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गुरुवार, 30 नवंबर 2017


ओ संता देख तो चिट्ठी आयी है !

"ओ संता देख तो... पुजारी जी चिट्ठी लाएं हैं, देख तो जरा कौन डेरा से चिट्ठी आयी है ? तीन दिनन से रोज चिट्ठी आये रही है "
    ये वो जगह है, जहाँ चिट्ठियाँ याद के सन्दूक से निकले काले नीले अक्षरों से भरी नहीं होती। यहाँ चिट्ठियाँ भूख का निवाला बन के आती हैं। चिट्ठी जिस दिन आएगी, उसमें किसी शाम या दोपहर का भरपेट भोज होगा। ये राम की नगरी अजोध्या का वो हिस्सा है, सीता माँ कभी विधवा के रूप में नज़र आएंगी, कभी किसी जंगल में फेंकी हुई 2 महीने की दुधमुंही बच्ची के रूप में तो कभी भरे पूरे घर से वनवास काटने वाली हिम्मत के रूप में। ये माईं- बाड़ा है। यहाँ वो माएँ हैं...जिन्होंने अपने इर्द गिर्द किसी पुरुष प्रधान समाज की दासी बनने से इनकार किया है।
     उन्हें दो चीजों का इंतज़ार रहता है, एक चिट्ठी का और दूसरा अपने भगवान के पास हमेशा हमेशा के लिए जाने का। बाकी उनके पास ढ़ेरों काम हैं, इतना काम कि उन्हें अपनी सुध नही रहती। पर उन्हें उनके हिस्से का वैराग्य हाँसिल नही, जितना एक पुरुष के हिस्से आता है। उनके हिस्से के वैराग्य का दान धर्म भी "चेलाही" के नाम से आता है। कभी चेलाही तो कभी चिट्ठी।

#माईंबाड़ा - 1
#राम_जू_की_अजोध्या

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

क्यों कि कलाकार कभी हार नही मानता !

इधर अत्यधिक काम के चलते फिल्में देखना बन्द सा हो गया है। महीनों से कोई फ़िल्म नही देखी, न कमर्शियल न आर्ट । पर हाँ पिछले एक महीने से एक फ़िल्म वाले के वेटिंग रूम या उसके बाहर कुल जमा 15-20 इंतज़ार के जरूर खर्च किए। इन इंतज़ार के घण्टों से मेरे भीतर के दम्भी पत्रकार ने इंतज़ार करना सीख लिया। और भी बहुत कुछ सीखा, पर वो साझा करना नही, सहेज के रखना चाहता हूँ ।
      कुछ दिनों पहले लखनऊ में फ़िल्म फेस्टिवल हुआ, 22 से गोआ में अंतराष्ट्रीय स्तर का फ़िल्म फेस्टिवल होने वाला है। न जाने कितने लोगों की मेहनत, पैसा, दिल दाँव पर लगता है। कोई दर्शकों के प्यार, कोई अवार्ड तो कोई कम से कम फ़िल्म के ऐसे अवसरों पर चयनित होने की ख़्वाहिश रखता है। पैसे कमाना तो इस इंडस्ट्री में दूर की कौड़ी है। जब पद्मावती जैसे बड़े बैनर की फिल्मों का हश्र सामने है तो छोटे - मोटे कलाकार कहाँ टिक पाएंगे। पर कलाकार कभी हार नही मानता। सृजन की धुन जगह नही देखती, पुरुस्कार नही देखती। सत्येंद्र करीब 15 साल से संघर्ष कर रहे हैं। उनका संघर्ष उनके भीतर की गंभीरता, अनुभव और हौसलों के पहाड़ से मापी जा सकती है। जीवन में कई चढ़ाव उतार की गणित में उतार का योग ज्यादा रहा। फिर भी अयोध्या जैसी छोटी सी जगह में रह कर उन्होंने वो काम किया जिसके बारे में सोचना इस क्षेत्र के पुरोधाओं की शायद बस की बात नहीं।
     अयोध्या की एक संकरी गली में इनका खुद का स्टूडियो है। स्टूडियो में इनहाउस शूटिंग के लिए सेट तैयार रहते हैं। प्रोडक्शन, डायरेक्शन, स्टार कास्टिंग, एडिटिंग, डबिंग, लोकेशन, प्रोमोशन और ऐक्टिंग समेत न जाने क्या क्या वो खुद ही कर लेते हैं। न कोई हंगामा, न कोई शो बिज़। बस काम काम और काम। उनकी ऐक्शन फ़िल्म " यू पी पुलिस रुद्र " इसी महीने के अंत में रिलीज़ होने को है। इस फ़िल्म का ट्रेलर देखने का आज अवसर मिला। यकीन ही नही हुआ कि इस फ़िल्म में एक गंभीर, रस्टी सा दिखने वाला लड़का बतौर लीड काम कर रहा है। फ़िल्म की लोकेशन में अयोध्या को ढूंढ पाना मुश्किल सा लगा। कम संसाधनों में एक्शन की बारीकियों को जस्टिफाय करने का प्रयास किया गया है। ट्रेलर से ऐसा प्रतीत होता है, जहाँ जहाँ फ़िल्म ने सत्येंद्र के समय और उसकी कार्य क्षमता के सीमा को लांघा है, वहाँ उसके ही जैसे किसी और सहयोगी के न होने की कमी महसूस हुई।

