कुल पेज दृश्य

सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

घुटन से संवाद

घुटन, बाज भी आओ अब 
तुम्हे पता है ?
तुम जब आजाद होती हो 
तब मैं घुटनों के बल 
तुम्हारा फैलाव देखता हूँ 
महसूस करता हूँ तुम्हारे स्नेह को
तुम कैंसर की तरह
भली कोशिकाओं को निगल जाती हो
कमज़ोर पड़ चुकी रक्त वाहनियों में
तुम्हारा तीव्र संचार
और तुम्हारा अट्ठास
गलाता है मुझे
तुम्हारा चक्रव्यूह
समय, से भी नहीं टूटता
दोस्ती की कोई गुंजाईश
नहीं रख छोड़ी तुमने
दुश्मनी की कोई वजह नहीं
बस सांस को चलने देना
तुम्हारी जीत है
घुटन को जीना
मेरी हार !

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

(कहानी)

ईद इन ड्रीमलैंड

माँ मुझे कुछ पैसे दो, मुझे नए कपड़े खरीदने है... कपड़े ! मगर अभी कुछ दिन पहले ही तो लेकर दिए थे.. माँ मुझे नए कपड़े पेहेन कर ईद में घुमने जाना है, ईद के मौके पर ड्रीम लैंड वाटर पार्क में एक के साथ एक इंट्री फ्री है माँ.. (माँ कुछ बुदबुदाते हुए).. ये ले बस इतने ही हैं.. माँ बस तीन सौ रुपये ?..इस महीने की मेरी पगार भी तो रखी होगी...उसमें से दे दो कुछ... नहीं वो रखे रहने दे, वक़्त जरूरत काम ही आते हैं... तेरे पापा वैसे भी घर में नहीं रहते, पार्टी लेकर अक्सर बाहर जाया करते हैं....और तुझे घुमने की सूझी है.... बस इतने से काम चला.. अमन की आँखें नम हो आई थी.. उसने चाँद रात के ठीक पहले वाले दिन अपनी गुल्लक फोड़ १५०० रुपये निकाल लिए थे...पैसे निकाल के उसने जुबैर को सिटी माल में बुलाया....दोनों ने एक एक नया कपड़ा खरीदा..और ड्रीम लैंड की इंट्री टिकेट भी खरीद लिए....अमन ने चाँद रात के साए तले पल रहे सपनो के बीच, दोस्त के साथ ड्रीम लैंड वाटर पार्क में खूब मस्ती की, चाँद रात में बारिश की बूंदों ने अमन से ईद पर ड्रीम लैंड का सपना भी छीन लिया था...!

