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रविवार, 31 जनवरी 2021

नो इंट्री !













 

आज का दिन बड़ा ही अशुभ रहा।  रास्ता दोबारा तय करने से उभाऊ और नीरस हो जाता है। यूँ तो दोबारा आधा रास्ता ही तय करना पड़ा। पर आधा रास्ता पूरा करना सा लगा। सुबह सुबह वहाँ सब को काम समझाया। एक ठीहे से दूसरे ठीहे के लिए निकलने पर तमाम सारी तैयारी करनी पड़ती हैं।  काम की अधिकता के कारण जाना कई बार टालता रहा। हालांकि जाना इतना जरूरी भी नही था। फिर भी घने कोहरे को भेदता निकल पड़ा। हर बार की तरह जरूरत से ज्यादा सामान मेरे कंधे पर लदा था। मेरा बैग दूसरे ठीये से भेजी गई लंबी चौड़ी घर गिरहस्ति की लिस्ट के अनुसार भरा था ।

     बैग के कलम वाले पॉकेट में मैं न जाने कब से एक महत्वपूर्ण चाबी रखा रहा। आधा रास्ता तय करने के बाद उस चाबी की जरूरत का फोन आया। वापस आना पड़ा । चाबी दी। कुछ देर रुका और वापस अपने रास्ते चल पड़ा। चाबी के चक्कर में 4 घंटे का रास्ता 6 घंटे में बदलने जा रहा था। मैंने सुनीता को फोन कर के आज की देरी का कारण बताना चाहा। उसने बीच में ही मेरी बात काट दी।  " मुझे मालूम था , तुम आज भी लेट आओगे"  कहते हुए उसने फोन काट दिया। काश फोन न होते। तो हमारे रिश्ते समय का एतिहाद बरतते।
     इस बात ने मेरे भीतर झुंझलाहट पैदा कर दी थी। रास्ते भर जो अभी कुछ देर पहले देख रहा था, सोच रहा था । वो अब वैसा एक दम नही था । पहले इस रास्ते पर चलते हुए सब कुछ ताज़ा लग रहा था। पर अब उसी दिशा में हवा रोक रही थी।  कंधे पर टंगा बैग और भारी हो चला था। कोहरा अब नही था।  बाएं तरफ सूरज सरसों के खेतों के और करीब आता जा रहा था। शाम और चढ़ी जा रही थी। हवा में सिहरन बढ़ गयी थी । पछुआ हवा ने पुरवैया हवा की जगह ले ली थी। बचा हुआ रास्ता लंबा होने लगा था।
    सुबह सोचा था कहीं रुक के एक चाय पियूँगा। मैंने इस रास्ते कई चाय के ठीहे बना रखे हैं। हर बार बदल बदल के इस रास्ते पर ब्रेक लेना मेरी आदत में हो गया था। पर आज तो जैसे यह रास्ता एक अजनबी की तरह व्यवहार कर रहा था। बाइक की बत्ती कम होने से अंधेरा होने से पहले दूसरे ठीये पहुँचना था। सर्दियों के दिन छोटे न होते तो इस रास्ते की इतनी हड़बड़ाहट न होती।
     बच्चे की बीमारी की ख़बर सभी को विचलित करती होगी। मुझे भी कर रही थी। ऐसा मैं लगातार महसूस करने की कोशिश कर रहा था। मन कर रहा था जल्द से जल्द बच्चे के सिरहाने लेट जाऊँगा। हम दोनों मुस्कुरायेंगे, खेलेंगे और ढिशुम ढिशुम करेंगे। उसकी तबियत और मेरी थकान ठीक हो जाएगी।  सुनीता सुबह सुबह फोन पर विचलित थी। सुबह फोन कर के पता नही क्या अजीब अजीब बोल रही थी। कह रही थी मेरी यादाश्त कहीं खो गयी है। तुम्हे कुछ याद नही रहता है।  उस समय मन में  मैं बार बार खुद से यही सवाल कर रहा था। पर मुझे ऐसा महसूस नही हुआ। मुझे अपने बारे में कम से कम औरों से ज्यादा मालूम रहता है।
कल शाम उसने बच्चे की तबियत के बारे में बताया था। मुझे इस सुबह भी याद है। तभी निकला। फिर भी यह सवाल अटक गया दिमाग में। उसको आज सुबह फोन ही तो नही कर पाया। भूल गया फोन करने को। जैसे महत्वपूर्ण चाबी भूल गया था। वहां देने को। जहाँ से आ रहा था।
