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रविवार, 2 नवंबर 2025

राह कटे संताप से !

फिर झुंझलाकर मैने पूछा

अपनी खाली जेब से 

क्या मौज कटेगी जीवन की

झूठ और फरेब से 

जेब ने बोला चुप कर चुरूए

भला हुआ कब ऐब से 


फिर खिसिया कर मैने पूछा

अपने भारी पेट से 

क्या भार घटेगा पेट का

रुखी सूखी खाए के 

पेट ने बोला चुप कर लुबरा 

भार घटे ना अघाये से


फिर तन्ना कर मैने पूछा

अपने आत्म विवेक से 

क्या राह कटेगी जीवन की

संघर्षों की थाप से 

विवेक ने बोला चुप कर पगले

राह कटे संताप से !



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राह कटे संताप से !

फिर झुंझलाकर मैने पूछा अपनी खाली जेब से  क्या मौज कटेगी जीवन की झूठ और फरेब से  जेब ने बोला चुप कर चुरूए भला हुआ कब ऐब से  फिर खिसिया कर मैन...