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बुधवार, 19 मार्च 2014



सवाल जीवन  के मुखर होते अचानक

तेरे,मेरे, सभी के !
नस्तर से चुभते सवाल 
मेरे रोम रोम को 
दर्द कि असीमित श्रंखलाओं में  
पिरोते हैं , 

निरुत्तर कराहता मैं 
जुटाता हूँ साहस
दृढ़ता से उत्तर देने को 
सब सवालों का,
पर सवालों का पैनापन 
नहीं भेद पाता
मेरे धैर्य को 

मालूम है 
कोमल झूठ के तानों बानों का 
बुनकर 
मेरे ही अंदर 
पनपता इंसान 
घूमता है तुम सब कि 
खुशियों के  इर्द गिर्द 

सवाल सवालों का नहीं यहाँ 
सरोकारों का है
जीवन के अंतिम साँसों
के साथ 
जब सरोकार जाते रहेंगे 
जवाब रिक्त से भरे हुए 
खुद ब खुद मिल जायेंगे …… प्रभात सिंह

गुरुवार, 6 मार्च 2014

एक ग्लास चाय !

"एक कप चाय"  हमारे दैनिक जीवन  का अभिन्न हिस्सा जरुर बन गया है, लेकिन "एक ग्लास चाय" जिसने भी पी ली  उसे इस आदत पर अफ़सोस के साथ बदलने कि इक्छा भी होती होगी,यहाँ एक ग्लास चाय से मतलब कांच कि ग्लास(नमो चाय) से बिलकुल नहीं है,स्टील कि ग्लास भर चाय,चूल्हे पर पकी शुद्ध दूध से बनी सोंधी खुश्बू और स्वाद वाली चाय किसी ब्रांडेड चाय पत्ती  कि मोहताज नहीं होती,चाय पत्ती  चाहे मोहिनी हो या डंकन कि.….आज लकनऊ से करीब 10 किलोमीटर दूर एक गाँव में किसी मुद्दे पर रिपोर्टिंग के लिए जाना हुआ.…खाँटी देशी आओ भगत,जान न पहचान के बावजूद  भी  बाहर दालान से घर कि देहरी लांघने में थोडा ठिठका लेकिन  चौके के पास गर्मागरम "एक गिलास चाय" से ऐसा लगा आदमी आदमी को क्या देगा जो भी देगा …। लचीली(कुछ बनावटी सी ) आवाज में अम्मा,चाची,दादी और दाऊ के सम्बोधन से मैंने उनको अपना बनाने कि कोशिश की लेकिन यह भूल गया कि वह "एक गिलास चाय" चेहरा,कपडे,जाती पैसा देख कर नहीं आती है  ,वह चाय तो समाज के सबसे निचले तबके कि जर्जर रसोई से आती है जहाँ इंसानियत का  चूल्हा जलता रहता है विकास कि तेज़ हवाओं से बचकर।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...