    फ़िल्म के सफल असफल होने की कहानी उसके रिलीज़ होने के बाद की है। अयोध्या फ़ैज़ाबाद जैसी जगह पर जहाँ शूटिंग, फ़िल्म मेकिंग, वीडियो कैमरा का मतलब  शादी विवाह, मुण्डन, बर्थ डे पार्टी की कैसेट तैयार करना हो। ट्राइपॉड को खूंटे की तरह एक जगह गाड़ के प्रवचन को रिकार्ड करना हो या छोटी छोटी क्लिप बना चोरी किये हुए भजनों से भक्ति अयोध्या का महिमा मण्डन किया जाता हो। वहाँ अपनी क्षमता से कहीं अधिक तन मन धन लगाकर किसी फ़िल्म को अंजाम तक पहुँचा देना बड़ी बात है। वो अपनी इस फ़िल्म के लिए न ही कोई अवार्ड का ख्वाब देखते हैं न ही कोई फ़िल्म नीति के तहत सरकारी इमदाद की। वो चाहते हैं कि उनकी इस फ़िल्म पर यू पी का ठप्पा लगा हो और दर्शकों की खट्टी मीठी प्रतिक्रियाएं। हालांकि इस फ़िल्म के रिलीज़ के बाद सत्येंद्र ने मुम्बई में काम करने का मन बना लिया है। वो यहाँ से हार के नही जा रहे हैं, वो अयोध्या, उत्तर प्रदेश  को जीत के मुम्बई को जीतने के लिए जा रहे हैं। हालांकि वो, राम की अयोध्या को प्रभु श्री राम की अर्धांगिनी द्वारा दिए श्राप को दोहराना नही भूलते, जिसमें अयोध्या में कुछ भी भली भांति सम्पन्न न होना था।