फिर से उसी रास्ते पर आधा रास्ता तय कर चुका था। थोड़ी देर पहले क्रॉसिंग के ब्रेकर पर ट्रक , ट्रेलर व अन्य  गाड़ियां मटक मटक के गुजर रहीं थी। दूर से देखा तो अब उसी रेलवे क्रॉसिंग के पास पुलिस दिख रही थी। मैंने क्रासिंग के इस तरफ बाइक खड़ी की। अपने सारे कागज़ चेक किये। सभी कागज़ पूरे थे। हेलमेट पहना हुआ था। आश्वस्त था कि कागज़ पूरे हैं। कोई व्यवधान नही होगा। देर से ही सही पर दिन रहते पहुच जाऊंगा। कागज़ ऊपर वाली जेब में रख के वापस ड्राइव करने लगा। क्रोसिंग के उस पार पुलिस कुछ लिख रही थी। मोड़ पर सड़क किनारे कुछ पड़ा हुआ था। पास जाकर देखा तो एक साइकिल पड़ी थी। साइकिल के कैरियर में कुछ लकड़ियां बंधी हुई थी। साइकिल का हैंडल सड़क में धँसा था। आगे और पीछे का पहिया ठीक ठाक था। उसी के पास में एक बच्चा पड़ा हुआ था। बच्चे का दाहिना हाँथ सड़क किनारे जंगली घास पकड़े हुए था। बच्चे का चेहरा देख ऐसा लग रहा था जैसे बच्चा अभी अभी सोया हो। पर उसके पेट की अंतड़ियाँ बाहर थीं। पैर मुड़े हुए थे। माँस से सफेद हड्डियाँ निकली पड़ रही थी। सड़क के एक तरफ खून से सने बड़े बड़े टायरों के निशान थे। एक लल गुदिया अमरूद सड़क पर छितरा पड़ा था।
   पुलिस वाले आपस में लड़के की शिनाख्त करने की कोशिश कर रहे थे। पंचनामा भर रहे थे। कुछ दूर पर एक ट्रक खड़ा हुआ था। उसमें कोई नही था। आस पास के पेड़ मौन थे। मैंने उस ट्रक के केबिन से एक सफेद रंग का गमछा देखा। और पुलिस की इजाज़त से उस बच्चे को ढाँक दिया। मुझे लगा कि यदि उस बच्चे का पेट और पैर न होते तो वो जरूर उठ खड़ा होता। लकड़िया उठाता और साइकिल से चल देता। घर की ओर।
  मौका ए वारदात पर भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। स्थानीय लोग उस बच्चे का नाम अल्ताफ़ बता रहे थे। जो कल ही अपनी मौसी के यहां आया था। जंगल से लकड़ी बीनने गया था। कुछ ही देर में एक और बच्चा आया। अल्ताफ़ के ऊपर गिर गिर के रोने लगा। पुलिस उससे पूछताछ करती रही। वह दूसरे बच्चे पर बिलख बिलख के रोटा रहा। मैं दूर खड़ा रोने को था। तभी मुझे अपने बच्चे का ध्यान हो आया। मैंने फिर से बाइक स्टार्ट की। चलने लगा। मैं उस दृश्य से जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था। पर वह मेरे साथ चलता रहा। मैं दाएं बाएं कहीं कुछ देख नही पा रहा था। बस बाइक पर एक्सेलरेटर खींचे पड़ा था। बाइक की आवाज़ ट्रक की जान पड़ रही थी। जहाँ जाना था , वहाँ जल्द से जल्द पहुँचना था। एक समय मुझे लगा कि मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा है। लगातार उबकाई आये जा रही थी। मैंने शहर के थोड़े पहले सड़क के किनारे नो इन्ट्री बैरिकेडिंग के पास बाइक रोकी। चाय की दुकान पर एक बुजुर्ग महिला से चाय बनाने को कहा। वह एक दम तैयार नही थी। उसने चाय बनाने की प्रक्रिया चूल्हा जलाने से शुरू की। चूल्हे में सूखी लकड़ियां डाली। आग जलाई। चाय का खाली बर्तन रखा। मैं उनसे कुछ पूछता। उन्होंने कहा । अब भइया यहां बहुत कम गाड़ियाँ रुकती हैं। पुलिस वाले ले देकर नो इंट्री से गाड़ी जाने देते हैं। मैं उस महिला से सड़क के जानलेवा होने की बातें सुनता रहा। और चाय पर चाय पीता रहा। 

रविवार, 24 जनवरी 2021

पहली किताब !

