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सोमवार, 20 मई 2019



फूल बाज़ार !

फूल बाज़ार के धन्नी सुबह 3 बजे चल देते हैं अपने घर से। हेलमेट पहने धन्नी, लुंगी में फूलों का गट्ठर बांधे 30 किलोमीटर की दूरी से आते हैं। धन्नी जैसे तमाम और धन्नी।  "गेंदा" वाले होते हैं। गुलाब वाले रसिकलाल सुबह 6 बजे आते हैं। छोटी छोटी पोटली बांधे, साइकिल पर शहर के आस पास से आते हैं। 6 बजे के बाद कमल का फूल, लिली, बेलपत्री, नारगुज़रिया बाकी के सब आते रहते हैं झोलों में।
  अपनी जड़ों से उखड़े हुए फूल महक देते हैं। छिटके जमीन पर गिरे फूल, सूख के गुलगुले गद्दे हो जाते हैं। सबसे मज़ेदार बात यह है। चिड़ियाँ न जाने क्या फूलों में चुनने आती हैं। गैरिया भी । भवरें, मधुमक्खियां, ततैया को शायद टूटे हुए फूल पसंद नही हों। चिड़ियाँ डरती तक नहीं उनसे जिन्होंने फूल तोड़े हैं। धन्नी और रसिकलाल जैसे लोगों के पैरों के बीच फुदकती हैं। उनके सामने उनकी डलिया के फूलों में चोंच मार कर कुछ बीन ले जाती हैं। वो बीना हुआ दिखाई नही देता।
   फूलबाज़ार के रंग, महक और रस एक बड़े से नाले के पास रखे जाते हैं बिक्री के लिए। फूलबाज़ार के फूल भगवान से शैतान तक चढ़ने के लिए तैयार रहते हैं।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

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