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गुरुवार, 26 मार्च 2015

    उमीदों से भरा थैला !


बोझिल कन्धों से झूलते हांथों में,
सफ़ेद, लम्बा चौड़ा कागज़ का थैला।
जीवन की फिल्मों से भरे,
थैले का वजन जब जब बढ़ता है,
तो कहीं कुछ कम होता जाता है। 

तमाम विदेशी, देसी डिग्रियों, मेडलों,
अत्याधुनिक मशीनों के आउट कम के साथ,
थैले में सिफारिशें हैं, उम्मीदें हैं,
भविष्य की अनिश्चितताओं का भय भी है। 

थैला,
कभी कागज़ का एक परचा भी रहा होगा,
पर्चे की अनदेखी की परिणीति है यह थैला ?
या किसी हाइली प्रोफेशनल की चूक
कागज के हरे, लाल, पीले टुकड़ों की
कमी भी हो सकती है इसके पीछे। 

स्पाइडर मैं की तरह यह थैला,
दौड़ता रहता है मीलों,
कभी हाँथ में,
कभी लम्बी गाडी की पिछली सीट पर,
कभी व्हील चेयर के हत्थे पर,
कभी स्ट्रेचर के सिरहाने,
कभी जनरल, प्राइवेट वार्ड के बड़ों पर। 

इस थैले पर लिखे नाम से ज्यादा,
केस नंबर का महत्व है,
केस नंबर के नीचे,
केस का टाइप,
और बायोलॉजिकल टर्मिनोलॉजी,
थैले के अंदर केस हिस्ट्री। 

थैले के अंदर रखे दस्तावेज़ों की,
भाषा,बनावट और लिखावट,
जीवन धरा की गति को,
प्रमाणित करती है। 

उन दस्तावेजों को पढ़ना,
सबकी बस की बात नहीं,
और उनमे लिखे को सहना भी।  

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

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