 तुम्हारी किताब का अक्षर

प्रेम में भीगा हुआ

तर बतर आंखों में 

तैरता मासूम मुलायम

ख़्वाब हो जाता बादल


आकाश में उड़ता

पैर पसारे एक साँझ

जा बैठता है

रोओं के पास 


पढ़ने की तीव्र ललक

पीछे खींचती पढ़ने से

मन व्याकुल छटपटाता

भागता अक्षरों के पीछे


मायनों की तलाश में

उल्टे सीधे रास्तों का डर जाता

सींचता लम्हों को

बहने की प्रेरक कहानियों में


जीवन की पहली किताब

पहला अक्षर

नई किताब का नशा

चढ़ता सिर जाकर ।

सोमवार, 18 जनवरी 2021

माया !

गहरी भूरी आंखों ने

पीकर अथाह खारापन

रचा चित्र संसार

नभ के विशाल आंगन में


नीला समंदर देंह पर

सींचता स्वर्ण कमल

पैरों में मील का पत्थर

होता पहाड़, जंगल


अधरों का दावानल

पिघलाता बर्फ की चट्टाने

सोख लेता रोम रोम

रेत का खुरदुरापन 


आग से राग का खेल

खेलता जीवन

पानी से पानी खेलता

चिर यौवन 


जाने कहाँ रहता मन

बहता , जड़ हो जाता

ढूँढता एकांत ।


शनिवार, 16 जनवरी 2021

मुबारक



 बीती रात सोच लिया था

सुबह, बीती चाहत बिसराऊ  

मिटने के नज़दीक जीवन 

कही जाकर रख आऊँ 


अंजुरी भर प्रेम , नोंक भर दुःख 

महसूसने के खाली भण्डार रख आया 

चिड़ियों  के घोसलों में  

मजदूरों की कोठरी में 


वापस आया खाली घर कर के 

आसमानी रंग की दीवारों पर 

लिखता रहा बीता 


रात बरसने को भूल गयी थी 

कोई नशा नहीं था 

सुबह नेमतों की बारिश 

मुझे भिगो के उड़ गयी 

धरती जैसे आज ही हरी हुयी थी .

गुरुवार, 14 जनवरी 2021

माफीनामा

 अरे अरे अरे ......

तमीज से पेश आइये , आप मुझे धक्का क्यों दे रहे हैं ? मैं चल रहा हूँ ना 

... चल बे (गर्दन के पीछे कॉलर पकडे हुए सिपाही जैसे हांक रहे हों )

देखिये आप लोग समझ नहीं रहे हैं . मैंने उसे हाँथ तक नहीं लगाया . 

... चल ना . अभी निकलती है तेरी गर्मी . सब पता चल जायेगा किसने मारा, किसने नहीं मारा .

साहब यही है (रोते हुए , लंगड़ाते हुए एक रिक्शेवाला उनके पीच्चे चलता हुआ ) साहब इसी ने मुझे मारा है . गिरा गिरा के मारा .

रोहन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है . वो अच्छा भला रोज़ कि तरह ट्रेन से उतरा और स्टैंड से अपनी बैक उठाने जा रहा था . कि अचानक दो सिपाहियों ने उसे दबोच लिया .ऊपर से वो रिक्शे वाला जिसे वह अक्सर अन्य रिक्शे वालों के साथ स्टैंड पर देखता था . कभी कभी गांजे और शराब की बैठकी लगते हुए .आज वह अजीब अजीब हरकतें कर रहा था . 

     सभी रेलवे चौकी पहुंचे . रोहन का हाँथ सिपहियोंन ने चौकी पहुचते छोड़ा . चौकी कोठरीनुमा तीन शेड से बनी कम चौड़ी , लम्बाई में ज्यादा दीख रही थी . दीवान जी काला चश्मा पहने , पान चब्लाते हुए फोन पर किसी की क्लास ले रहे थे . टेबल के नीच पान कि पीक मारते रोहन की तरफ देखते दीवान जी बोले ... " क्या हुआ , कहा रहते हो ? गरीब को मारोगे स्साले ....

