तुम्हे भीगना अच्छा लगता है ना ?
कितनी एक सी चाह है
हमारी !
और भली भी
बारिश भीगना !
मैं अपना भीगना जानता हूं
इसलिए तुम्हारा भी कुछ कुछ
एक लंबी भूख के बाद
थक हार के ढीले पड़े
पसीना पीते
बदन खारे हो जाते हैं !
उसी वक़्त
बारिश की ठंडी बूंदें
देंह के रुधिरों को
भेदते आत्मा तक पहुंचती !
जैसे धुल गए हों
तमाम सारे रोग,
इच्छाएं और मन के मैल !
कितनी एक सी चाह है
हमारी !
और भली भी
बारिश भीगना !
मैं अपना भीगना जानता हूं
इसलिए तुम्हारा भी कुछ कुछ
एक लंबी भूख के बाद
थक हार के ढीले पड़े
पसीना पीते
बदन खारे हो जाते हैं !
उसी वक़्त
बारिश की ठंडी बूंदें
देंह के रुधिरों को
भेदते आत्मा तक पहुंचती !
जैसे धुल गए हों
तमाम सारे रोग,
इच्छाएं और मन के मैल !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें