लोहे की चमड़ी
भावुक मन
खुर हो चुके पैर
जानते नहीं पीर
प्रीत की रेत में
तपना खरा होना है।
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निकल जाओ मेरे घर से बाहर . अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है . तुम सर पर सवार होने लगी हो . अपनी औकात भूलने लगी हो . ज़रा सा गले क्या लगा लिय...
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