..... भद्द गर्मी में शीतल सुबह भी होती ही है । भले ही वह तनिक देर के लिए ही हो । गर्मी और लॉन्ग ड्राइव के बीच झूलते झूलते अब मैने मन बना लिया था । कि बेटे के साथ कहीं किसी अनजान रास्ते पर निकला जाएगा । सुबह से शाम तक मैने यहां अपने सारे काम निबटा लिए थे । जिससे की कुछ दिन व्यवधान न पड़े । देर शाम घर पहुंचा । मैंने अपने इस लॉन्ग ड्राइव के प्लान के बारे में बेटे और उसकी मां को छोड़ सब को बता दिया था । बेटे की दादी यानी मेरी मां ने प्लान सुनते ही हामी भर दी । वो उत्साह से बोलीं जाओ जाओ । अच्छे से घूम के आना । पर बेटे के बाबा यानी मेरे पापा को इस अतरंगी प्लान के बारे में कोई खास रुचि नहीं आई । हां उनका तर्क था जहां जाओ वो रास्ता नया होना चाहिए ।
अगली सुबह हमें निकलना था । मैं बेटा और उसकी मां । बेटे का छोटू सा हांथी के मुंह नुमा प्यारा सा पिट्ठू बैग तैयार था । मेरा गोपनीय प्लान था । कि हम यहां से कार से सुबह 4 या 5 बजे तक निकल लेंगे । हमारे शहर से कुल चार तरफ को रास्ते जाते हैं । इसमें से तीन रास्तों पर अक्सर जाना होता था । पर एक रास्ते पर हम एक या दो बार गए होंगे । चूंकि हमने इस यात्रा को नाम दिया था लॉन्ग ड्राइव । इसलिए हमारा लक्ष्य लगभग 200 किलोमीटर की राइड थी । और वहीं कहीं कुछ घूमने के लिए । पर सिर्फ मेरे तक रहने में इस बात के जोखिम बड़े थे । बच्चे के लिए तो कोई बात नही । लेकिन उनकी मां कोई सरप्राईज ज्यादा पसंद नही है ।
अब उन्हीं की गाड़ी से इस यात्रा को अंजाम देना था । लिहाजा उनको विश्वास में लेना जरूरी था । ठीक एक शाम पहले मैंने हल्की फुल्की बात में जगह के नाम को छोड़ कर बाकी सब पत्नी से साझा किया
।उनकी तरफ से लखनऊ का पलड़ा भारी था । उनके तर्क कुछ इस प्रकार थे । वो जगह पास है । इतनी गर्मी में कहीं किसी की तबियत खराब हो गई तो ... और फिर हमारे पास वहां रुकने की एक जगह भी है । बेटा कह रहा था भुलभुलैया फिल्म देखने को । वो छूट जायेगी तो वो आफत कर देगा । इसलिए लखनऊ जाएंगे । मॉल घूमेंगे , फिल्म देखेंगे अच्छा खाना खायेंगे । और घर में पड़े रहेंगे ।
हा हा हा हा हा । मैं मन ही मन खूब हंसा । बहुत देर तक सोचता रहा । कि ये प्लान तो मेरे प्लान से बिल्कुल अलग है । न इसमें कुछ नयापन है । न ही रोमांच । फिर भी उनके प्लान को यूं ही खारिज़ करना मुनासिब नहीं समझा । अब यह मामला बेटे के साथ भी साझा करना पड़ा । उसको भी जगह का नाम बताए बगैर जगह की खासियत और यात्रा के बारे में बताया । और मां और मेरे मतों के भेद के बारे में भी बताया । उसने सिक्के से टॉस करने की सलाह दे दी । हमने टॉस किया उसमें मां जीत गई । मुझे और बेटे को अभी भी यह निर्णय अजीब सा लग रहा था । मैंने रात में ही सुबह तक इस निर्णय को पलटने के बारे में सोच रखा था । पैकिंग दोनों जगहों की संभावनाओं के हिसाब से हो गई थी ।
