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गुरुवार, 30 जून 2022

स्पंदन !


 निर्जन तपती धरती पर

ब कोई बीज पड़ा होगा

नमी ने सहेजा होगा
हवाओं ने सहलाया होगा
धूप ने सिखलाया होगा लड़ना

मिट्टी ने डाली होगी
बीज में संवेदना
उर्वरक बन प्रेम का
अंकुरण हुआ होगा

ओस की बूंदों ने
लिखी होगी पाती
बरसे होंगे काले
घने बादल

धरती मुस्काई होगी
मर्मस्पर्शी स्पंदन
कहता होगा
प्रकृति का अभिनंदन !

शुक्रवार, 24 जून 2022

बहुत बाद के बाद !



बहुत बाद के बाद 
अब बचा नही 
कहने सुनने को

बुझी हुई लौ
फिर न जलेगी
न जलेंगे हमारे
स्मृतियों के पन्ने 

टीस जो जोर भरती
पहर दर पहर
थक कर सो जाती
कुंठा पर सर रख कर
खर्च हो चुके रास्ते
ठूंठ हो जाते 

बहुत बाद के बाद 
वात से वार्ता करता मैं 
नील नदी के स्वप्न में
तड़क कर उठता
चल देता 
तुम्हारी ओर

मृग मरीचिका
में ओझल होता
बहुत बाद के बाद
मेरा तन मन
भाव विभोर !


बुधवार, 15 जून 2022

मीत !

 


बहुत बाद 

बड़ी देर 

ठहर कर

इक बूंद

टप्प से

गिरी राख पर 


बादल के दल

उमड़ घुमड़

धरते पांव

 ठहर ठहर


मन मीत

की बात

कहे न कहे

मन प्रीत 

से ज्योति

जलाए पड़े ।

खरबूज़े !


सुबह 5 बजे खरबूजे की मंडी लग के तैयार हो जाएगी। आस पास के सारे किसान ट्रैक्टर ट्रॉली एवम् साईकिल की कैंची पर खरबूजे लाद के सुबह मंडी करने पहुचेंगे। इस बार मौसम की आना कानी के चलते खरबूजे का स्वाद फीका रहा। ऊपर से लॉक डाउन की वजह से यहां का खरबूजा बाहर नहीं जा पाया।
        खरबूजा और भूरा का पक्का याराना है । भूरा को मालूम है । खरबूजा बिका सो बिका । बाद बाकी लेधरी के बीज उसे तार ही देंगे। भूरा के जीवन की बड़ी से बड़ी चिंताएं कुछ ही देर ठहरती हैं । पूरे गांव की चिंता में भूरा की शादी की चिंता शामिल रहती । पर भूरा " धत्त " कह कर सभी चिंताओं को खारिज़ कर देते । भूरा कभी पहलवानी करते थे । लिहाजा उनकी ताल हमेशा ठुक ने को तैयार रहती । 
इस सीजन भूरा अपना खरा माल पहले ही औने पौने बेच चुके हैं। अब बचा खुचा माल दागी है। दागी हैं इसलिए अभी शाम को खरबूजे मंडी पहुंचाएंगे। और दागी वाले स्थान पर गीली मिट्टी से लिसाई करेंगे। दिन उतरते , मंडी में आस पास के व्यापारी आ जाते हैं । भाड़े की गाड़ी की वापसी में कोई भी माल़ चलेगा । इसलिए भूरा को  कुछ बेहतर दाम मिल सकते हैं । वो दिनमुंदे मंडी में तय स्थान पर खरबूजे डालने की नीयत से निकले। साईकिल की कैंची के बीच धुरे के ऊपर पल्ली बंधी है। पल्ली में खरबूजे भरे हैं। खरबूजों के ऊपर पल्ली के किनारे तराजू  खुंसा है, आधा किलो, एक किलो और पांच किलो के बांट भी हैं। पहली दूसरी के बाद तीसरी खेप में बीच रास्ते भूरा की साईकिल दगा दे जाती है। साईकिल की कैंची टूट के दो खंड हो जाती है। भूरा के अफसोसनाक मुंह से निकलता है "तोरी माहतारी क .... !
        भूरा किसी जाने पहचाने राहगीर से टूटी पड़ी साईकिल रखाने को कह कर खरबूजों को हिल्ले लगा आते हैं। लौट कर साईकिल को कभी कांधे पर, तो कभी सर पर लादने की कोशिश करते हैं। पर कैंची टूटी साईकिल संभालनी मुश्किल पड़ जाती है। एक दो बार पल्ली में भरने की कोशिश करते हैं तो वो छोटी पड़ जाती है। अंधेरे में वो दांतों के बीच दबे मोबाइल टॉर्च से देखते हैं।
भयंकर उमस भरी गर्मी से तर बतर , झुंझलाकर वो साईकिल उठाते हैं और जमीन पर पटक देते हैं। कुछ गुस्सा ठंड होने के बाद वो सर पर बंधा गमछे के सहारे से पल्ली को बड़ा करते हैं। पल्ली में टूटी साईकिल , तराजू बांट घरीयाते हैं।  सर पर साईकिल की गद्दी रख साईकिल लाद लेते हैं।  "लौंडिया चु..... , कौन यही का रखावे.... कहते हुए अपने गांव के लिए निकल पड़ते हैं। रास्ते भर वो कहते जाते हैं। गांव वाले देखिहैं तो कहियें कि भूरा फेर पगला गया है। हंसिएं देयाखव साईकिल लादे जात है।

