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बुधवार, 15 जून 2022

खरबूज़े !


सुबह 5 बजे खरबूजे की मंडी लग के तैयार हो जाएगी। आस पास के सारे किसान ट्रैक्टर ट्रॉली एवम् साईकिल की कैंची पर खरबूजे लाद के सुबह मंडी करने पहुचेंगे। इस बार मौसम की आना कानी के चलते खरबूजे का स्वाद फीका रहा। ऊपर से लॉक डाउन की वजह से यहां का खरबूजा बाहर नहीं जा पाया।
        खरबूजा और भूरा का पक्का याराना है । भूरा को मालूम है । खरबूजा बिका सो बिका । बाद बाकी लेधरी के बीज उसे तार ही देंगे। भूरा के जीवन की बड़ी से बड़ी चिंताएं कुछ ही देर ठहरती हैं । पूरे गांव की चिंता में भूरा की शादी की चिंता शामिल रहती । पर भूरा " धत्त " कह कर सभी चिंताओं को खारिज़ कर देते । भूरा कभी पहलवानी करते थे । लिहाजा उनकी ताल हमेशा ठुक ने को तैयार रहती । 
इस सीजन भूरा अपना खरा माल पहले ही औने पौने बेच चुके हैं। अब बचा खुचा माल दागी है। दागी हैं इसलिए अभी शाम को खरबूजे मंडी पहुंचाएंगे। और दागी वाले स्थान पर गीली मिट्टी से लिसाई करेंगे। दिन उतरते , मंडी में आस पास के व्यापारी आ जाते हैं । भाड़े की गाड़ी की वापसी में कोई भी माल़ चलेगा । इसलिए भूरा को  कुछ बेहतर दाम मिल सकते हैं । वो दिनमुंदे मंडी में तय स्थान पर खरबूजे डालने की नीयत से निकले। साईकिल की कैंची के बीच धुरे के ऊपर पल्ली बंधी है। पल्ली में खरबूजे भरे हैं। खरबूजों के ऊपर पल्ली के किनारे तराजू  खुंसा है, आधा किलो, एक किलो और पांच किलो के बांट भी हैं। पहली दूसरी के बाद तीसरी खेप में बीच रास्ते भूरा की साईकिल दगा दे जाती है। साईकिल की कैंची टूट के दो खंड हो जाती है। भूरा के अफसोसनाक मुंह से निकलता है "तोरी माहतारी क .... !
        भूरा किसी जाने पहचाने राहगीर से टूटी पड़ी साईकिल रखाने को कह कर खरबूजों को हिल्ले लगा आते हैं। लौट कर साईकिल को कभी कांधे पर, तो कभी सर पर लादने की कोशिश करते हैं। पर कैंची टूटी साईकिल संभालनी मुश्किल पड़ जाती है। एक दो बार पल्ली में भरने की कोशिश करते हैं तो वो छोटी पड़ जाती है। अंधेरे में वो दांतों के बीच दबे मोबाइल टॉर्च से देखते हैं।
भयंकर उमस भरी गर्मी से तर बतर , झुंझलाकर वो साईकिल उठाते हैं और जमीन पर पटक देते हैं। कुछ गुस्सा ठंड होने के बाद वो सर पर बंधा गमछे के सहारे से पल्ली को बड़ा करते हैं। पल्ली में टूटी साईकिल , तराजू बांट घरीयाते हैं।  सर पर साईकिल की गद्दी रख साईकिल लाद लेते हैं।  "लौंडिया चु..... , कौन यही का रखावे.... कहते हुए अपने गांव के लिए निकल पड़ते हैं। रास्ते भर वो कहते जाते हैं। गांव वाले देखिहैं तो कहियें कि भूरा फेर पगला गया है। हंसिएं देयाखव साईकिल लादे जात है।

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