   देखिये मैंने इसे नहीं मारा है . मैं इसके पास तक नहीं गया . मैं डेली अप डाउन करता हूँ . जैसे ही मैं ट्रेन से उतरा . स्टेशन के पोर्च से बाहर निकला . तो देखा एक आदमी किसी यात्री पर ऊँची आवाज़ में गालियाँ देकर बात कर रहा था . कुछ देर मैंने दूर से ही उस तमाशे को देखा फिर स्टैंड कि तरफ आगे बढ़ गया . न जाने कहाँ से और क्यों उस यात्री को छोड़ वो मेरे पीछे लग गया . 

  " अच्छा हजारों आदमी स्टेशन पर आ जा रहे हैं . इसने केवल तुम्ही को देखा . और तुम पर मार पीट का इलज़ाम लगाने लगा . वो रिक्शे वाला झूठ बोल रहा है क्या ? उसे क्या पड़ी झूठ बोलने की . क्या करते हो ? " दीवान ने रोहन से पूछा . 

सर मैं पत्रकार हूँ , रहने वाला सीतापुर का हूँ . लखनऊ अप डाउन करता हूँ रोज़ . यहाँ एक हिंदी दैनिक में काम करता हूँ . और सच कह रहा हूँ . मैंने इसे हाँथ तक नहीं लगाया . 

ओह तो आप पत्रकार हैं . ( दीवान ने त्योरियां चढाते हुए कहा ) तो पत्रकार हैं तो तोप हो गए हैं आप . किसी को भी राह चलते मार उठाओगे . अच्छी तरह से जानता हूँ . तुम जैसे लोगों को . गरीबों को सताने में तुम्हे मज़ा आता है . और पत्रकार होने का धौंस भी ज़माना है . मैंने कई पत्रकारों को लाइन पर ला दिया है . राम लाल इन पत्रकार महोदय को एक सादा कागज़ दो . सिपाही रामलाल ने सादा कागज़ और एक कलम रोहन के सामने टेबल पर रख दिया . 

इस पर एक माफीनामा लिख दो . कि तुमने जो भी कुछ किया वह आवेश में आ कर हुआ . आगे से ऐसा कभी नहीं होगा ...

लेकिन मैंने तो कुछ किया ही नहीं है . माफीनामा क्यों लिखूं . आप मुझे जाने दीजिये . मुझे काम के लिए लेट हो रहा है . कल गणतंत्र दिवस के अवसर पर ज्यादा काम है . यह देखिये मेरा पहचान पत्र ....

अब तुम मुझे क़ानून सिखाओगे . मुझे मेरा काम सिखाओगे . दाल दूंगा लॉकअप में सही हो जाओगे . माफीनामा लिख दो और चले जाओ . 

नहीं ... मैं माफीनामा नहीं लिख सकता . जो काम मैंने किया नहीं उसके लिए कैसा माफीनामा . 

सिपाही रामलाल रोहन के कान में फुसफुसाता है ... " लिख दीजिये माफीनामा . क्या जाता है . दीवान जी ऐसे नहीं छोड़ने वाले हैं .. पर रोहन को माफीनामा लिखना बिलकुल मंजूर नहीं हुआ . 

दीवान साहब को यह बात करेंट की तरह लगी . " आप अपना नाम पता , पिता का नाम और मोबाईल नंबर कागज़ पर लिख दो . रामलाल इससे इनका मोबाईल , पर्स , बेल्ट और सारा सामान जमा करवा लो . रोहन के मना करने के बावजूद रामलाल ने सारा सामान एक रुमाल में बाँध के चौकी की अलमारी में बन्द कर दिया . अब तुम्हे हवालात की सैर कराता हूँ ... दीवान साहब बोले ...

ठीक है जैसा आप उचित समझें ( रोहन निराश हो कर बोला ) . क्या मैं एक कॉल कर सकता हूँ घर ?

बड़ा आया कॉल कर सकता हूँ ... पहले एक करेगा फिर दूसरा करेगा . मैंने यहाँ कॉल सेंटर खुलवाया है . 

रामलाल ले जाओ पत्रकार साहब और इस रिक्शे वाले को . बन्द कर दो लॉकअप में . कुछ देर में अक्ल ठिकाने आ जाएगी . 

यह तो सरासर अन्याय है . आप मेरी बात सुन ही नहीं रहे हैं . बस एक पक्षीय कार्यवाई कर रहे हैं . यह अच्छा नहीं हो रहा है . आप चाहे तो स्टेशन का सी सी टी वी फुटेज देख लें . उससे पता चल जाएगा सच झूठ का .

