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बुधवार, 24 जून 2015

*****कटोरा भर नौकरी***


बाज़ार में कुछ नयी सरकारी भर्तियाँ आने वाली हैं , दबे पाँव .... सूचना देने वाले ने कहा है कि किसी को कानों कान खबर नहीं होनी चाहिए, वरना हल्ला मच जायेगा. पिछले कई मामले हो-हल्ला के कारण खटाई में पड़ गए थे ..... एक काम करवाने वाले से संपर्क हुआ है, कहता है “ मामला पक्का है, ज्यादा लोगों को मत बताना, केवल सगे सम्बन्धियों के लिए केस हाँथ में लेता हूँ”..... सुनो बेटा, फिर कह रहा हूँ ऐसे मौके बार बार नहीं आते, तुम बस फ़ार्म भर दो, बाकी का सब वो देख लेगा.......जी पापा....लेकिन पैसे ?..
अरे तुम पैसों की चिंता मत करो, कैसे भी जोड़ गाँठ के हो जायेगा. देखो न, द्विवेदी जी ने अपने लड़के को 3 साल पहले 6 देकर काम करवाया था. आज उसके लड़के को 2 साल से नौकरी कर रहा है..दो तीन साल में अदा हो जायेगा उसका पैसा, लेकिन नौकरी तो पक्की है. और शेखर के केस में, उसको नौकरी जरुर नहीं मिली थी लेकिन साल छह महीने में पैसे वापस मिल गए. अब रिस्क तो हर जगह है, नो रिस्क नो गेन!....ठीक है पापा देखता हूँ मैं .
प्रदेश सरकार के विभिन्न विभाग ने भरती विज्ञापन निकलवा कर प्रक्रिया शुरू कर दी...
खैर उसने फार्म भर तो दिया लेकिन उसे ठीक नहीं लग रहा था. अपने दोस्तों, घर के बड़े बुजुर्गों और जानने वालों की राय भी पिता कि सलाह कि लीक पर ही थी.
आज भारती परीक्षा का दिन था, इतवार की छुट्टी के बावजूद शहर की सड़कों पर हजारों की तादात में परीक्षार्थी दिख रहे थे. बसों, ट्रेनों में ठूंस ठूंस के प्रदेश के कोने से लाखों परीक्षार्थी एक अदत नौकरी की चाह में वहाँ आये थे. सड़क किनारे पानी के पाउच वालों, पुदी सब्जी, स्टेशनरी, फोटोस्टेट की दुकानों पर मेला लगा हुआ था. एक दिन पहले से ही शहर के स्टेशन, बस स्टैंड पर गमछा बिछाए, परीक्षा की तैयारी में जुटे थे. सबको परीक्षा में अच्छा लिखने की पड़ी थी.पर उसे परीक्षा के सही लिखने से ज्यादा उसमे कुछ न लिखने से तकलीफ थी. उससे उत्तर पुस्तिका को खाली जमा करने के लिए कहा गया था, जिससे कि उसमे बाद में सही उत्तर भरे जा सकें.
परीक्षा खत्म हो होती है. एक लम्बे युद्ध के बाद, बिना युद्ध के परिणाम की परवाह किये हुए और अगले युद्ध की तैयारी में सभी योद्धा अपने खेमे में चले जाते हैं. वह देर रात तक परीक्षा केंद्र के पास उन हजारों परीक्षार्थियों के संघर्ष और 10 से 5 लाख रुपयों के बारे में सोचता रहा...वह अपनी उत्तर पुस्तिका के हर पन्ने पर लिख कर आया था “मैं नौकरी नहीं खरीदूंगा”.
अरे तुम पैसों की चिंता मत करो, कैसे भी जोड़ गाँठ के हो जायेगा. देखो न, द्विवेदी जी ने अपने लड़के को 3 साल पहले 6 देकर काम करवाया था. आज उसके लड़के को 2 साल से नौकरी कर रहा है..दो तीन साल में अदा हो जायेगा उसका पैसा, लेकिन नौकरी तो पक्की है. और शेखर के केस में, उसको नौकरी जरुर नहीं मिली थी लेकिन साल छह महीने में पैसे वापस मिल गए. अब रिस्क तो हर जगह है, नो रिस्क नो गेन!....ठीक है पापा देखता हूँ मैं .प्रदेश सरकार के विभिन्न विभाग ने भरती विज्ञापन निकलवा कर प्रक्रिया शुरू कर दी...खैर उसने फार्म भर तो दिया लेकिन उसे ठीक नहीं लग रहा था. अपने दोस्तों, घर के बड़े बुजुर्गों और जानने वालों की राय भी पिता कि सलाह कि लीक पर ही थी.आज भारती परीक्षा का दिन था, इतवार की छुट्टी के बावजूद शहर की सड़कों पर हजारों की तादात में परीक्षार्थी दिख रहे थे. बसों, ट्रेनों में ठूंस ठूंस के प्रदेश के कोने से लाखों परीक्षार्थी एक अदत नौकरी की चाह में वहाँ आये थे. सड़क किनारे पानी के पाउच वालों, पुदी सब्जी, स्टेशनरी, फोटोस्टेट की दुकानों पर मेला लगा हुआ था. एक दिन पहले से ही शहर के स्टेशन, बस स्टैंड पर गमछा बिछाए, परीक्षा की तैयारी में जुटे थे. सबको परीक्षा में अच्छा लिखने की पड़ी थी.पर उसे परीक्षा के सही लिखने से ज्यादा उसमे कुछ न लिखने से तकलीफ थी. उससे उत्तर पुस्तिका को खाली जमा करने के लिए कहा गया था, जिससे कि उसमे बाद में सही उत्तर भरे जा सकें.परीक्षा खत्म हो होती है. एक लम्बे युद्ध के बाद, बिना युद्ध के परिणाम की परवाह किये हुए और अगले युद्ध की तैयारी में सभी योद्धा अपने खेमे में चले जाते हैं. वह देर रात तक परीक्षा केंद्र के पास उन हजारों परीक्षार्थियों के संघर्ष और 10 से 5 लाख रुपयों के बारे में सोचता रहा...वह अपनी उत्तर पुस्तिका के हर पन्ने पर लिख कर आया था “मैं नौकरी नहीं खरीदूंगा”.

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...