#राम_जू_की_अजोध्या

मंगलवार, 14 नवंबर 2017



कौन सुनेगा इनकी ? जहाँ राजा का ही गुणगान करने से फुर्सत नही। राजा तक आवाज़ पहुँचाने के लिए उतने ही ज्यादा जतन किए जाते हैं, जितना भीतर गलत होने का डर भरा होता है। लाउड स्पीकर, डी जे, राज्याभिषेक, पुष्पक विमान, महापूजा, महायज्ञ, महाभोज। जितना भव्य आयोजन उतनी उँची आवाज़। पर ऊँची आवाज़ पुकार कहाँ होती है। राजा राम को कम सुनाई देने लगा है, इन चिल्लाहटों से, ऊँची ऊँची आवाज़ों से अब वो चिढ़ते होंगे। वो देखते होंगे नीचे की ओर और दहाड़े मार के रोते होंगे। उनकी प्रजा खुश नही है, तो वो खुश कैसे हो जाएं ? उनके भक्त डरे हुए हैं, वो कैसे खुश हो जाएं। वो कम से कम अपने जन्म स्थान में तो राम राज्य देखना चाहते होंगे। उनके नाम पर राम राज्य का कौन सा स्वरूप उनके परम भक्त प्रस्तुत करना चाहते हैं, ये भक्त जानते हैं या मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राजा राम।
सुनो राम, अब तुम्हारे 84 कोसी राज क्षेत्र में राम राज केवल मंदिर के भीतर आया है, सिंघासनों पर आया है। तुम्हारे परम भक्त हनुमान को तुम अयोध्या का राजा घोषित करके गए थे। वो पवन पुत्र सबसे बल शाली भक्त ने भी घुटने टेक दिए, इन नए राम राज्य की कल्पना करने वाले भक्तों के सामने। तुम्हारे राम राज्य में पैदा हुए बहुत से परिवार अब अपनी जमीने खो चुके हैं। तुम्हारे नाम की उपज देख कर सैकड़ों बाहरी बली महाबलियों ने उनकी जमीनों, रोजगार को छीन लिया है। उन्होंने तुम्हारी प्रजा को प्रसाद लेने कि कतार में खड़ा कर दिया है। चुटकी भर प्रसाद के बदले बोरी भर अनाज का दान तुम्हारी मेहनतकश प्रजा यहाँ रख जाती है। कुछ दिन अपना पेट काट काट के उस महादान को संतुलित कर पाती है। तुम्हारी प्रजा के घर टूट रहे हैं, उनपर नए भक्त राजाओं के महल खड़े हो रहे हैं। जिन्हें वो तुम्हारा ही मंदिर कहते हैं। तुम्हारे नाम से जो कारोबार चल रहा है, उसमें आस्था का सौदा हो रहा है। राम तुम देखते होगे बेबस ? तुमको भी तो कैद कर लिया गया है न राम ? तुम सूर्यवंशी थे न ?
तुम्हारे नाम की परिक्रमाएं होती हैं, 14 कोसी जानते होंगे न ? आज के 45 किलोमीटर होता है, नंगे पैर तुम्हारी प्रजा चलती है टूटी सड़कों पर, ककरीले कच्चे पक्के रास्तों पर। छाले पड़ जाते हैं, महीनों पैरों के घाव नही जाते । पंचकोसी जानते होंगे न तुम ? 15 किलोमीटर होती है। तुम्हारे राज्य की शहरी प्रजा चलती है नंगे पैर, जो कभी कच्ची जमीन पर नंगे पैर नही चलती। प्रजा तुममे आस्था रखती है, वो यहाँ के अत्याचारों से सहमी हुई है। पर तुम्हारी आस्था का फल राजा को ही क्यों मिलता है ? तुम तो सब राजाओं के राजा हो, पर तुम भोले हो अपनी प्रजा की ही तरह। तुमने वाकई कभी किसी एक छली, कपटी, आततायी, बुद्धिमान रावण का संहार किया था ?