  उसकी किसी बात का चौकी की दीवारों पर कोई असर नहीं हो रहा था . दो सिपाही दोनों रोहन को पकडे लॉकअप की तरफ ले जाते हैं . वह रिक्शे वाला खुद बा खुद लॉकअप की और बढ़ चला . दोनों को सीलन भरे अँधेरी कोठरी में बन्द कर दिया गया . लॉकअप जी आर पी थाने के गलियारे में पड़ता है . गलियारे के दूसरी तरफ बड़ी सी ऊँची मेज पड़ी है . मेज के उस पार बड़ी बड़ी कुर्सिया पड़ी हैं . कुर्सियों पर एक महिला कांस्टेबल , मुंशी और कुछ सिपाही बैठे हैं . 

रोहन सलाखें पकड़ महिला कांस्टेबल की तरफ देख कर बुलाता है ... सुनिए सुनिए ...

महिला कांस्टेबल ने रोहन को एक नज़र देखा फिर अपने काम में व्यस्त हो गयी . बारी बारी से सभी ने रोहन को लॉकअप के भीतर असहज मचलता हुआ देखा . रोहन थक हार के वहीँ रिक्शेवाले के पास जाकर बैठ जाता है . रिक्शेवाला साढ़े 6 फीट का लंबा चौड़ा . तन पर फटे , मैले और बदबूदार कपड़े . दाढ़ी बेतरतीब छाती तक बढ़ी हुयी . बाल औघड़ की तरह . होंठ मोटे मोटे एक दम काले . बड़ी बड़ी आँखों में लाल धागों में बंधी नशे की पोटलियाँ. 

" झूठा इल्जाम क्यों लगाया मुझ पर ? , फंसा दिया तुमने नाटक फैला कर . तुम लोग इतना नशा क्यों करते हो कि कुछ होश ही न रहे . घर वालों तक नहीं बता पाया .... क्या नाम है तुम्हारा ?  रोहन ने रिक्शेवाले से पूछा . 

सरजू 

कहाँ के रहने वाले हों ? 

सीतापुर 

सीतापुर में कहाँ से ?

सिन्धोली 

और घर में कौन कौन है ?. 

घर बाहर सब छोड़ के चले आये रहन दस साल की उम्र मां . ओकरे बाद यहीं दाना पानी चलि रहा है . 

रिक्शा कब से चला रहे हो ?

पांच साल से यहीं स्टेशन पर चलाये रहे हन , उससे पहले मजदूरी , उससे पहले खेती ....सब बेकि लिहिन ... फेर भागे का भा .

कितना कमा लेते हो दिन भर में ? 

दिन भर वही 300 से 400 ...

इतना कमा लेते हो फि?र भी तुम्हारी दशा इतनी ख़राब है . इतने मैले कि तुम्हारे हाँथ का कोई पानी भी न पिए . 

क्या करते हो पैसे का ? 

बस खाने पीने में सब चला जात है ... जो कुछ बचत है ... वो साहेब के भेंट चढ़ी जात है ...

लॉकअप में पहली बार आए हो ?

नाही जब तब नंबर लागि जात है ... जब साहेब (दीवान साहेब ) की नज़र टेढ़ी हुयी जात है ... धर लीन जात हन ... फिर वही जी हुजूरी , बेगार ....

कोई दूसरी जगह चले जाओ , पुलिस किसी की नहीं होती .

सरजू फिर जोर जोर से कराहने लगा . हाय .... अम्मा मरी गैएं ... बहुत पिरात है .... 

मतलब तुम्हारे कोई चोट नहीं लगी ... तुम्हे किसी ने नहीं मारा ? फिर तुम लंगडा क्यों रहे थे ?

बचपने में एक पाँव टूटी गवा रहे ...

अरे तो तुमने मुझे क्यों फंसाया ...... रोहन खीजते हुए ... 

हाय अम्मा .... मरि गएँ .... बहुत पिरात है ... मारि डारा .... गिराए गिराए मारा .....


चुप .... चुप ... बन्द करो यह  नाटक ...( रामलाल सिपाही ने लॉकअप के पास आकर उसे फटकारा और रोहन को सलाखों के पास बुलाया )

पत्रकार जी माफीनामा लिख दीजिये . साहेब छोड़ेंगे नहीं ऐसे ..