बुधवार, 24 जून 2015

*****कटोरा भर नौकरी***


बाज़ार में कुछ नयी सरकारी भर्तियाँ आने वाली हैं , दबे पाँव .... सूचना देने वाले ने कहा है कि किसी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए, वरना हल्ला मच जायेगा. पिछले कई मामले हो-हल्ला के कारण खटाई में पड़ गए थे ..... एक काम करवाने वाले से संपर्क हुआ है, कहता है “ मामला पक्का है, ज्यादा लोगों को मत बताना, केवल सगे सम्बन्धियों के लिए केस हाँथ में लेता हूँ”..... सुनो बेटा, फिर कह रहा हूँ ऐसे मौके बार बार नहीं आते, तुम बस फ़ार्म भर दो, बाकी का सब वो देख लेगा.......जी पापा....लेकिन पैसे ?..
अरे तुम पैसों की चिंता मत करो, कैसे भी जोड़ गाँठ के हो जायेगा. देखो न, द्विवेदी जी ने अपने लड़के को 3 साल पहले 6 देकर काम करवाया था. आज उसके लड़के को 2 साल से नौकरी कर रहा है..दो तीन साल में अदा हो जायेगा उसका पैसा, लेकिन नौकरी तो पक्की है. और शेखर के केस में, उसको नौकरी जरुर नहीं मिली थी लेकिन साल छह महीने में पैसे वापस मिल गए. अब रिस्क तो हर जगह है, नो रिस्क नो गेन!....ठीक है पापा देखता हूँ मैं .
प्रदेश सरकार के विभिन्न विभाग ने भरती विज्ञापन निकलवा कर प्रक्रिया शुरू कर दी...
खैर उसने फार्म भर तो दिया लेकिन उसे ठीक नहीं लग रहा था. अपने दोस्तों, घर के बड़े बुजुर्गों और जानने वालों की राय भी पिता कि सलाह कि लीक पर ही थी.
आज भारती परीक्षा का दिन था, इतवार की छुट्टी के बावजूद शहर की सड़कों पर हजारों की तादात में परीक्षार्थी दिख रहे थे. बसों, ट्रेनों में ठूंस ठूंस के प्रदेश के कोने से लाखों परीक्षार्थी एक अदत नौकरी की चाह में वहाँ आये थे. सड़क किनारे पानी के पाउच वालों, पुदी सब्जी, स्टेशनरी, फोटोस्टेट की दुकानों पर मेला लगा हुआ था. एक दिन पहले से ही शहर के स्टेशन, बस स्टैंड पर गमछा बिछाए, परीक्षा की तैयारी में जुटे थे. सबको परीक्षा में अच्छा लिखने की पड़ी थी.पर उसे परीक्षा के सही लिखने से ज्यादा उसमे कुछ न लिखने से तकलीफ थी. उससे उत्तर पुस्तिका को खाली जमा करने के लिए कहा गया था, जिससे कि उसमे बाद में सही उत्तर भरे जा सकें.
परीक्षा खत्म हो होती है. एक लम्बे युद्ध के बाद, बिना युद्ध के परिणाम की परवाह किये हुए और अगले युद्ध की तैयारी में सभी योद्धा अपने खेमे में चले जाते हैं. वह देर रात तक परीक्षा केंद्र के पास उन हजारों परीक्षार्थियों के संघर्ष और 10 से 5 लाख रुपयों के बारे में सोचता रहा...वह अपनी उत्तर पुस्तिका के हर पन्ने पर लिख कर आया था “मैं नौकरी नहीं खरीदूंगा”.
अरे तुम पैसों की चिंता मत करो, कैसे भी जोड़ गाँठ के हो जायेगा. देखो न, द्विवेदी जी ने अपने लड़के को 3 साल पहले 6 देकर काम करवाया था. आज उसके लड़के को 2 साल से नौकरी कर रहा है..दो तीन साल में अदा हो जायेगा उसका पैसा, लेकिन नौकरी तो पक्की है. और शेखर के केस में, उसको नौकरी जरुर नहीं मिली थी लेकिन साल छह महीने में पैसे वापस मिल गए. अब रिस्क तो हर जगह है, नो रिस्क नो गेन!....ठीक है पापा देखता हूँ मैं .प्रदेश सरकार के विभिन्न विभाग ने भरती विज्ञापन निकलवा कर प्रक्रिया शुरू कर दी...खैर उसने फार्म भर तो दिया लेकिन उसे ठीक नहीं लग रहा था. अपने दोस्तों, घर के बड़े बुजुर्गों और जानने वालों की राय भी पिता कि सलाह कि लीक पर ही थी.आज भारती परीक्षा का दिन था, इतवार की छुट्टी के बावजूद शहर की सड़कों पर हजारों की तादात में परीक्षार्थी दिख रहे थे. बसों, ट्रेनों में ठूंस ठूंस के प्रदेश के कोने से लाखों परीक्षार्थी एक अदत नौकरी की चाह में वहाँ आये थे. सड़क किनारे पानी के पाउच वालों, पुदी सब्जी, स्टेशनरी, फोटोस्टेट की दुकानों पर मेला लगा हुआ था. एक दिन पहले से ही शहर के स्टेशन, बस स्टैंड पर गमछा बिछाए, परीक्षा की तैयारी में जुटे थे. सबको परीक्षा में अच्छा लिखने की पड़ी थी.पर उसे परीक्षा के सही लिखने से ज्यादा उसमे कुछ न लिखने से तकलीफ थी. उससे उत्तर पुस्तिका को खाली जमा करने के लिए कहा गया था, जिससे कि उसमे बाद में सही उत्तर भरे जा सकें.परीक्षा खत्म हो होती है. एक लम्बे युद्ध के बाद, बिना युद्ध के परिणाम की परवाह किये हुए और अगले युद्ध की तैयारी में सभी योद्धा अपने खेमे में चले जाते हैं. वह देर रात तक परीक्षा केंद्र के पास उन हजारों परीक्षार्थियों के संघर्ष और 10 से 5 लाख रुपयों के बारे में सोचता रहा...वह अपनी उत्तर पुस्तिका के हर पन्ने पर लिख कर आया था “मैं नौकरी नहीं खरीदूंगा”.