सोमवार, 6 जून 2022

भूल भुलइया !





देर रात फोन की घंटी बजती है । स्क्रीन पर मम्मी फ्लैश करता  है । अमूमन फोन पर मम्मी और मेरा संवाद लगभग न के बराबर होता है । अजीब सी चिंता लिए मैंने फोन उठाया । उधर से फुसफुसाती हुई आवाज़ में बेटे ने हैलो बोला । मैने कहा हां बताओ बेटा । इतनी रात तुम दादी के फोन से कॉल कर रहे हो ? सब ठीक तो है ! उसने बोला हां पापा , सब ठीक है । आप को एक बात बतानी थी । बाबा 10 तारीख को दवा लेने लखनऊ जाएंगे । फिर उसके बाद वो पता नही कब लौटें। हमारे पास उसके बाद कोई चांस नहीं रहेगा । तब हम लोग कही जाएंगे , तो दादी घर में अकेले रह जाएंगी । 
आप कह रहे थे कि लॉन्ग ड्राइव पर चलेंगे । इसलिए आप कल आ जाना शाम तक । हम लोग रात में ही निकल लेंगे । दिन में गर्मी बहुत होती है । रात में लॉन्ग ड्राइव करने में मजा आएगा । मैंने उससे पूछा ! तुमने मम्मी से बात की ? उसने कहा मम्मी से अभी तक बात नही की । उससे बात करेंगे तो वो मना कर देंगी । इसलिए मैने सोचा कि पहले आप से बात कर लूं। उन्हें हम सरप्राईज दे देंगे । 
मैंने पूछा कि लॉन्ग ड्राइव पर चलेंगे कहां ? उसने कहा आप ही तो कह रहे थे।  कि हम बिना किसी तय डेस्टिनेशन के लिए निकलेंगे । जहां शाम हो जाएगी , वहां रुक जायेंगे । मैंने कहा ! मगर तुम तो कह रहे हो कि रात में चलें । फिर तो सुबह हो जाएगी । और गर्मी बढ़ जाएगी । फिर हम क्या करेंगे ? 
बेटा कुछ पल के लिए चुप हो गया । .... अरे नही पापा ... हम लोग निकल लेंगे । निकलने के बाद कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा । मैं कब से कह रहा हूं आप से घूमने के लिए । आप हो कि टालते ही जा रहे हो । छुट्टियों से पहले आप ने वादा किया था । कि ट्रेन से हम लोग कहीं दूर चलेंगे । इतना दूर कि ट्रेन में दो दिन लगें । फिर आप ने रिजर्वेशन ही नही कराया । कहा कि पेसे नही है । अब रिजर्वेशन का टाइम निकल गया । मम्मा की कार से हम लोग चल सकते हैं । मामा मुझे भोपाल ले जा रहा था । वहां जाने से भी आप ने गर्मी के बहाने से मना कर दिया । अब इस बार नही। हमारे पास तीन दिन हैं। लॉन्ग ड्राइव पर हम लोग चल सकते हैं। चलो न पापा । प्लीज चलो न। अच्छा बेटा अभी फोन रखो , बहुत रात हो गई है । दादी का फोन उन्हें दे  दो । और तुम सो जाओ । कल की कल देखी जाएगी । 
ओके पापा , गुड नाइट । कहते हुए बेटे ने फोन काट दिया । 
