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गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

थकना मना है !

 


मैं

अपने हांथों को तोड़ कर

पीठ दबाने लग जाता हूं

पंजों के ऊपर

मुड़ मुड़ के चूर 

हुए घुटनों के नीचे

जो एक टापू है

उसे निचोड़ता हूं

पैरों को हिलने नहीं देता

कमर से रेंगता बिस्तर पर

गूंथ देता हूं

पैरों को ।

दिन भर दौड़ते भागते

पैरों के निशान

रास्ते नहीं देखते

हाथों में भाव

काठ के हो जाते हैं

काम में देह को

थकना मना है।

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

रिक्त आंगन !

शालू आज जब घर आई तो उसके सर पर गहरे जख्म के निशान थे। रोज़ वो समय से आती थी। पर आज कई घंटे बाद पहुचीं। दरवाज़े पर राह तकते भिन्ना को उसकी साइकिल सबसे पहले दिखी। साइकिल एकदम सधी हुई आ रही थी। शालू के पैर लड़खड़ा रहे थे। शरीर कांप रहा था। पर उसकी लक्कड़ कलाइयों ने साइकिल को मजबूती से थाम रखा था। दरवाज़े के ठीक पहले भिन्ना से बचती हुई वह साइकिल को यूं ही छोड़ भीतर के कमरे में जाकर लेट रहती है। अचेतावस्था में उसे किसी का कहा सुना सुनाई नही दे रहा था। वह सुन्न पड़ी थी बिस्तर पर । सखी रोए जा रही थी । शालू की छाती पर सवार सखी उसको झकजोर रही थी। कि वो उसे बताये उसे इतनी चोटें कैसे आयीं हैं। 

   " मेरा गला घूंट रहा है , कोई है जो मुझे मारे डाल रहा है " शालू की आवाज़ ने मानों एक क्षण में घर की नीवें हिला दीं। उसकी देंह में जबरदस्त ऐंठन से सब और घबरा गए। आनन फानन उसे मोटर साइकिल पर बिठा पास के अस्पताल ले जाया गया। प्राथमिक उपचार के बाद सामान्य बात कह कर डाक्टर ने सबको विदा किया। 

भिन्ना रास्ते भर सोचते आया कि उसकी 17 साल की बेटी इतनी बेसुध कभी नही रही। इधर गाँव में चोरी , डकैती और न जाने कौन कौन से ऐब आ गए हैं कहीं से। रंजिश में सब खून के प्यासे रहते हैं। भिन्ना के लिए रास्ता भारी होता जा रहा था। सखी बीच में ऐंठती बिटिया को लगातार भींचे जा रही थी। उसके सवाल शालू को सुनाई दे रहे थे यह कोई नहीं जानता। उबड़ खाबड़ पगडंडियों पर मोटसाइकिल के पहिए फिसल रहे थे। भिन्ना की लक्कड़ कलाई हैंडल को मजबूती से पकड़े थे। गाँव में घुसते ही " क्या हुआ " , कैसे हुआ ! की बौछारें पड़ने लगीं। भिन्ना को केवल भीतर का कमरा दिख रहा था। वह शालू को पलंग पर लिटा कर सखी से लोबान जलाने को कहता है। सर पर ठंढी पट्टी रखने , पैर सहलाने और प्रार्थना करने की सलाह देकर निकल लेता है। वो उस जगह पहुँचता है जहाँ शालू साइकिल समेत गिरी थी। उस जगह कुछ फूल , मटकी या अन्य टोटकों के सामान बिखरे पड़े थे। बस फिर क्या था , जैसे भिन्ना को कोई राह मिल गयी हो। सीधी सपाट। बस उसे सिर्फ लेकर दौड़ना है। जिसमें वो बहुत माहिर था। भिन्ना यह बात सखी के साथ जल्द से जल्द साझा करना चाहता है। घर के मोहरे से बहुत पहले उसे रोने , चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आने लगीं। घर के भीतर लोबान का धुवाँ भरा हुआ था। शालू कोई और सी लग रही थी। जो शालू की दुश्मन थी। और सखी से एक जान को ले लेने या दे देने पर ऊँची आवाज़ में बहस चल रही थी। शालू की देंह रह रह कर सर्प की तरह ऐंठ रही थी। शालू सबके चेहरे भूल चुकी थी। वह लगातार अपने आस पास अजनबियों के होने पर ऐतराज कर रही थी। उन अजनबियों में केवल उसकी माँ थी और पिता थे। 

 भिन्ना का दिमाग काम करना बंद कर दिया था। लड़की बहुत पीड़ा में उसे महसूस हो रही थी। लेकिन घटनास्थल के दृश्य उसे दूसरी दिशा में धकेल रहे थे। उसके पास अपनी बच्ची को स्वस्थ करने के दो ही उपाय थे। एक पक्के रास्ते पर शहर का अस्पताल और दूसरा कच्चे रास्तों पर कोई तंत्र मंत्र का अड्डा । उसे बिटिया के दांत चबाते जबड़े और रह रह कर ऐंठी देंह पर तरस आ रहा था। उसकी बिटिया क्लास की टॉपर थी। चंचल , हंसमुख, चुलबुली घर आंगन में फुदकती चिड़िया। कॉलेज के सात से आठ घंटों के बाद भी उसमें देर रात माँ का हाँथ बंटाने में हिम्मत रहती। फिर अपनी पढ़ाई की आप ही जिम्मेदारी ! इस बड़ी बेटी के बाद ही भिन्ना के घर औलाद पैदा हुई थी। दो छोटी बहनों और छोटे भाई का लालन पोषण उसकी उम्र के साथ बढ़ा। 