ये तैयारी अंधेरे से लड़ने की नही है, ये अंधेरे को पूरे सम्मान के साथ महसूस करने की है। यहाँ अंधेरा उसी सम्मान के साथ मन्दिर प्रांगढ़ में प्रवेश करता है जैसे उजियाले की पहली पह प्रवेश करती है। अयोध्या में एकमात्र रामानुज सम्प्रदाय का भव्य विजय राघव मन्दिर शाम से ही अंधेरे के उत्सव की तैयारी करता है। यहाँ बिजली की व्यवस्था केवल शौचालय और गौशाला में है। बाकी मन्दिर के लगभग 4000 वर्ग फीट, तीन मंजिला परिसर में गर्भ गृह से लेकर 35 कमरों और अन्य जगहों पर लालटेन ही एकमात्र रोशनी का साधन है।
प्रसाद से लेकर भगवान का भोग, श्रद्धालुओं का भोजन अभी भी लकड़ी की आग में पकता है। खाने के लिए रसोईं में बने कुएं के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। मन्दिर परिसर में स्थित गौशाला में बने कुएं से गायों के लिए पानी, एक अन्य कुएं से मन्दिर में आए श्रद्धालुओं की प्यास बुझती है। मन्दिर परिसर के मुख्य भाग में अभी भी छत में टँगे पंखे को झला जाता है। मन्दिर में जलने वाले सभी दीपक देशी घी में जलते हैं, यहाँ तक भोजन प्रसाद भोग सब हमेशा से देशी घी में बनते आ रहे हैं। अखण्ड दीपक व अन्य दीपकों से लेकर खाना पकाने में औसतन एक कुंतल प्रति माह घी की खपत होती है। दीपकों के लिए गौशाला में पल रही गायों के दूध से बने घी तथा खाने के लिए कहीं दूर किसी गाँव से आये घी से व्यवस्था होती है। मीठे में चीनी नही बल्कि पीली शक्कर का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ किसी भी लेटने वाली जगह पर गद्दे नही हैं, केवल कंबलों का इस्तेमाल होता है। सर्दी गर्मी चटाई कंबल बस।
पूजन अर्चन, भगवान के स्नान के लिए कोई एक सेवक लगभग 600 मीटर चल के सरयू का जल भर कर सुबह शाम लाता है। ऐसे ही तमाम आधुनिक, अत्याधुनिक व्यवस्थाओं को ठुकराकर मन्दिर, भगवान, साधक, सेवक, श्रद्धालु सब एक सा जीवन साझा करते हैं। ये व्यवस्थाएं पुरातन अवश्य लगती हैं, पर मठों मठाधीशों की चकाचौंध मंडी से इतर ये व्यवस्थाएं दिल में आस्था की अखण्ड लौ जलाए रखती हैं।