सुबह हम सब तैयार हो कर गाड़ी में सवार हो गए । घर से विदा लेने वाले और विदाई देने वाले दोनों पार्टियों को इस यात्रा के रुख के विषय में पक्का पक्का नहीं पता था । मैं, बच्चे और अपने मन की दिशा को फॉलो कर रहा था । गाड़ी की स्टियरिंग उसी नए रास्ते की ओर घूम चुकी थी । पापा हम लोग नए रास्ते पर जा रहे हैं न ? ... मैं कुछ उत्तर दे पाता ।
मां ने जवाब दे दिया । " हां बेटा अब तुम्हारे पापा हम लोगों को एडवेंचर कराएंगे इतनी गर्मी में । मुझे लग ही रहा था । कि ऐसा कुछ होने वाला है । मुझे इसी लिए कहीं जवास नही आती इनके साथ । बेटे के चेहरे पर कौतुक के भाव थे । पर मां के माथे पर बल पड़े हुए थे । माहौल की खुश्की देख कर मैंने यू टर्न ही लेना उचित समझा । बस फिर क्या था । फिर से हम उसी पुराने जाने पहचाने रास्ते पर चल पड़े । मैडम ने सबसे पहले संगीत का रुख रेडियो से हटा कर फोन के मीडिया पर कर दिया। फिर लगीं नेट पर अच्छा मॉल अच्छा मल्टीप्लेक्स खोजने । बेटा थोड़ी देर के बाद पीछे वाली सीट पर पड़ के सो गया । अब सबसे पहले हमारा लक्ष्य था । लखनऊ पहुंच के सुबह सुबह मैटनी शो में फिल्म भुलभुलैया देखना । मैंने एक बार फिर खुद को सरेंडर कर दिया था ।
हम सुबह समय से मल्टीप्लेक्स पहुंच चुके थे । पार्किंग के चक्कर में इधर से उधर घूमते रहे . इसी वजह से फिल्म के लिए भी लेट हो रहे थे .
फिल्म शुरू हो चुकी थी । फिल्म में इंटरवल के पहले ही मैं सोने लगा था । बेटे के दिल में भुलभुलैया की दहशत घर करने लगी थी । वह रह रह कर डरने लगा था । पहले 45 मिनट में उसने कह ही दिया । कि बहुत डरावनी फिल्म है । पापा हम लोग इंटरवल के बाद बाहर निकल लेंगे । इससे अच्छा मॉल ही घूम लेंगे । बच्चे के दूसरी तरफ बैठी मां ने इस बात बच्चे को कई बार डांट भी लगाई । कि घर में इस फिल्म के लिए तड़प रहे थे । और यहां डर लग रहा है । तुम यह समझ लोग अगर यह फिल्म उतर जाती तो फिर देखने को न मिलती । बकौल मैडम यह फिल्म एक बेहतरीन हॉरर कॉमेडी है । मुझे न ही उसमें कौमेडी नजर आई और न ही हॉरर महसूस हुआ । इस पूरी फिल्म को मैने ऊंघते हुए देखी , बच्चे ने डरते हुए और उनकी मां ने डांटते हुए। हम तीनों ने किसी तरह से फिल्म खत्म की ।
अब हम लोग फीनिक्स मॉल के सबसे ऊपर वाले माले पर फूड कोर्ट में आ गए थे । कुछ छिटपुट नोकझोंक के साथ हम सबने लंच किया
। मेरे दिमाग में बच्चे के दिमाग पर उस फिल्म का असर चल रहा था । मुझे लग ही रहा था । कि यह अब नही तो तब फटेगा ही । मॉल के ग्राउंड फ्लोर पर बच्चों के लिए कुछ एक्टिविटी करवाई जा रही थी । जिसमें ड्राइंग , बॉक्सिंग और साइंस के कुछ खेल खिलाए जा रहे थे । हम एक्टिविटी वाली जगह आ गए थे । मैडम ने इस दौरान कुछ और दुकानों को खंगालने का फैसला लिया । मैंने बच्चे का एक्टिविटी में रजिस्ट्रेशन करवा दिया । उससे कहा कि तुम ड्राइंग करो और बाकी खेल खेलो । मैं कुछ देर में आता हूं । मैं छुप छुप के बच्चे को दूर से देखता रहा । वो कुछ असहज लग रहा था । काफी देर तक वह ड्राइंग पेपर हाथ में लिए बैठा रहा । फिर उसने कुछ रंग भरने शुरू किए। लेकिन उन रंगों में वो बात नही थी । जो वो आम तौर पर भरता है । आम तौर पर आम दिनों में उसका रुझान आर्ट और क्राफ्ट पर खूब रहता है । पर फिर भी वो आज कुछ नही कर पा रहा था। मैं बीच बीच में उसका हौसला बढ़ा जाता । और छिप छिप उसे देखता रहता । उसने कुछ आकृतियां गढ़नी शुरू की थीं। अन्य बच्चे पूरी तल्लीनता से अपने कार्य में व्यस्त थे ।