मैंने कहा मुझे नहीं देना माफीनामा . मुझे झूठा फंसाया गया है .... क्या चाहते हो तुम सब लोग ?... खुल के बताओ .. (रोहन का जवाब साफ़ था ) 

जैसी आप की मर्जी . कुछ रूपया पैसा का जुगाड़ हो तो बताईये . साहेब से बात की जाए . आज न छूटेंगे तो एक हफ्ते के लिए अन्दर ही रहेंगे . 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस . पूरा सरकारी अमला और पुलिस महीनों तयारी करती  है इस दिन के लिए .... फिर आगे इतवार... सबकी खुमारी उतरने में टाइम लगता है .... 10000 रुपये की व्यवस्था कर लेयो . साहब के हाँथ पैसा पहुचते ही ढीले हो जायेंगे . .....( सिपाही की आवाज़ में दया का भाव साफ़ छलक  रहा था )


सरजू ... तुम कुछ क्यों नहीं बोलते कुछ ? सब तुम्हारा ही करा धरा है .... बताओ कि सब झूठ है .... (रोहन रिक्शे वाले के कंधे पर हाँथ रख के पूछता है )

साहब अब हामरे हाँथ में कुछ नहीं है . जोने कुछ है साहेब के हाँथ में है ...


4 घंटे बीत चुके थे . रोहन को लॉकअप में बन्द हुए . सरजू वहीँ लोट के खर्राटे लगाने लगा था ...

शाम होगी .... फिर रात होगी ... पूरी रात लॉकअप में ... इस बदबूदार रिक्शे वाले के साथ ....फिर पुलिस का क्या .... क्या पकड़ा दे हाँथ में ... चरस, गांजा , कट्टा , हथियार धर के चालन कर दे ...सब कुछ तो धरा लिया है ...कोई संपर्क नहीं हो पायेगा ...झूठ जब असरदार तरीके से बार बार कहा जाए तो वह क़ानून की नज़र में भी सच लगने लगता है ... उसके बाद धीरे धीरे समाज की नज़रों में ... फिर परिवार की नज़रों ....मैंने कितनी दलीलें दी .... क्या किसी को पकड़ना , लॉकअप में डालना इतना आसान होता है .... लॉकअप खुद में एक प्रताड़ना है ... ऊपर से अमानवीय व्यवहार ....( रोहन गहरी सोच में डूबा हुआ )

रामलाल सिपाही फिर आया " पत्रकार जी , क्या सोचा है ? जल्दी फैसला करो ... शाम होने को है साहब निकल जायेंगे चारबाग़ की रात सूंघने ...

ठीक है मैं लिखता हूँ माफीनामा ... पर पैसे वैसे नहीं दे पाउँगा . मेरे पास उतने पैसे नहीं होते .. (रोहन पूरी तरह से सरेंडर था ) 

अब आप साहेब से ही बात कर लीजियेगा . सिपाही बोला 

लॉकअप का दरवाज़ा खोला गया ....

चौकी पहुचते ही दीवान साहेब बोले ... क्यों पत्रकार साहेब ठंढे हो गए ? 

रोहन के में फिर से कागज़ कलम आ गया . 

हाँ .. तो लिखिए ( दीवान साहेब टेबल पर उचकते हुए बोले ) 


   मैं रोहन उम्र 25 वर्ष पुत्र श्री रामेन्द्र विक्रम सिंह निवासी कस्बा सिन्दोली जिला सीतापुर यहाँ स्थानीय अखबार में पत्रकार हूँ . रोज़ की तरह आज भी मैं अपने जनपद से यहाँ आया रहा था . ट्रेन से उतरते ही मेरी किसी बात को लेकर सरजू पुत्र स्वर्गीय अशर्फीलाल से कहा सुनी हो गयी . तैश में आकर हमारी हान्था पाई हो गयी . सरजू के कुछ छोटे आयीं . आपसी सहमती से 1000 रुपये सरजू को दवा इलाज वास्ते दे रहा हूँ . प्रार्थी कभी ऐसे काम नहीं करेगा . जो हुआ उसके लिए मैं माफ़ी माँगता हूँ .

नाम - पता , मोबाईल नंबर , पिता का नाम , एवं अन्य स्थानीय जान पहचान के व्यक्ति का पता व मोबाईल नंबर ....

