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सोमवार, 25 सितंबर 2023

नासवी !

 


बधाई नासवी ( नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया ) 

अच्छा लग रहा है । इस विशालकाय संस्था को 25 वर्ष के संघर्ष और सफलता की कहानियों को सुनते हुए । संस्था से जुड़े देश भर के लाखों पटरी दुकानदारों  और संस्था के समस्त कर्मनिष्ठों को शुभकामनाएं । 

     प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से नासवी के जुड़े रहने का मौका मुझे भी कई बार मिला । दिन उगने से लेकर शाम ढलने तक रोज कोई न कोई नई चुनौतियों का सामना नासवी कैसे करती है । इसका अंदाजा संस्था के साथ काम करने के बाद ही पता चलता है । 

      कभी लखनऊ में संस्था के द्वारा आयोजित स्ट्रीट फूड फेस्टिवल के वक्त मेरा इस संस्था को जानने पहचाने का मौका मिला। उसके बाद कई महत्वपूर्ण अवसरों पर संस्था के साथ काम करने का अवसर मिला ।  । संस्था को जितना बारीकी से देखो उसकी जड़ें और गहरी महसूस होती है । मास बॉन्डिंग के लिए दिल में उतरना पड़ता है । 

       देश के पटरी दुकानदारों के लिए इतने वृहद स्तर पर काम करने वाली संस्था शायद ही कोई हो । पटरी दुकानदारों के उन्नयन और उनके अधिकारों की लड़ाई का सिलसिला पिछले 25 वर्षों से लगातार चल रहा है । इनमें अनगिनत कहानियां निहित हैं । पटरी दुकानदारों के कानून से लेकर उनके कौशल और आजीविका को मजबूती देना इस संस्था का अर्क है ।

       किसी छोटी सी नगर पालिका से लेकर महानगर कॉरपोरेट तक । सड़क किनारे बैठे , खड़े पटरी दुकानदारों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है ।  उनको देख कर लगता ही नही कि भारत में सड़क की तरफ पक्की दुकानें बढ़ती हैं । मकान बढ़ते हैं । पटरी दुकानदारों के लिए सड़क नही बढ़ती दिखती थी पहले । संस्था ने बड़े ही रणनीतिक तौर पर पटरी दुकानदारों को एकजुट किया । उनकी समस्याओं को सुना । समाधान की संभावनाओं को तलाशा । और उनकी पैरोकारी की ।  

देश के लाखों पटरी दुकानदारों की जुबान पर नासवी एक संघर्ष की दास्तान है । यह उनकी कमाई है । 

संस्था के प्रमुख एवं मजबूत स्तंभ अरबिंद सिंह जी ,  संस्था की बुनकर संगीता जी के साथ संस्था के पदाधिकारी गण , कार्यकर्ता और देश के तमाम पटरी दुकानदारों को बधाई । भविष्य के लिए शुभकामनाएं । 


प्रभात सिंह

बुधवार, 20 सितंबर 2023

हे ईश्वर !



ज ब तुम्हे छोड़ के जाने को होता हूं 

डर लगता है 

डर लगता है उन लम्हों से

जो तुम्हारे बगैर घटने जा रहे होते हैं 

मैं चुपके से आंख बंद करता हूं 

और कुछ बुदबुदाता हूं 

बुदबुदाने को स्पष्ट बताया नही जा सकता

वो हर पल बदल जाता है 

कभी किसी पल 

अपने प्रिय जनों से 

अलविदा कहते अच्छा नही लगता

उन्हें मालूम होता है 

उनका ईश्वर कौन है 

कैसे श्रृंगार , भेष भूषा में 

एक जगह तथस्त दशकों से 

एक ही ईश और बाकी सब

द्वेष , कलेस की बांट जोहते

मेरा ईश्वर और मैं ईश्वर

की संकरी गलियों से होते हुए 

मैं तुम्हे खोज लेता हूं 

मिलते हो शायद अक्सर

रोज़ ही तुम 

फिर भी डर लगता है ! 


गुरुवार, 14 सितंबर 2023

मैं लिखता हूं उम्र !

 मैं लिखता हूं

और बच जाता हूं

उन सवालों से 

जो मुझे मेहनत करने 

को प्रेरित करते हैं । 

मैं खूब लिखता हूं 

सोचता हूं 

बदल दूंगा दुनिया या

चाहर दिवारियों के रंग

मैं लिखता हूं 

जब टूटता हूं 

समाज की जटिल रूपरेखाओं

से थक जाता हूं 

मैं लिखता हूं 

जब मैं कुछ नहीं 

करना चाहता

बैठे बिठाए 

न जाने कौन से कर्म 

या मेहनत को 

मैं लिख रहा होता हूं । 

मैं एक नंबर का 

निठल्ला और झुट्ठा

लेखक हूं 

मुझसे ज्यादा 

थाने का मुंशी

कोर्ट का पेशकार

तहसील का लेखपाल

डाक्टर का पर्चा

और एक छात्र लिखता है ।

मैं लिख कर 

चुनता हूं

सभ्यता और उसके विकास 

को अपनी नजरों में 

तोल लेना चाहता हूं 

मात्र ! 

मैं लिख लिख कर 

मुस्कुराता हूं 

थक जाता हूं 

सो जाता हूं । 

शनिवार, 2 सितंबर 2023

लिखना मेरा काम नहीं !

 


मैं जब लिखने की

कोशिश करता हूं 

पढ़ना याद आता है 

कुछ और कदम बढ़ता हूं

तो लिखना याद है 


मैं न लिख पाता हूं 

न पढ़ पाता हूं 

मैं सोचता हूं 

रोजमर्रा में घट रहे जीवन

मरण की घटनाएं 

न मैं जी पाता हूं 

न मर ही पाता हूं 


मैने देखा है 

पढ़ने लिखने वालों को 

एक क्षण में शब्दों में 

उलझते, डूबते और

डूब जाने को 


वो नही रहते , रहते हैं उनके 

शब्द ताबूत में कील ठोंकते

या उफनादी नदियों के 

वेग में उतराते बच निकलते


जो कह दिया गया

वो खारिज़ हो जाता है 

जो रहता है गहरे मन में 

रोज़ मरने को छोड़

अनकही कहानियों की

पीड़ा को सहता हूं 


मैं मरता हूं

पर आत्महत्या नही करता ।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...