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बुधवार, 13 अगस्त 2014

भूख और प्रेम की बनती नहीं अक्सर,
प्रेम होता है तो भूख नहीं,
भूख लगती है तो प्रेम नहीं,
दोनों का एक साथ होना,
संशय पैदा करता है,
संशय प्रेम का, संशय भूख का।
पेट और दिल के बीच  स्वास नली,
दोनों के बीच झूलती रहती है,
आकार  में पेट दिल से बड़ा है,
फिर भी दिल बाते बड़ी बड़ी करता है,
पेट में मुट्ठी भर अन्न,
भूख शांत कर देता है,
दिल को  मुट्ठी भर प्रेम,
अशांत कर देता है,
भूख स्थायी सी लगती है,
प्रेम स्थायित्व को पाने की चाह में
अस्थायी होता रहता है।
भूख सत्य है और  प्रेम ख्वाबगाह
भूख के छेत्र  में
प्रेम की दखलंदाजी नहीं चलती
प्रेम अक्सर भूख की देहलीज़ पर
दम तोड़ते दीखता है
प्रेम से मौत के दो चार किस्से
सुर्खिया बन जाते हैं
भूख से मरने वालों के
दस्तावेज़ नहीं मिलते।
                                …प्रभात सिंह 

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

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