मैंने चुपके से तस्वीर खींचने को अपना फोन निकाला । तो स्क्रीन पर अनजान नंबर की कई मिस कॉल देखी। मैंने वापस कॉल की तो पता चला कोई मैडम आप को फोन मिला रही थी । उनका फोन खो गया है । शायद वो कहीं ढूंढ रही हों या आप के पास आ रही हों । ठीक उसी समय देखा मैडम मेरी तरफ दौड़ी चली आ रही हैं । चेहरे के रंग फीके पड़ गए थे । कांपती हुई आवाज में उन्होंने बताया कि उनका फोन कहीं खो गया है या किसी ने उठा लिया है । हमने फोन सबसे पहले बच्चे के एक्टिविटी वाली जगह से ढूंढना शुरू किया । एक्टिविटी रजिस्ट्री के दौरान मैडम ने आई डी निकालने के लिए यहां अपना बैग खोला था । हमारी इस खोज में बेटा भी साथ हो लिया ।
पहले हमने मॉल के अलग अलग फ्लोर पर जा कर देखा । फिर जहां जहां मैडम गई थी वहां के क्लोज सर्किट कैमरे की फुटेज खोजी । 5 घंटे की अथक खोज के बाद भी मैडम का फोन हमें नही मिला। मैडम को इस बात की गिल्ट महसूस हो रही थी । कि उनकी वजह से हमारी लॉन्ग ड्राइव चौपट हो रही है । पर बेटे और मेरे पास उनका साथ देने के अलावा कोई चारा नहीं था । हम लोगों की भूख उड़ी हुई थी । फोन के खोने का सदमा मैडम के चेहरे पर साफ साफ दिख रहा था । शाम पूरी तरह से ढल चुकी थी । बच्हम मॉल से निकल कर फिलहाल के घर जाने के लिए निकल पड़े थे । रास्ते में हमने फोन के सिम को ब्लॉक और नए सिम को लेने की कार्यवाही कर दी थी । हम लोग 15 किलोमीटर अपने रहवास की ओर निकल आए थे ।
मैडम का मोबाइल पहले बहुत देर स्विच ऑफ रहा । फिर उस पर घंटी जाने लगी । घर पहुंचने से पहले मैंने अपने फोन खोए हुए फोन पर एक मेसेज डाला। " भाई साहब फोन वापस कर दें , 5000 रुपए इनाम के तौर पर देंगे " इस मेसेज के करीब 20 मिनट बाद उसी फोन पर किसी ने कॉल उठा कर बात की । रात होने की बात कर उन्होंने सुबह बताए गए पते पर फोन लेने की बात कही । समय की सहमति के बाद 20 किलोमीटर दूर हमें तय जगह पर फोन दे दिया गया । मैंने उनके जेब में 5000 रुपए रख दिए । जिसको लेने से उन्होंने तनिक भी इंकार नहीं किया। उन्होंने बताया कि जब हम मॉल में थे । उसी समय मैडम का फोन कहीं पर पड़ा मिला । जिसको धोखे से इन सज्जन ने अपना समझ जेब में रख लिया था । घर आकर बच्चों ने बताया कि फोन उनका नही है । और उन्होंने फोन उठा के हमें इसकी जानकारी दे दी ।
हम सब इस घटना के बाद बहुत थक गए थे । मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से भी । हम बाप बेटे केवल अफ़सोस करते रहे . कि यदि हमने यहाँ आने का फैसला न किया होता . तो शायद इतना सब नहीं होता .
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