उस फोन कॉल की मनुहार ने लॉन्ग ड्राइव के लिए प्रेरित किया । पर बड़ा सवाल मेरे लिए अभी भी यही है । कि हम कहां तक जा सकते हैं । जिस लॉन्ग ड्राइव का जिक्र मैने अपने बेटे से किया था । वो तो 100 या 50 किलोमीटर की ही होती है । अभी कुछ ही दिन पहले हम सब लखनऊ यानी 100 किलोमीटर की यात्रा कर ही आए थे । एक हफ्ते लखनऊ रुके । साइंस सेंटर , प्लेनेटोरियम , मॉल घूमने के साथ साथ खाना पीना , आवारगी करना । सब कुछ तो कर चुके थे । फिर अब लॉन्ग ड्राइव मैं कहां से लाऊं । या बनाऊं । 
यहां आस पास 200 किलोमीटर तक कुछ भी नया घूमने के लिए नही है । जिससे उस बाल मन को लगे । कि कुछ अलग हुआ है । कुछ यादगार हुआ है । पहाड़ों की तरफ जाने में रूह कांपती है । खबरें सुनने को आती है । कि पहाड़ों पर भी गर्मी पसरी हुई है । यहां जाम वहां जाम । होटल , धर्मशाले सब ओवरक्राउडेड हैं । यही सब सोचते सोचते आधी रात बीत गई है । आधी रात में भी पारा 35 के पार है । न ए सी , न कूलर । पंखे की हवा आग उगल रही है । पता नही फोन में दिखलाई देने वाला तापमान कमरे के भीतर वाला है या बाहर वाला। भीतर वाला कैसे हो सकता है ! फोन में कोई थर्मामीटर तो लगा नही है । इंटरनेट के माध्यम से ही यह जानकारी आती होगी । कमरे में एक छोटू सा टेबल फैन है । सीलिंग फैन को बंद कर मैं रात भर उस छोटू टेबल फैन से खेलता रहा । खिड़की पर कभी पंखे का रुख भीतर की ओर करता तो कभी बाहर की ओर । न ठंढी हवा बल भर भीतर आई । न गर्म हवा बाहर हो गई । पसीने से लथपथ निशाचरों की तरह भीतर बाहर रात भर करता रहा । सामने वाले पेड़ पर एक कोयल ने रात 2 बजे से ही कुहू कुहू करना शुरू कर दिया। कोयल का मधुर गीत मुझे बेहद पसंद है । पर रात में ये आवाज़ बहुत ही अजीब लग रही थी । पूरी रात लॉन्ग ड्राइव के ख्याल और गर्मी से जद्दोजहद में गुजरी । ......

 ..... भद्द गर्मी में शीतल सुबह भी होती ही है । भले ही वह तनिक देर के लिए ही हो । गर्मी और लॉन्ग ड्राइव के बीच झूलते झूलते अब मैने मन बना लिया था । कि बेटे के साथ कहीं किसी अनजान रास्ते पर निकला जाएगा । सुबह से शाम तक मैने यहां अपने सारे काम निबटा लिए थे । जिससे की कुछ दिन व्यवधान न पड़े । देर शाम घर पहुंचा । मैंने अपने इस लॉन्ग ड्राइव के प्लान के बारे में बेटे और उसकी मां को छोड़ सब को बता दिया था । बेटे की दादी यानी मेरी मां ने प्लान सुनते ही हामी भर दी । वो उत्साह से बोलीं जाओ जाओ । अच्छे से घूम के आना । पर बेटे के बाबा यानी मेरे पापा को इस अतरंगी प्लान के बारे में कोई खास रुचि नहीं आई । हां उनका तर्क था जहां जाओ वो रास्ता नया होना चाहिए । 

