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शनिवार, 30 जून 2018



तुम्हारी यादों के तार
तुम्हारी यादों के सन्दूक से
मुझे कुछ तार मिले
उन सैकड़ों वर्षों से जिये हुए
पलों के तार
उन्हें निकाला,धोया,पोछा
तार चमकने लगे

सैकड़ों वर्षों का जिया
थोड़ा नही होता
याद का सन्दूक जितना बड़ा हो
छोटा पड़ जाता है

तुम्हारे "न" का सम्मान था वो
जिए हुए को मोड़ मोड़ के
रखना पड़ा
एक सन्दूक में

आज सैकड़ों वर्षों बाद
फिर से वो तार चमकें हैं
तार का टूटना जारी है
उन मोड़ों से
जहाँ से मोड़े गए थे।

उस तार का नाम सुना है ?
"संगीत"
जितने टूटे तार
उतना मधुर " संगीत "
तुम्हारा "संगीत" !

तस्वीर - भोपाल के जंगल की

परछाइयाँ 

परछाईं जब सीढ़िया चढ़ती हैं
वो गंतव्य तक पहुँच
किसी जानी पहचानी दीवाल से
सर टकराती हैं
या
वो सीढ़ियों के आखीर से
मिल जाती हैं ।

न जाने क्यों ! 

न जाने क्यों वो मुझे
कोई हिलते हुए कवि दिखते हैं
कभी दाएं, कभी बाएं हाँथ
कुछ लिखते हुए
आसमान से पाताल तक
कमाल कहते कलम से !

कलम की नोक भर स्याही में
डुबोना चाहते ब्रम्हांड को ।


बातों का क्या ! 

आओ चलो, भर दें आकाश बातों से।
अच्छी बातें, बुरी बातें ।



मरने के बाद

मरने के बाद, इंसान
इंसान नही रहता

सबसे पहले उसकी रूह
सफ़ेद होती है
फिर उसकी देंह

फिर उसकी याद
धुएँ सी सफ़ेद

सारा सफ़ेद आसमान में टँग जाता है
धीरे धीरे वो काला होता है

काला भारी कुछ
ढ़ेर सारा बरस जाता है

तीन आम 

आम का बुख़ार कुछ इस तरह चढ़ा मियाँ गुमसुम बाज़ार से दो किलो आम ले आए। आम के मौसम में मियाँ के नथुने ख़ुशबू से रुँधे जा रहे थे। बत्तो रानी की जबरदस्त याद में मियाँ ने बागों में जा जा के बौर तक सूंघे थे। अब आम का मौसम आया तो वो अपनी तंगहाली को रोए ?  बत्तों रानी का शहर आम की ख़ुशबू से बहुत दूर है। 
    मियाँ ने सुन रखा था। प्रकृति दो बहुत दूर हुए दिलों को मिला देती है। मियाँ को एक ही ठेले पर दशहरी के विकृत रूप नज़र आए। मियाँ ने सब दो किलो में तौलवा दिए। कुल तीन बड़े आम। एक कुछ कुछ शंख के आकार का, एक गणेश के आकार का, एक दिल के आकार का। मियाँ की धड़कने तेज़ थीं। मियाँ ने उस शहर की ओर जाने वाली ट्रेन पकड़, शंखाकार आम को शगुन के तौर पर खा लिया। ट्रेन ने रफ़्तार पकड़ी। मियाँ ने आम वाले बैग को कसके अपने सीने में भीच लिया। बैग के ज़िप के छोटे छोटे छेदों से आम महकने के लिए अमादा हुआ जा रहा था। 
   मियाँ के ठीक सामने बैठी एक महिला को मायके में खाए आम की हिचकियाँ आ रही थी । और उसका पति चलती ट्रेन से आम के बागों को निहार रहा था। दोनों में बहुत देर से बात नही हुई थी। मियाँ की नज़र ने आम के खेल को पकड़ लिया था। मियाँ ने एक आम निकाल कर उन दोनों के नज़र कर दिया। 
     मियाँ तीसरे आम पर एकदम सख्त थे मन ही मन। आम की ख़ुशबू अब पूरे कूपे में फैल गयी । मलिहाबाद और आम के किस्से कहानियाँ होने लगे । मियाँ उस एक बचे हुए आम को हरगिज़ खर्च नही करना चाहते थे। पता नही क्यों मियाँ उदास होने लगे। मियाँ के सामने अपने घर से लेकर दूर तक के लोग की फिल्में घूमने लगीं। मियाँ जहाँ जा रहा है वो आख़री आम लेकर । वो शहर बहुत दूर लगने लगा। उसको डर लग रहा था। उस एक बचे हुए आम को पूरे कूपे में बाँटने का मन कर रहा था मियाँ का। मियाँ ने झट से उस आख़री आम को निकाल साइड अपर बर्थ पर बैठे युगल को दे दिया।
      वो आख़री आम दिलाकार था। मियाँ ने आधे रास्ते में ही आम के आकारों को ख़त्म कर दिया । मियाँ गुमसुम अगले स्टेशन पर उतर गए। उन्हें यकीन है, वह ट्रेन, वे लोग उस ख़ुशबू और स्वाद को बत्तों रानी के शहर ले जाएँगे।  उन आमों की गुठलियाँ पेड़ भी बन सकती हैं कहीं रास्ते में। एक उस शहर को जाते हुए, एक शहर से आते हुए। 

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

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