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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

यह शहर-ए-लखनऊ है...........?????

कभी कभी कुछ ऐसा देखने को मिल जाता है जिससे मन में अनायास ही सवाल उठ खड़ा होता है की वाकई में भारत तरक्की कर रहा है ? या हम खोखले दावे कर,आत्म संतुष्ठ होने का दंभ भरते रहते हैं.धीरे धीरे हम भी वही देखने लगते हैं जो हमे दिखाया जाता है.वास्तव में अगर हमे अपनी यथास्थिति देखनी है तो हमें संवेदनशील होना होगा.संवेदनशीलता से ही हमारी आँखों से बाजारू चश्मा हटेगा और हम सच्चाई देख पाएंगे. मैं लखनऊ जैसे मेट्रो शहर के पाश एरिया में रहता हूँ.जहा लोगो को हाजरी लगाने के लिए भी कई बार सोचना पड़ेगा.कही ऐसा न हो की कोई टोक दे की यहाँ कैसे ? लखनऊ का ह्रदय कहे जाने वाले हज़रतगंज,सत्ता की चकाचौंध से लबरेज विधान भवन और अतिविशिष्ट लोगो का रिहायशी इलाका विधायक निवास आदि इस जगह के अति विशिष्ट होने की पुष्टि करती है.हजरतगंज चौराहे और ओसीआर बिल्डिंग के बिच की दुरी लगभग ४०० मीटर होगी.लेकिन इस दुरी के बीच में वोह सब घटित होता है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.इस दुरी के बीच में आप गरीबी,लाचारी,देहव्यापार,अन्धविश्वास और सफ़ेद कपड़ों में रंगे सियार देख सकते हैं.
द्रश्य १.
शाम होते ही दुधिया रौशनी में नहाये हजरत गंज चौराहे से सटे पार्क में रिक्शे वालों तथा दिहाड़ी मजदूरों की भीड़ जमने लगती है.`दिनभर की थकान और रात बिताने के लिए शायद ही उन्हें इस प्रकार की निशुल्क व्यवस्था कही और मिले.रिक्शे वालो के लिए फिर भी लेटने के लिए रिक्शा होता है.लेकिन दिहाड़ी मजदूर को तो वोह भी नसीब नहीं.धीरे धीरे चिलम और बीडी के कश के साथ अपने आप को मौसम के अनुकूल करते हैं फिर अपने गागर में सागर माफिक झोले से एक थाली,आंटा,पानी सी भरी बोतल,लकड़ियाँ,अचार निकालते हैं.पार्क के किसी कोने में चार ईंटे रखकर रोटियां पकाते हैं.और अचार के साथ खाकर वही अंगौछा बिछाकर सो जाते हैं.वहां आने जाने वाले लोग बताते हैं की यह नजारा रोज शाम होते ही देखा जा सकता है. पार्क के बीचो बीच ऊँचाई पर लगी गाँधी जी की १५ फिट ऊँची प्रतिमा से भले ही इन दिहाड़ी मजदूरो को कोई खास लेना देना नहीं है लेकिन यह द्रश्य उस युग पुरुष के सपने को एक झटके में खंडित कर देता है जिसको साकार करने में न जाने कितने लोग शहीद हो गए.

द्रश्य २.
हम अभी तक कितनी तरक्की कर चुके हैं इसका दूसरा उदाहरण विधान सभा मार्ग स्थित जीपीओ के गेट के सामने मिल जाता है,शाम होते ही सजी धजी कुछ महिलाएं सड़क के किनारे टेहेलती मिल जाएँगी,ये महिलाएं आम महिलाये नहीं हैं,इन महिलाओं को जीपीओ स्थित चाय की दुकान वाले,पान वाले,गश्त लगा रहे पोलिस वाले,बस स्टैंड पर खड़े या बैठने वाले भली भांति जानते हैं.यहाँ से यह विशिष्ट महिलाएं चंद पैसे के लिए कहीं भी जा सकती है.बशर्ते आपके पास मोटी रकम होनी चाहिए.अगर आपके पास इनकी सेवा लेने के लिए पर्याप्त व सुरक्षित जगह है तो ५०० रुपये में काम बन जायेगा अगर नहीं है तो होटल के लिए आपको १००० से २००० तक चलेगा.लेकिन होटल इन महिलाओं की पसंद का होगा.येही महिलाये दिन में पानी एवं पान की दुकानों पर बैठती हैं और शाम होते ही ग्राहक तलाशने लगती है.ये महिलाये शाम ८ बजे से लेकर रात १२ बजे तक उपलब्ध हैं.यह धंधा सरी रात बेधड़क चलता रहता है.जिसको नापसंद हो वह आँख फेर ले जिसे पसंद हो वो बोली लगा दे,फिर क्या पोलिस और क्या पब्लिक.
द्रश्य ३.
हो सकता है की इस उदाहरण से किसी की भावनाएं आहत हो तो मुझे क्षमा करे लेकिन मैं फिर भी अपनी बात कहूँगा क्यूंकि विचारो की अभिव्यक्ति का अधिकार सबका है.तीसरे उदाहरण में आपको अन्धविश्वास की झलक मिल जाएगी.हर ब्रहस्पतिवार को इसी विआइपी सड़क पर स्थित एक मजार पर शाम के वक़्त पचासों लोग देखे जा सकते हैं.उनमे से कुछ तो भूत बलाई से निजात पाने आते हैं तो कई गंभीर बीमारी का इलाज करवाने आते हैं.हद तो तब हो जाती है जब किसी गंभीर बीमारी से जूझ रही महिला को टेम्पो में लाद कर लाया जाता है.पूछने पर पता चलता है की पड़ोस के झलकारी बाई अस्पताल से महिला को इलाज के दौरान ही इस मजार पर लाया जाता है.घंटे भर की मेहनत मशक्कत के बाद हालत नहीं सुधरती है तो आनन् फानन में उसे वापस अस्पताल में भर्ती करवा दिया जाता है.लेकिन इस घटना से अन्य लोग नहीं चेते और अपनी बारी का घंटो इन्तेजार करते रहे.श्रद्धा,पूजा,इबादत तो समझ में आता आता है लेकिन इतना अन्धविश्वास की लोग बीमारी में अस्पताल को दरकिनार कर गंडा ताबीज का सहारा लेने लगे समझ में नहीं आता.

यह घटनाये कभी कभार नहीं होती ये विधान सभा मार्ग की दैनिक क्रियाओं में शामिल है.इसके अलावा विधायक निवास ४,रायल होटल से सटे हुए शुलभ शौचालय के पास मुख्य मार्ग पर कूड़े का ढेर किसी मलिन बस्ती की याद दिलवा देता है.इतना सब होने के बाद भी न जाने क्यों विधान सभा मार्ग हो लोग विशिष्ट कहते हैं और सफ़ेद कुर्ता पैजामा में कुछ रंगे सियार अक्सर यहाँ देखे जा सकते हैं.जो अपने आप को नेता कहते है.प्रदेश भर से यहाँ लोग अपनी समस्या लेकर यहाँ प्रदर्शन करते हैं,अपनी बात मनवाने के लिए लाठियां खाते हैं,इसी मार्ग पर स्थित विधान सभा में अतिविशिष्ट लोग सभा लगाने आते हैं,जब प्रदेश की राजधानी की मुख्य सड़क पर यह आलम है तो बाकि राज्य का क्या होगा भगवान के अलावा शायद ही कोई जनता होगा.

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...