रोहन के दस्तखत ......................... सरजू का अंगूठा ...

राम लाल ने रोहन का सारा सामान वापस कर दिया . रोहन वहां से निकलने लगा . 

रोहन वहाँ से निकलने लगा . 

तभी दीवान साहेब ने कहा " रामलाल इन्हें और कुछ नहीं बताया था . 

बताया था साहेब .... तो कह रहे थे .... इतने पैसे नहीं हैं ... 

चलिए कोई नहीं .... आप पत्रकार हैं तो छोड़े दे रहे हैं वरना आप की रेल बना देते .....

सुन बे सरजुआ ज्यादा नशाखोरी न किया कर . चल कूलर में पानी भर दे . पत्रकार जी से पैसे लेकर चाय समोसा नाश्ता बोल दे रतन सेठ के यहाँ . 

रोहन के भीतर अभी अभी एक कैदी रिहा हुआ था . उसमें यह अनुभव किसी से साझा करने का मन नहीं हो रहा था . और न ही ऑफिस या  फील्ड पर जाने का ही .  कोई खबर , रिपोर्ट लिखनी दूर की बात थी . रोहन ने वह शाम और रात स्टेशन पर ही गुजार दी . उसके भीतर गुस्सा नहीं था . बस हतास्षा थी , निराशा थी और अचम्भे का भाव था .  






बुधवार, 13 जनवरी 2021

जाना



शिवानी : तुम्हारी ट्रेन कितने बजे की  है ?

मनीष : क्यों ?

शिवानी : क्यों का क्या मतलब है . जाओ जल्दी यहाँ से

अच्छा , तुम मुझसे भागना चाहती हो .

शिवानी : हाँ 

मनीष : 9 बजे आएगी 

शिवानी : अब क्यों बोले  ? 

मनीष : यार मेरा भेजा मत खराब करो . शांति से चले जाने दो बस .

शिवानी : और मैं कहाँ जाऊं इस बच्चे को लेकर .

मनीष : क्या चिपका रहूँ मैं हमेशा तुमसे ? मेरा अपना काम है . काम नहीं करूँगा ... क्या .....

कुछ सेकण्ड खामोशी के बाद 

शिवानी : फिर कब आओगे ?

मनीष : जल्द ही .

शिवानी : कब ?

मनीष : मुझे नहीं पता . तुम हर बार जाने के समय कब आओगे .... कब आओगे ... की र्र्ट लगा देती हो . तीन महीने में एक बार फुर्सत मिलती है . यहाँ का सारा वक़्त तुम्हारे साथ ही गुजारता हूँ . फिर भी तुम्हारा पेट नहीं भरता .


शिवानी : तुम जल्दी जल्दी आ जाया करो . मैं नहीं पूछूंगी आने को . 

मनीष : ठीक है कोशिश करूँगा .

शिवानी : तुम मुझसे आँख में आँख दाल के बात क्यों नहीं करते . जरुर तुम्हारे भीतर मेरे लिए चाहत कम होती जा रही है . तीन साल में पांचवी बार आये हो . मैं तुम्हारे इंतज़ार में दिन गिना करती हूँ . यह बच्चा न होता . तो मैं भी आ जा सकती  तुम्हारे पास . 

मनीष : मैंने कहा था बच्चा करने को ? अब है सो बरतो ....

शिवानी : तुम्हे तो बस अपनी ही सूझती है .. मेरे पास तो तब आते हो . जब तुम्हारा मन करता है .. आये ऐयाशी की और चल दिए ..फिर अपनी दुनिया में मस्त . तुम्हारा परिवार , तुम्हारे लोग , तुम्हारा काम और मेरा क्या ??

तुम्हे पता भी है कि मैं यहाँ कैसे रहती हूँ . घर का काम . ऑफिस का काम . बच्चे की देख भाल ...

जब आते हो यहाँ कुछ भी व्यवस्था करके कैसे ब्व्ही तुमसे मिलने आ जाती हूँ . तुम्हारे साथ बिताये गए एक एक पल को मैं भरपूर जी लेना चाहती हूँ . पर तुम्हारी आँखों में रत्ती भर भी नमी नहीं पाती . तुम्हारी आँखें चुभती हैं . ये तुम ही समझते होगे .