अगली सुबह हमें निकलना था । मैं बेटा और उसकी मां । बेटे का छोटू सा हांथी के मुंह नुमा प्यारा सा पिट्ठू बैग तैयार था । मेरा गोपनीय प्लान था । कि हम यहां से कार से सुबह 4 या 5 बजे तक निकल लेंगे । हमारे शहर से कुल चार तरफ को रास्ते जाते हैं । इसमें से तीन रास्तों पर अक्सर जाना होता था । पर एक रास्ते पर हम एक या दो बार गए होंगे । चूंकि हमने इस यात्रा को नाम दिया था लॉन्ग ड्राइव । इसलिए हमारा लक्ष्य लगभग 200 किलोमीटर की राइड थी । और वहीं कहीं कुछ घूमने के लिए । पर सिर्फ मेरे तक रहने में इस बात के जोखिम बड़े थे । बच्चे के लिए तो कोई बात नही । लेकिन उनकी मां कोई सरप्राईज ज्यादा पसंद नही है । 

अब उन्हीं की गाड़ी से इस यात्रा को अंजाम देना था । लिहाजा उनको विश्वास में लेना जरूरी था । ठीक एक शाम पहले मैंने हल्की फुल्की बात में जगह के नाम को छोड़ कर बाकी सब पत्नी से साझा किया

 ।उनकी तरफ से लखनऊ का पलड़ा भारी था । उनके तर्क कुछ इस प्रकार थे । वो जगह पास है । इतनी गर्मी में कहीं किसी की तबियत खराब हो गई तो ... और फिर हमारे पास वहां रुकने की एक जगह भी है । बेटा कह रहा था भुलभुलैया फिल्म देखने को । वो छूट जायेगी तो वो आफत कर देगा । इसलिए लखनऊ जाएंगे । मॉल घूमेंगे , फिल्म देखेंगे अच्छा खाना खायेंगे । और घर में पड़े रहेंगे । 

हा हा हा हा हा । मैं मन ही मन खूब हंसा । बहुत देर तक सोचता रहा । कि ये प्लान तो मेरे प्लान से बिल्कुल अलग है । न इसमें कुछ नयापन है । न ही रोमांच । फिर भी उनके प्लान को यूं ही खारिज़ करना मुनासिब नहीं समझा । अब यह मामला बेटे के साथ भी साझा करना पड़ा । उसको भी जगह का नाम बताए बगैर जगह की खासियत और यात्रा के बारे में बताया । और मां और मेरे मतों के भेद के बारे में भी बताया । उसने सिक्के से टॉस करने की सलाह दे दी । हमने टॉस किया उसमें मां जीत गई । मुझे और बेटे को अभी भी यह निर्णय अजीब सा लग रहा था । मैंने रात में ही सुबह तक इस निर्णय को पलटने के बारे में सोच रखा था । पैकिंग दोनों जगहों की संभावनाओं के हिसाब से हो गई थी । 

सुबह हम सब तैयार हो कर गाड़ी में सवार हो गए । घर से विदा लेने वाले और विदाई देने वाले दोनों पार्टियों को इस यात्रा के रुख के विषय में पक्का पक्का नहीं पता था । मैं, बच्चे और अपने मन की दिशा को फॉलो कर रहा था । गाड़ी की स्टियरिंग उसी नए रास्ते की ओर घूम चुकी थी । पापा हम लोग नए रास्ते पर जा रहे हैं न ? ... मैं कुछ उत्तर दे पाता ।

