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गुरुवार, 7 मई 2020

कच्ची सड़क


उस दिन हमारी कॉफ़ी एक दूसरे का साथ निभा नहीं पायी थी . सच ! मुझे रत्ती भर भी अंदाज़ा होता कि तुम्हे डार्क कॉफ़ी पसंद है , तो मैं कुछ कुछ वैसी ही ऑर्डर करता . मुलाकातों का सलीका मुझे कभी नहीं आया . मुलाक़ात  पहली हो या आखरी . फोन पर मैंने ही तुम्हे अच्छी कॉफ़ी पिलाने का यकीन दिलाया था . मेरे लिए अच्छी कॉफ़ी वही थी जो मुझे पसंद थी . तुम्हारी पसंद और ना पसंद की  मैंने कोई जगह रख नहीं छोड़ी थी . शायद यही कारण था कि मेरा अब  तक कोई हकीकी दोस्त नहीं था . 
       तुम्हारा मेरे शहर आना बड़ी बात थी मेरे लिए  . पहले की  तरह ऐन वक़्त पर मुलाक़ात टलने का डर जरूर था .  पर उस डर पर मैंने अपनी तरह से काबू पाना सीख लिया था. हर मुलाक़ात की मुकर्रर तारीख पर मैंने अलग अलग जगह कॉफ़ी पीना शुरू कर दिया . पिछली दो बार से बिना किसी मुलाक़ात का ख्याल लिए कॉफ़ी हाउस की कॉफ़ी पर दिल आ गया था . तब से वो मेरे लिए शहर की  सबसे अच्छी कॉफ़ी हो गयी . अच्छी कॉफ़ी के पीछे एक कारण और था . उस रास्ते ढेर सारे गुलमोहर, अमलताश के पेड़ . तुम्हारी तस्वीर में तुम्हारे बालों का रंग और दहकती सड़क के दोनों और गुलमोहर  के बिखरे फूलों के रंग मुझे एक से लगते . तुम्हे तुम्हारी तारीफ़ करना एकदम पसंद नहीं . इसलिए मैंने तुमसे कभी इस बात का जिक्र नहीं किया .
        हरे लिबास में,  तुम तय समय से कुछ देर बाद ऑटो से उतरी . मुस्कुराते हुए ऑटो वाले को शुक्रिया कहा . और दाखिल हुयीं कॉफ़ी हाउस में . मैं अभी भी सड़क के उस पार था. काश मैं तुम्हे इंतज़ार करते हुए देर तक देख पाता. मुझे वक़्त से पहले पहुंचना पसंद है . वक़्त से पहले पहुँच वक़्त को निहारना सुखकर होता है. कॉफ़ी हाउस के शीशे की  आड़ से मैंने देखा, तुम बैठी हुयी थी बुद्ध की तरह  इत्मीनान से . जैसे तुम्हे किसी की  तलाश नहीं, किसी का इंतजार नहीं . मैंने खुद को असहजता से सहजता की ओर जाने के लिए तैयार किया. तुम्हारे पीछे से आकर अचानक तुम्हारे सामने प्रकट हो गया. एक औपचारिक मुस्कराहट लिए "हेलो" से बातों का सिलसिला ठहरता, चलता चल निकला.  
         तुम्हारी गहरी , भारी बातों के सामने मेरा उठ्ल्लापन कहीं टिक नहीं रहा था . हालाँकि हमारा बेवजह मुस्कुराना सम पर था. मैंने दो बार सर्विस काउंटर की तरफ देख कर सुनिए सुनिए की पुकार लगाई . तुमने इशारों में मुझे काउंटर पर लगे  सेल्फ सर्विस का बोर्ड दिखाया . ओह ! मुझे वो बोर्ड दिखाई नहीं दिया . तुमने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा " देखने के लिए नज़र चाहिए ".  टेबल पर पड़े  लम्बे चौड़े मेन्यू कार्ड को मैंने तुम्हारी तरफ सरकाया . फिर वापस अपनी ओर खींच लिया . "इट्स माई कॉल" कह कर मैंने जाकर ऑर्डर कर दिया . दो कोल्ड कॉफ़ी, दो वेज सैंडविच . 
       मेरे  पास कुछ भी महत्वपूर्ण बताने के लिए नहीं था. सिवाय उस कोल्ड कॉफ़ी की तारीफ के . तुम बार बार शीशे के उस पार सड़क पर रेंगते शहर को देखतीं तो  कभी मेरे कॉफ़ी और सैंडविच पर टूटने को . मेरी कॉफ़ी और सैंडविच के साथ हमारी बातें जल्द ही ख़त्म हो चुकी थीं . तुमने यह कहते हुए अपने  सैंडविच का बचा बड़ा सा हिस्सा  मेरी तरफ बढ़ा दिया, कि खाने पीने के सामान को वेस्ट नहीं करना चाहिए  . मैंने उसे पहली मुलाक़ात का सबक  समझ के खा लिया . तुम्हारी छोड़ी हुयी आधे से ज्यादा कोल्ड कॉफ़ी को मैं पी लेना चाहता था . मुझे डर था कि कहीं उस कॉफ़ी को जूठा कह कर मुझे रोक न दो. मेजबान और मेहमान के नए नियम गढ़ते हुए  तुमने सारा का सारा बिल भर दिया .  हमारे उस कॉफ़ी हाउस से निकलते वक़्त मैंने उस छूटी हुयी कॉफ़ी को पलट के देखा....और तुम्हे मुस्कुराते हुए सी ऑफ किया ... तुम बिना पलटे उस सड़क से ओझल हो गयीं . 
      उस पहली मुलाक़ात में बहुत कुछ छूट चूका था. पहली मुलाक़ात का रुमान छूट चूका था , वो गुलमोहर, अमलताश वाली सड़क छूट गयी थी. नदी का किनारा छूट गया था. बहुत ठहरी हुयी मुलाक़ात छूट गयी थी . तुम बिना किसी वादे के अपने शहर लौट चुकी थीं . मैंने तुमसे खिलखिला कर फोन पर पूछा .  हाउ वाज़ अवर डेट ? तुमने कहा . मैं डेट वेट नहीं जानती कैसी होती है, और क्या होती है . मैंने फिर पूछा  हाउ वाज़ कोल्ड  कॉफ़ी ? तुमने कहा तुम्हे ज्यादा दूध वाली कॉफ़ी पसंद नहीं.
      

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