 भिन्ना घर के अंदर बाहर कर रहा था। उसके पास इतने पैसे नही थे कि वो शहर के किसी अच्छे अस्पताल में दिखा सके। उसने धान के बोरे औने पौने बेच कर शहर के डॉक्टर को दिखाना उचित समझा। सखी उसके इस निर्णय से एक दम आश्वस्त थी। 

सुबह घुप्प कोहरे में भिन्ना की मोटरसाइकिल चल पड़ी। बड़े अस्पतालों के नखरे सहते उसके सखी और उनकी बिटिया के तीन दिन गुजर गए। एक कम्बल में अस्पताल के अहाते की रातें पता ही नहीं चली। कभी डॉक्टर की ढूंढ , कभी बेड का इंतज़ार , कभी दवाइयों की कतार में घड़ी की सुइयां मिट गयीं थीं। बिटिया के सर के जख्म भरने लगे थे। दौरे पहले से कुछ कम हुए थे।  मस्तिष्क , हृदय की जांचें सामान्य निकलीं।  फिर भी पांच हज़ार की दवा उन्हें सब कुछ ठीक होने की सांत्वना दे रही थी।

घर का बरामदा धान के बोरों से खाली हो चुका था। बाकी बच्चों को पहले ही मामा के यहां भेज दिया गया था। शालू ठहर गयी थी , सखी मुरझा गयी थी। गाँव का वह छोटा सा घर इससे बड़ा और खाली कभी नही हुआ था। चूल्हा बड़ी मुश्किल से जला। राख पर राख जमा होती रही। 

भिन्ना को अभी भी कुछ खटक रहा था। उसके दिमाग में घटना स्थल का दृश्या चस्पा हो गया था। गाँव गली में उसे जो जैसा बता देता करने लगता। उसकी मोटरसाइकिल और सखी कहीं जाने , दिखाने को तैयार रहती। आज वो गाँव से 70 किलोमीटर दूर आया था। पांच किलो रवा , 10 किलो चीनी , 10 किलो आँटा , 5 लीटर कड़वा तेल और मेवे वह मोटरसाइकिल में बांध के लाया था। दरबार में बिटिया के पहुँचते ही तख्त पर बैठा भीमकाय टीकाधारी झूमने लगता है। भिन्ना दंडवत हो जाता है। सखी काँधे पर हाँथ धर शालू को उस आदमी के नज़दीक ले जाती है। गुफा नुमा काले रंग से पुती उस खोह में सब को झुक के चलना पड़ता। उस आदमी ने शालू की पीठ पर हाँथ फेरा। और भिन्ना को भंडारा करने, नियम संयम रखने और खुद में सुधार करने की दलील दी। अंटी से 1001 की दक्षिणा ढीली करने के बाद उसे बताया गया कि 7 दिन में वह ठीक हो जाएगी। फिर भी भिन्ना और सखी का दिल न माने। नाते रिश्तेदारों ने जितने ठीये बताये थे। भिन्ना उन सभी जगहों पर अपनी बिटिया को ले गया। पर उसकी तबियत में कोई सुधार नहीं। 

  गाँव के एक किनारे बसे कुनबे में केवल भिन्ना ही अपने बच्चों को पढ़ा रहा था। शालू 11 वें में है। उससे छोटी आतू आठवें में पढ़ती है। बाबू पांचवें में पढ़ती है और सबसे छोटा बेटा दूसरी में है। बाप दादा से मिली जमीन का बड़ा सा हिस्सा महाजनी में चला गया। जो भी थोड़े बहुत खेत खुद के और बटाई के से जीवन कट रहा था। शालू पर आई इस बला ने घर की स्थिति डांवाडोल कर दी थी। शालू की तबियत पर उसका हज़ारों रुपया टूट चुका था। वो कर्जदार हो गया था। अब उसकी हिम्मत जवाब देने लगी थी। पूरा घर शालू की देख रेख में व्यस्त रहता। शालू के  मष्तिस्क के साथ साथ उसका शरीर भी सिथिल होने लगा था। 

    रात लगभग खत्म होने को थी। भिन्ना को आंगन के पास किसी के कदमों की आहट सुनाई दी। वो चुपके से उठा और आंगन की तरफ लपका। तब तक कोई मिट्टी की दीवाल फाँद के भाग निकला। पौ फटते ही भिन्ना ने ओस से गीली मिट्टी में कदमों के निशान का पीछा करना शुरू किया। लेकिन वो कुछ  ही दूरी पर ख़त्म हो गए। बड़े बड़े जूतों के निशान उसके दिमाग में जैसे छप गए हों। पूरा दिन वह गाँव घूमा लोगों के पैरों के निशान देखते देखते। गाँव के मध्य सरपंच का घर उससे न चाहते हुए भी छूटा रहा। ऊँची जात के लोगों के घरों में तांक झांक करना भी अपराध होता है। सवाल जवाब तो दूर की बात है। वह बिना किसी से इस घटना की चर्चा किए वापस आ गया। यहाँ तक इस बात का जिक्र उसने सखी से भी नही किया। लेकिन इस घटना को शालू की हालत से जोड़ के देखना भिन्ना को उचित नहीं लगा। इस रात भिन्ना चौकन्ना था। 

सुबह सुबह गाँव में हल्ला हो गया कि सरपंच के 22 साल के लड़के को पुलिस पूंछतांछ के लिए उठा ले गयी है। सरपंच के मोहल्ले में तीन साल की बच्ची के साथ बलात्कार और निर्मम हत्या के संदेह में।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...