 मां ने जवाब दे दिया । " हां बेटा अब तुम्हारे पापा हम लोगों को एडवेंचर कराएंगे इतनी गर्मी में । मुझे लग ही रहा था । कि ऐसा कुछ होने वाला है । मुझे इसी लिए कहीं जवास नही आती इनके साथ । बेटे के चेहरे पर कौतुक के भाव थे । पर मां के माथे पर बल पड़े हुए थे । माहौल की खुश्की देख कर मैंने यू टर्न ही लेना उचित समझा । बस फिर क्या था । फिर से हम उसी पुराने जाने पहचाने रास्ते पर चल पड़े । मैडम ने सबसे पहले संगीत का रुख रेडियो से हटा कर फोन के मीडिया पर कर दिया। फिर लगीं नेट पर अच्छा मॉल अच्छा मल्टीप्लेक्स खोजने । बेटा थोड़ी देर के बाद पीछे वाली सीट पर पड़ के सो गया । अब सबसे पहले हमारा लक्ष्य था । लखनऊ पहुंच के सुबह सुबह मैटनी शो में फिल्म भुलभुलैया देखना । मैंने एक बार फिर खुद को सरेंडर कर दिया था । 

 हम सुबह समय से मल्टीप्लेक्स पहुंच चुके थे । पार्किंग के चक्कर में इधर से उधर घूमते रहे . इसी वजह से फिल्म के लिए भी लेट हो रहे थे . 

फिल्म शुरू हो चुकी थी । फिल्म में इंटरवल के पहले ही मैं सोने लगा था । बेटे के दिल में भुलभुलैया की दहशत घर करने लगी थी । वह रह रह कर डरने लगा था । पहले 45 मिनट में उसने कह ही दिया । कि बहुत डरावनी फिल्म है । पापा हम लोग इंटरवल के बाद बाहर निकल लेंगे । इससे अच्छा मॉल ही घूम लेंगे । बच्चे के दूसरी तरफ बैठी मां ने इस बात बच्चे को कई बार डांट भी लगाई । कि घर में इस फिल्म के लिए तड़प रहे थे । और यहां डर लग रहा है । तुम यह समझ लोग अगर यह फिल्म उतर जाती तो फिर देखने को न मिलती ।  बकौल मैडम यह फिल्म एक बेहतरीन हॉरर कॉमेडी है । मुझे न ही उसमें कौमेडी नजर आई और न ही हॉरर महसूस हुआ । इस पूरी फिल्म को मैने ऊंघते हुए देखी , बच्चे ने डरते हुए और उनकी मां ने डांटते हुए। हम तीनों ने किसी तरह से फिल्म खत्म की । 

अब हम लोग फीनिक्स मॉल के सबसे ऊपर वाले माले पर फूड कोर्ट में आ गए थे । कुछ छिटपुट नोकझोंक के साथ हम सबने लंच किया

। मेरे दिमाग में बच्चे के दिमाग पर उस फिल्म का असर चल रहा था । मुझे लग ही रहा था । कि यह अब नही तो तब फटेगा ही । मॉल के ग्राउंड फ्लोर पर बच्चों के लिए कुछ एक्टिविटी करवाई जा रही थी । जिसमें ड्राइंग , बॉक्सिंग और साइंस के कुछ खेल खिलाए जा रहे थे । हम एक्टिविटी वाली जगह आ गए थे । मैडम ने इस दौरान कुछ और दुकानों को खंगालने का फैसला लिया । मैंने बच्चे का एक्टिविटी में रजिस्ट्रेशन करवा दिया । उससे कहा कि तुम ड्राइंग करो और बाकी खेल खेलो । मैं कुछ देर में आता हूं । मैं छुप छुप के बच्चे को दूर से देखता रहा । वो कुछ असहज लग रहा था । काफी देर तक वह ड्राइंग पेपर हाथ में लिए बैठा रहा । फिर उसने कुछ रंग भरने शुरू किए। लेकिन उन रंगों में वो बात नही थी । जो वो आम तौर पर भरता है । आम तौर पर आम दिनों में उसका रुझान आर्ट और क्राफ्ट पर खूब रहता है । पर फिर भी वो आज कुछ नही कर पा रहा था।  मैं बीच बीच में उसका हौसला बढ़ा जाता । और छिप छिप उसे देखता रहता ।  उसने कुछ आकृतियां गढ़नी शुरू की थीं। अन्य बच्चे पूरी तल्लीनता से अपने कार्य में व्यस्त थे । 