फीजी मूल के कुछ गुमशुदा भारतीय !
अजोध्या में कुछ डेढ़ सौ लोग ऑस्ट्रेलिया के पास बसे देश "फीजी" मूल के पिछले 10 दिनों से आयें हैं। जिनमें से ज्यादातर लोग अब ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। फीजी और ऑस्ट्रेलिया का शाब्दिक अर्थ नही मालूम। और न वहाँ रह रहे भारतीय एन आर आई की संख्या। फिर भी डेढ़ सौ लोग दूसरे मुल्क से यहाँ 10 दिनों से केवल हवन करने आये हैं। वो दिखते भारतीय हैं, हिन्दी समझने समझाने भर की, अंग्रेज़ी सलैंग वाली। वो फॉरेनर्स हैं फिर भी राम, रामायण अयोध्या पर फ़िदा हैं।
अभी पिछले ही महीने अमेरिका से कुछ दो एक भारतीय एन आर आई यहाँ किसी बड़े आयोजन के लिए आये थे। आयोजन में एन आर आई समेत 2000 लोग आने को थे। एक बड़े संगठन और अमेरिका के हिन्दू संगठन के लोगों ने एड़ी चोटी का जोर लगा लिया। पर मुश्किल से 100 लोग ही रहे उसमें से केवल दो एन आर आई।
अमेरिका के एन आर आई भारतीयों का कार्यक्रम फेल हो गया। भारतीय नागरिकता न होने के बावजूद फीजी वाला कार्यक्रम पूरे शानोशौकत से रहा। 10 दिन से चल रहे कार्यक्रम के तहत सबने बाकायदा सरयू में स्नान किया, मंदिरों में दर्शन किए और दिन में 3 बार 51 कुंडीय हवन किया। आखीर में दान धर्म का दौर भी चला। अखबारों में एन आर आई बता के कवरेज भी खूब हुई।
पर दोनों ही कार्यक्रमों में अमेरिका वालों के कार्यक्रम में ज्यादा पैसा खर्च हुआ था। भव्यता का आभासी सौंदर्य था। फिर भी वह असफल रहा। फीजी वालों ने बताया कि उनको राम पर आस्था है। नागरिकता न होने की वजह से उनके पास भारतीयता का सर्टिफिकेट नही है। पर वो भारतीयों और अप्रवासी भारतीयों से ज्यादा राम और राम की अयोध्या को याद करते हैं। उन्होंने बताया कि उनको नही पता ब्रिटिश राज के दौरान उनके पूर्वज किस जगह से किस जहाज पर अवैधानिक तौर से यहाँ लाए गए थे। उन्हें ये भी नही मालूम वो बिहार के हैं या दक्षिण के। उनकी पीढ़ियों से केवल अंग्रेज़ी दौर में जहाज में ठूंस कर फीजी आने के किस्से आये हैं। उसके बाद न सरकारों ने उनकी सुध ली और न ही वहाँ का आदमी ही सरकार से हिंदुस्तानी होने का अधिकार ले पाया। वो जब कुछ वर्षों पहले पहली बार बार भारत आ रहे थे। तो उन्हें कहा गया था भारत में सावधान रहना। वहाँ लूट होती है, छिनैती होती है, छेड़ छाड़ होती है, वहाँ आस्था के नाम पर ठगी होती है, कुछ भी हो सकता है वहाँ। फिर भी वो आए। और हर साल आने का प्रयास करते हैं। वो हर महीने वहाँ से धन भेजते हैं, यहाँ लगातार रामायण चलवाने का। उनके लिये बने आश्रम में पिछले 27 साल से रामायण का पाठ हो रहा है। उनकी आत्मा पूरे भारत से सिमट कर राम में आ गयी है। वो महसूस करने आते हैं, यहाँ राम चले होंगे, यहाँ विवाह, यहाँ से शरीर त्यागा होगा। वो हम सब से भारत को प्यार करते हैं।
वो कहते हुए भावुक हो उठते हैं, कि वो जानना चाहते हैं वो भारत के किस हिस्से से हैं, किस शहर या गाँव से हैं। पर शायद उन्हें नही मालूम जब तक उन्हें अपने मूल के होने की खबर नही तब ही तक वो शुद्ध भारतीय हैं। क्यों कि वो भारत को प्रेम करते हैं, उनको राम पर आस्था है, वो भारत की संस्कृति को महसूस करते हैं, रामायण उनके लिए जीवन का आदर्श है। पर यहाँ हम धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं, देश प्रेम का ढोंग रचते हैं, संस्कृति से खिलवाड़ करते हैं । उनमें से कई लोग फीजी आइलैंड से बेहतर भविष्य को स्वरूप देने के लिए अन्य देशों में चले गए हैं। न्यूज़ीलैंड के एक नागरिक अयोध्या चला आया, एक फीजी या भारतीय सी दिखने वाली अधेड़ महिला से 51 कुंडों के हवन को साक्षी मान कर फेरे लिए। उन हवन कुंड की गर्मी से 69 साल के गोरे के चेहरे की नसें धुएं में लाल होकर फटने वाली थीं। पहले से ही फेफड़ों में भरी खांसी का दम पिछले 10 दिनों से हवन कुंड में स्वाहा हो रहा था। उसके हांथों में रची मेहंदी में अंग्रेज़ी के अक्षरों से प्रेम लिखा था। उसके सफेद पैरों में महावर लगी थी। ये हवन उन सब के हिस्से के राम को अपनी ऊष्मा से उनके देश फीजी न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया ले जाएगा।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...