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बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

ऐतबार !

चौबीस घण्टों में

कोई दस मिनट

कई कई बार

सेकण्ड की सुई

पर सवार

मैं देखता हूँ

संग सार के पार ।


कई घड़ियाँ

एकांत ढूँढती

लिपट जाती हैं

धुएँ से 

बुनती आकृतियाँ

जोड़ती दीद के तार।


कोई सिरा 

जीवन की अंतिम 

कहानी कहने को 

आतुर

समय से बैर करता

लिखता है

ऐतबार !

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