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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

बारिश !












तुम्हे भीगना अच्छा लगता है ना ?
कितनी एक सी चाह है
हमारी !
और भली भी
बारिश भीगना !

मैं अपना भीगना जानता हूं
इसलिए तुम्हारा भी कुछ कुछ
एक लंबी भूख के बाद
थक हार के ढीले पड़े
पसीना पीते
बदन खारे हो जाते हैं !
उसी वक़्त
बारिश की ठंडी बूंदें
देंह के रुधिरों को
भेदते आत्मा तक पहुंचती !

जैसे धुल गए हों
तमाम सारे रोग,
इच्छाएं और मन के मैल !

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