मंगलवार, 12 मई 2015

अज्ञात !



एक तपती दोपहरी में खेत में काम कर बूढा किसान चिल्लाता है “अरे सुनो क्या कर रही हो वहाँ ?.... कुछ छड बाद वो खेत के दुसरे छोर की तरफ तेज़ी से भागता है, दुसरे छोर पर पहुच एकदम से खड़ा हो जाता है, तेज़ आंधी की तरह ट्रेन पटरी से गुजरती है, कुछ देर पहले मुहं से लेकर पाँव तक साडी से ढकी एक आकृति अचानक ट्रेन के साथ उसी वेग से उड़ने लगती है.. उस आकृति की हरी साडी मानो ट्रेन को बिना रुके दौड़ने को कह रही हो, किसान पत्थर हो जाता है, लेकिन उसकी आँखे, ह्रदय उस हरी साडी का दूर तक पीछाकरती हैं, अचानक वह पत्थर से मोम हो जाता है... फिर वह अपने घर की तरफ उसी रफ़्तार से दौड़ने लगता है, घर में चौके में बैठी अपनी सयानी बेटी से जा लिपटता है उसका शरीर काँप रहा है उसका खून पटरियों पर पड़ा सुख रहा है...और ह्रदय गति ट्रेन का पीछा कर रही है.... पड़ोस के ही किसी घर में भी मातम जैसा माहौल है....शाम को सूचना पाकर दरयाफ्त के लिए निकटवर्ती थाने की पुलिस गाँव में आती है, पुलिस को न ही किसी के गुमशुदा होने की और न ही किसी क्षति के सुबूत मिलते हैं... पुलिस वापस चली जाती है...देर शाम पास के ही सीमा रहित रेल फाटक पर बने केबिन में अज्ञात के ट्रेन के निचे आने का मेमो भरा जाता है....

रविवार, 12 अप्रैल 2015

खेत नहीं उम्मीदों के आसमान बोये थे
घर के चूल्हे से कुछ राख बचा कर
बच्चों की भूख के निवाले चुरा कर
छप्पर से टपकती ओस ओढ़ कर 
सर्द सुबहों की कातिल बाहें मरोड़ कर
मैंने
खेत नहीं, उम्मीदों के आसमान बोये थे
देह पर उम्र की सिलवटें गोद कर
पसीने की शक्ल में लहू निचोड़ कर
खोखली हड्डियों से पत्थरों को तोड़ कर
ख्वाहिशों को कहीं हाशिये पर छोड़ कर
मैंने
खेत नहीं, भरे पेट के इन्तेजाम बोये थे
बच्चों की अच्छी पढाई देख कर
बिटिया की मेहँदी की रचाई देख कर
पत्नी की बिमारी की पीड देख कर
परिवार की बेहतर भलाई देख कर
मैंने
खेत नहीं, जीवन से भरे सपने बोये थे
बेमौसम मौसम का कहर देख कर
कच्ची फसल की टूटी कमर देख कर
मिटटी से मिलते लहू का मंजर देख कर
उम्मीदों के आसमान का बंजर देख कर
मैंने
खेत नहीं, आंसुओं के समंदर बोये थे
थमती साँसों पर मुआवजे के दाने देख कर
बिलखती दरों पर सफ़ेद पोशाक देख कर
सन्नाटों को चीरती रफ़्तार देख कर
गर्दनों से रस्सियों के निशान देख कर
मैंने
खेत नहीं, मौतों के बीज बोये थे
खेत नहीं उम्मीदों के आसमान बोये थे 

उत्तर भारत में बेमौसम बरसात से चौपट हुयी फसलों से आहत किसान का दर्द 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

मेरी बातों से तू इत्तेफाक न रख
दर्द को न सहला, न दे जिन्दगी मुझे
सम्भलने का अब जमाना नहीं रहा
वो हांसिल मुझे दे बड़े एहतराम से
उम्र तराश दी जिस मुकाम के लिए

मैं अपित्र हूँ 


मत छुओ मुझे !
हो सके तो
मेरी परछाहीं से भी
नफरत करो
मैं अछूत हूँ
अपवित्र हूँ !
न जाने
किस धुन में
मैं तुम्हारे केंद्र से
छटक के दूर हो गया !
यहाँ सैकड़ों मील दूर
जब तुमको याद करके
आवाज देता हूँ
तो तुम्हारी नम आँखों में
रेगिस्तान की खरखरी
रेत दिखाई देती है !
मैं भटक गया हूँ
तुम्हारे विश्वास के हाइवे से
कोरे पन्नों पर लिखी
भविष्य की तदबीरों से !
उस राह पर घना पीपल का पेड़
और एक फूल
अब भी ताज़ा होंगे
यहाँ छल और विश्वासघात
के रेतीले बवंडर हैं
सूखी तपती रेत
शरीर की नमी को
सोख रही है !

गुरुवार, 26 मार्च 2015

    उमीदों से भरा थैला !


बोझिल कन्धों से झूलते हांथों में,
सफ़ेद, लम्बा चौड़ा कागज़ का थैला।
जीवन की फिल्मों से भरे,
थैले का वजन जब जब बढ़ता है,
तो कहीं कुछ कम होता जाता है। 

तमाम विदेशी, देसी डिग्रियों, मेडलों,
अत्याधुनिक मशीनों के आउट कम के साथ,
थैले में सिफारिशें हैं, उम्मीदें हैं,
भविष्य की अनिश्चितताओं का भय भी है। 

थैला,
कभी कागज़ का एक परचा भी रहा होगा,
पर्चे की अनदेखी की परिणीति है यह थैला ?
या किसी हाइली प्रोफेशनल की चूक
कागज के हरे, लाल, पीले टुकड़ों की
कमी भी हो सकती है इसके पीछे। 

स्पाइडर मैं की तरह यह थैला,
दौड़ता रहता है मीलों,
कभी हाँथ में,
कभी लम्बी गाडी की पिछली सीट पर,
कभी व्हील चेयर के हत्थे पर,
कभी स्ट्रेचर के सिरहाने,
कभी जनरल, प्राइवेट वार्ड के बड़ों पर। 

इस थैले पर लिखे नाम से ज्यादा,
केस नंबर का महत्व है,
केस नंबर के नीचे,
केस का टाइप,
और बायोलॉजिकल टर्मिनोलॉजी,
थैले के अंदर केस हिस्ट्री। 

थैले के अंदर रखे दस्तावेज़ों की,
भाषा,बनावट और लिखावट,
जीवन धरा की गति को,
प्रमाणित करती है। 

उन दस्तावेजों को पढ़ना,
सबकी बस की बात नहीं,
और उनमे लिखे को सहना भी।  

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...