मनीष : क्या बोले जा रही हो अंट संत जीवन में थोडा व्यवहारिक होना पड़ता है . अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है . मैं हमेशा निश्चिंत रहता हूँ . कि तुम जहाँ कहीं भी होगी , ठीक ही होगी .मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ . लेकिन इतनी दूर ..... यहाँ जल्दी जल्दी आना संभव नहीं हो पाता . अव्वल तो रिज़र्वेशन नहीं मिलता . रिज़र्वेशन मिलने के बाद सीट नहीं मिलती . फिर काम का बोझ . तुम्हे मालूम है कि मैं अपने काम से कितना प्यार करता हूँ . और हमारा रिश्ता आज का तो है नहीं . जीवन भर का है .

शिवानी : मैं कुछ नहीं जानती . आज तुम्हे जाने से पहले हर महीने आने का वादा कर के जाना पडेगा .

मनीष : तुम चाहती हो कि मैं तुमसे हर महीने कि फलाना तारीख को तुमसे मिलने आया करूँ ...झूठा वादा कर के तोड़ता रहूँ .. लेकिन मैं झूठ नहीं बोलता . खासतौर से तुम्हारे को लेकर . 

शिवानी : तुम यहाँ नहीं आ सकते . पर अपने घर तो हर हफ्ते चले जाया करते हो . वहां जाने का जैसे बहाना खोजा करते . मुझे समझ नहीं आता कोई आदमी दो लोगों से एक साथ प्रेम कैसे कर सकता है ..

मनीष : तुम बकवास कर रही हो . इसीलिए मुझे आने की इच्छा नहीं होती तुम्हारे पास . तुम्हारे पास आओ तो उत्साह से ... और जाओ दिल में कसक लेकर ...जाते वक्त तुम अपनी खरी खोटी से मुझे लाड देती हो . कभी भी हल्का महसूस कर के तुमने मुझे विदा नहीं किया .

शिवानी : आ गए न असलियत पर . तुम्हारी मेरे पास आने कि इच्छा ही नहीं होती . 

मनीष : यार बकवास न करो ... नाटक बना रही हो स्टेशन पर ....

अब नहीं आउंगा यहाँ . तुम्हारी बकवास सुनने नहीं आता हूँ इतनी दूर . तुम्हारी प्यार की इमरजेंसी हमेशा लगी रहती है . घर से बहाने कर के कितने जतन कर के मैं यहाँ आता हूँ . कभी चौदह पंद्रह घंटे की बस की यात्रा . कभी चालु डिब्बे की ठोकरें . ...

शिवानी : तुम्हे सलीके से आना नहीं आया तो मैं क्या करूँ ? आने की इच्छा हो तो हज़ार रास्ते खुल जाते हैं . रास्ते सरल हो जाते हैं . यात्रा सरल नहीं भी हुयी तो मिलने पर उसकी थकान चली जाती है .... मेरे साथ तो ऐसा ही होता है ... तुम थके के थके रह जाते हो तो तुम जानो ...

मनीष : हाँ , जैसा तुम समझो .... हार गया मैं तुमसे और तुम्हारे तर्कों से ..... बस थोड़ी देर और सह लो .... फिर मैं कभी नहीं आउंगा .  तुम रहना चैन से .... सुकून से..... 

शिवानी : ठीक है ...... मैं चाहती हूँ .... कि तुम चैन से रहो ........रखो अपना सामान .... मैं चली ....

मनीष : शिवानी ..... शिवानी ... कहाँ भागे जा रही हो रेल की पटरियों पर ? रुको ..... रुक जाओ शिवानी ..... अपने बच्चे के लिए रुक जाओ ..... शिवानी ... शिवानी ... शिवानी .... 

शिवानी दूसरी तीसरी रेलवे लाइन के बीच की चलती ट्रेनों में अलोप हो जाती है ...

शिवानी और ट्रेनें जा चुकी होती हैं ....

मनीष के कानों में अब बच्चे का रोना सुनाई देता है ...... 


शनिवार, 2 जनवरी 2021

चाहत !





विरक्ति की चाहत भर

भर दे तीक्ष्ण ज्वर

देंह पर काले निशान

नीले हो जाते

धमनियां रुक जाती

होंठ सी जाते ।


छूटते आस पास

विरह आलाप करते

रूठते एकाकी से 

बंधन जाप करते


रोम रोम कुंठित , कलुषित

भीतर के नाले

कल कल बहते

बाहर की ओर


जीवन को तरसते

हम भागते 

भागते भागते 

तोड़ देते डोर

साँसों की ।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...