मैंने चुपके से तस्वीर खींचने को अपना फोन निकाला । तो स्क्रीन पर अनजान नंबर की कई मिस कॉल देखी। मैंने वापस कॉल की तो पता चला कोई मैडम आप को फोन मिला रही थी । उनका फोन खो गया है । शायद वो कहीं ढूंढ रही हों या आप के पास आ रही हों । ठीक उसी समय देखा मैडम मेरी तरफ दौड़ी चली आ रही हैं । चेहरे के रंग फीके पड़ गए थे । कांपती हुई आवाज में उन्होंने बताया कि उनका फोन कहीं खो गया है या किसी ने उठा लिया है । हमने फोन सबसे पहले बच्चे के एक्टिविटी वाली जगह से ढूंढना शुरू किया  । एक्टिविटी रजिस्ट्री के दौरान मैडम ने आई डी निकालने के लिए यहां अपना बैग खोला था । हमारी इस खोज में बेटा भी साथ हो लिया । 

      पहले हमने मॉल के अलग अलग फ्लोर पर जा कर देखा । फिर जहां जहां मैडम गई थी वहां के क्लोज सर्किट कैमरे की फुटेज खोजी । 5 घंटे की अथक खोज के बाद भी मैडम का फोन हमें नही मिला। मैडम को इस बात की गिल्ट महसूस हो रही थी । कि उनकी वजह से हमारी लॉन्ग ड्राइव चौपट हो रही है । पर बेटे और मेरे पास उनका साथ देने के अलावा कोई चारा नहीं था । हम लोगों की भूख उड़ी हुई थी । फोन के खोने का सदमा मैडम के चेहरे पर साफ साफ दिख रहा था । शाम पूरी तरह से ढल चुकी थी । बच्हम मॉल से निकल कर फिलहाल के घर जाने के लिए निकल पड़े थे । रास्ते में हमने फोन के सिम को ब्लॉक और नए सिम को लेने की कार्यवाही कर दी थी । हम लोग 15 किलोमीटर अपने रहवास की ओर निकल आए थे । 

       मैडम का मोबाइल पहले बहुत देर स्विच ऑफ रहा । फिर उस पर घंटी जाने लगी । घर पहुंचने से पहले मैंने अपने फोन खोए हुए फोन पर एक मेसेज डाला। " भाई साहब फोन वापस कर दें , 5000 रुपए इनाम के तौर पर देंगे " इस मेसेज के करीब 20 मिनट बाद उसी फोन पर किसी ने कॉल उठा कर बात की । रात होने की बात कर उन्होंने सुबह बताए गए पते पर फोन लेने की बात कही । समय की सहमति के बाद 20 किलोमीटर दूर हमें तय जगह पर फोन दे दिया गया । मैंने उनके जेब में 5000 रुपए रख दिए । जिसको लेने से उन्होंने तनिक भी इंकार नहीं किया। उन्होंने बताया कि जब हम मॉल में थे । उसी समय मैडम का फोन कहीं पर पड़ा मिला । जिसको धोखे से इन सज्जन ने अपना समझ जेब में रख लिया था । घर आकर बच्चों ने बताया कि फोन उनका नही है । और उन्होंने फोन उठा के हमें इसकी जानकारी दे दी । 

हम सब इस घटना के बाद बहुत थक गए थे । मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से भी । हम बाप बेटे केवल अफ़सोस करते रहे . कि यदि हमने यहाँ आने का फैसला न किया होता . तो शायद इतना सब नहीं होता . 

कभी नही !

 


कोई आग है दबी सी

बरसों से सीने में 

धधकती देहं से पिघला

यूं लावा कभी नही


लुढ़कती सुर्ख बूंदे

चेहरे से पसीने की 

लरज़ती आँख का पानी

हुआ गाढ़ा कभी नही 


दहर की पीठ पर बैठी 

जो तुम मासूम सी

सिहर कर जान से जाना

जाना कभी नही 


जलाने को मशालें

थीं बहुत अदीब की 

तुम्हारी रूह ने लिक्खीं

किताबें कभी नही !

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...