूसरे छोर पर बैठे उम्रदराज़ शौहर को पकड़ा देती है। झक्क सफेद बनियान, पाजामा और दाढ़ी वाला शौहर अंगूठे से हथेली पर सूखे पत्ते को खूब रगड़ता है, होंठ में दबा कर बैठे बैठे आंखे बंद कर लेता है।
वो हरे वाले पत्ते में भीगी डली लपेटती है, सूखे हरे पत्ते के टुकड़े के साथ मुंह में धर लेती है। तर्जनी वाली उंगली के पहले पोर से चूना लपेटती है। हरे को चबाते हुए जब जब पोर पे लगे चुने को नीचे वाले दांतों से समेटती है। तब हरा और लाल होता जाता है। वो बारिश के मौसम में ट्रेन की खिड़की से अपने हरे वक़्त को तेज़ी से निकलते हुए देखती रहती है। खिड़की से आती तेज़ हवा उसके सर पर पड़ी ओढ़नी को टिकने नही देती है। वो अड़ी रहती है खिड़की पर ओढ़नी संभालते हुए। ये सफर उसके बाहर देखने का है। उसकी बड़ी होती आंखें ट्रेन की खिड़की से हर वो दृश्य पहचान जाती हैं, जिसे उन्होंने कभी नही देखा।
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