कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

बारिश आंसू प्रेम !

बारिश आके जा चुकी
आंसू अब भी अटका

बाढ़ का समाचार 
बादलों में लटका 


साफ आसमान
सोंधी मिट्टी में लिसा तन
तल , ऊपर देखता

हारता जीतता
ड्योढ़ी लांघता दुख
टूटता आंखों से
गिरता बूंद बूंद
गली गलियारों  में

छाती पर कन्धों तक 
खड़ी फसल 
छोड़ती सूत तक ना 
मन लिपट कर 
धरती की छाती से 
पानी पानी होता 

न जाने कहाँ से 
आस  की पौध उगती रहती 
 खरपतवार की तरह  

प्रेम से छल जो जाता है
हर बार कोई
बारिश , आंसू प्रेम बनकर !

कोई टिप्पणी नहीं:

मालकिन / कहानी

निकल जाओ मेरे घर से बाहर . अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है . तुम सर पर  सवार होने लगी हो . अपनी औकात भूलने लगी हो . ज़रा सा गले क्या लगा लिय...