मुक्त छंदों में गुंथें शब्द
तैरते कोरे कागज़ पर
बारिश की कोई नटखट बेल
चढ़ती खड़ी दीवार पर
टप टप टपकती
नेह ओस बन कर
मेघों का सौंदर्य
रच गया धरती पर
कोमल उंगलियों के स्पर्श ने
मानो धरा को
भर दिया
सौंदर्य बोध से !
तैरते कोरे कागज़ पर
बारिश की कोई नटखट बेल
चढ़ती खड़ी दीवार पर
टप टप टपकती
नेह ओस बन कर
मेघों का सौंदर्य
रच गया धरती पर
कोमल उंगलियों के स्पर्श ने
मानो धरा को
भर दिया
सौंदर्य बोध से !
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