बारिश आके जा चुकी
आंसू अब भी अटका
साफ आसमान
सोंधी मिट्टी में लिसा तन
तल , ऊपर देखता
हारता जीतता
ड्योढ़ी लांघता दुख
टूटता आंखों से
गिरता बूंद बूंद
गली गलियारों में
छाती पर कन्धों तक
प्रेम से छल जो जाता है
हर बार कोई
बारिश , आंसू प्रेम बनकर !
आंसू अब भी अटका
बाढ़ का समाचार
बादलों में लटका
साफ आसमान
सोंधी मिट्टी में लिसा तन
तल , ऊपर देखता
हारता जीतता
ड्योढ़ी लांघता दुख
टूटता आंखों से
गिरता बूंद बूंद
गली गलियारों में
छाती पर कन्धों तक
खड़ी फसल
छोड़ती सूत तक ना
मन लिपट कर
धरती की छाती से
पानी पानी होता
न जाने कहाँ से
आस की पौध उगती रहती
खरपतवार की तरह
प्रेम से छल जो जाता है
हर बार कोई
बारिश , आंसू प्रेम बनकर !