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शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

शिवालय !

 


मैं मेरी होती 

तो सीकर में न बहती

खिलखिलाती अपनों के बीच

आँगन में

खलिहान होती 


सर छिपाने को

विधर्मी से ब्याह न करती

धूनी की राख

न खरकती मेरी माँग में


चिलम में फूंकता

मूंछों के ताव

कुछ नया जमाना चाहता

आदमी

मेरा मुंसिफ नही

शिव होना चाहता है


दरकती शिवालय की थाती

शिवलिंग से लिपटे सर्प

मेरी छाती पर लौटते

सोमवार का व्रत लेकर

मैं उन्हें दूध पिलाती


बड़े से वृक्ष के नीचे

अनगिनत खंडित मूर्तियां

ढूँढती तालाब

मैं अपना अस्तित्व छिपा देती

तालाब में सूखे पत्तों के नीचे


मेरी आँखों में 

अब मेरे बच्चे नही आते

मेरी तकलीफ़ में

मैं नही होती।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

घर वापसी !

 मैं जब भी 

अपने घर में घुसता हूं

चीजें जगह 

छोड़ चुकी होती है


बड़ा सा आंगन 

उनमें तरह तरह के लोग 

फूल पौधे 

वातानुकूलित कमरे 

स्वस्थ खाना 

और प्यारे बच्चे 


न जाने कौन सा बैर

अपने माथे लिए फिरता हूं

देखने सुनने की गुंजाइश

मेरी फिक्र में नहीं रहती

मैं सुनाता हूं अनमने कानों को

अपना दुख

कि मुझे यहां कोई नहीं जानता


रोशनदान वही है

दराजें वही है

हर जगह मोहरें

वही लगी हैं


टेबल पर परसी थाली छोड़

वक़्त की गहरी खाइं 

या किसी ख्वाब में

मैं डूब जाता हूं 


शोर से आहत कुछ कांधे

क्षत विक्षत पड़े रहते हैं

अपने उदास कमरों में

मैं आंगन में झांकता

चांद हो जाता हूं ।




खरा होना !


लोहे की चमड़ी

भावुक मन

खुर हो चुके पैर

जानते नहीं पीर

प्रीत की रेत में

तपना खरा होना है।



जमीन

जमीन पर उगता पौधा

नहीं जानता 

उसे किसके हिस्से उगना है !

वह बेलौस उगता 

हवा पानी पाकर 

कांटे फूल फल बन

मिलता मिट्टी में देर सबेर ।



बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

ऐतबार !

चौबीस घण्टों में

कोई दस मिनट

कई कई बार

सेकण्ड की सुई

पर सवार

मैं देखता हूँ

संग सार के पार ।


कई घड़ियाँ

एकांत ढूँढती

लिपट जाती हैं

धुएँ से 

बुनती आकृतियाँ

जोड़ती दीद के तार।


कोई सिरा 

जीवन की अंतिम 

कहानी कहने को 

आतुर

समय से बैर करता

लिखता है

ऐतबार !

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021

काठी का घोड़ा !

बिट्टी का चेहरा दमका
दाँतों की अग्रिम पंक्तियाँ चमकी
आँखों से मासूमियत छलकी
कमर पर हाँथ धरे उठी
लमकी कच्ची पगडण्डी पर !

सोची , माँ खुश होगी
लकड़ी के गट्ठर में
भाई से कुछ ज्यादा 
हिम्मत बँधी
सर से पाँव तक
जिम्मेदारी का असर
चूल्हे की रोटियों में आया।

स्कूल जाते बच्चों से
उपजी बिट्टी की उदासी
चूल्हे में खप जाती
इक्कम दुक्कम
गेंद ताड़ी, लबबा लोई
पिरोड़ की मिट्टी से
बनते बिगड़ते घर
बिट्टी का ईंधन होते।


सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

मिलन !


तुम्हे समय नही मिलता ?

मुझे भी नही मिलता !

ये सोचकर बोलूं 

कि मैं तुमसे मिलूं 

हुँह !

नही मिलना 

मिलकर प्रीत के मीठे कीड़े

रेंगते हैं दिमाग में

रहा बचा की उलझन

गुम होती है

न मिलने में !

शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

पाकड़ !

 तुम्हारी छांव की ठंढक

तुम्हारी साँस का जलना



तुम्हारी याद के डैनों में

दराजें उम्र की होना


नज़र से देख भर लेना

कहानी बाल से लिखना


तुम्हारी जिद्द का वो कोना

वफ़ा -ए- हिज़्र में रोना


बने किस चीज़ के तुम 

भरा कैसा रसायन 

धरा की नाक के नीचे

फले फूले तन मन ।

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

सुनो !



सुनो !

मैंने कहा 

मुक्त कर दो मुझे 

तुम बिना कुछ कहे चल दीं

मेरी उंगलियों में अपनी उंगलियां

पहनाए , घूमे अनजान रास्तों पर ।


संवाद के सारे तार टूटे रहे 

पैरों की थकान जाती रही


रात भर सूखे पत्ते

आवाज़ करते रहे कहीं दूर

हमारे कदमों के नीचे 


सुबह मैं नही मिला

अपने बिस्तर पर 

कोई निशान नही पाए

अपनी उंगलियों में

रास्ते के सारे सूखे पत्ते

फिर से जा चिपके

अपनी टहनियों से।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...