कुल पेज दृश्य

बुधवार, 13 जनवरी 2021

जाना



शिवानी : तुम्हारी ट्रेन कितने बजे की  है ?

मनीष : क्यों ?

शिवानी : क्यों का क्या मतलब है . जाओ जल्दी यहाँ से

अच्छा , तुम मुझसे भागना चाहती हो .

शिवानी : हाँ 

मनीष : 9 बजे आएगी 

शिवानी : अब क्यों बोले  ? 

मनीष : यार मेरा भेजा मत खराब करो . शांति से चले जाने दो बस .

शिवानी : और मैं कहाँ जाऊं इस बच्चे को लेकर .

मनीष : क्या चिपका रहूँ मैं हमेशा तुमसे ? मेरा अपना काम है . काम नहीं करूँगा ... क्या .....

कुछ सेकण्ड खामोशी के बाद 

शिवानी : फिर कब आओगे ?

मनीष : जल्द ही .

शिवानी : कब ?

मनीष : मुझे नहीं पता . तुम हर बार जाने के समय कब आओगे .... कब आओगे ... की र्र्ट लगा देती हो . तीन महीने में एक बार फुर्सत मिलती है . यहाँ का सारा वक़्त तुम्हारे साथ ही गुजारता हूँ . फिर भी तुम्हारा पेट नहीं भरता .


शिवानी : तुम जल्दी जल्दी आ जाया करो . मैं नहीं पूछूंगी आने को . 

मनीष : ठीक है कोशिश करूँगा .

शिवानी : तुम मुझसे आँख में आँख दाल के बात क्यों नहीं करते . जरुर तुम्हारे भीतर मेरे लिए चाहत कम होती जा रही है . तीन साल में पांचवी बार आये हो . मैं तुम्हारे इंतज़ार में दिन गिना करती हूँ . यह बच्चा न होता . तो मैं भी आ जा सकती  तुम्हारे पास . 

मनीष : मैंने कहा था बच्चा करने को ? अब है सो बरतो ....

शिवानी : तुम्हे तो बस अपनी ही सूझती है .. मेरे पास तो तब आते हो . जब तुम्हारा मन करता है .. आये ऐयाशी की और चल दिए ..फिर अपनी दुनिया में मस्त . तुम्हारा परिवार , तुम्हारे लोग , तुम्हारा काम और मेरा क्या ??

तुम्हे पता भी है कि मैं यहाँ कैसे रहती हूँ . घर का काम . ऑफिस का काम . बच्चे की देख भाल ...

जब आते हो यहाँ कुछ भी व्यवस्था करके कैसे ब्व्ही तुमसे मिलने आ जाती हूँ . तुम्हारे साथ बिताये गए एक एक पल को मैं भरपूर जी लेना चाहती हूँ . पर तुम्हारी आँखों में रत्ती भर भी नमी नहीं पाती . तुम्हारी आँखें चुभती हैं . ये तुम ही समझते होगे .

मनीष : क्या बोले जा रही हो अंट संत जीवन में थोडा व्यवहारिक होना पड़ता है . अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है . मैं हमेशा निश्चिंत रहता हूँ . कि तुम जहाँ कहीं भी होगी , ठीक ही होगी .मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ . लेकिन इतनी दूर ..... यहाँ जल्दी जल्दी आना संभव नहीं हो पाता . अव्वल तो रिज़र्वेशन नहीं मिलता . रिज़र्वेशन मिलने के बाद सीट नहीं मिलती . फिर काम का बोझ . तुम्हे मालूम है कि मैं अपने काम से कितना प्यार करता हूँ . और हमारा रिश्ता आज का तो है नहीं . जीवन भर का है .

शिवानी : मैं कुछ नहीं जानती . आज तुम्हे जाने से पहले हर महीने आने का वादा कर के जाना पडेगा .

मनीष : तुम चाहती हो कि मैं तुमसे हर महीने कि फलाना तारीख को तुमसे मिलने आया करूँ ...झूठा वादा कर के तोड़ता रहूँ .. लेकिन मैं झूठ नहीं बोलता . खासतौर से तुम्हारे को लेकर . 

शिवानी : तुम यहाँ नहीं आ सकते . पर अपने घर तो हर हफ्ते चले जाया करते हो . वहां जाने का जैसे बहाना खोजा करते . मुझे समझ नहीं आता कोई आदमी दो लोगों से एक साथ प्रेम कैसे कर सकता है ..

मनीष : तुम बकवास कर रही हो . इसीलिए मुझे आने की इच्छा नहीं होती तुम्हारे पास . तुम्हारे पास आओ तो उत्साह से ... और जाओ दिल में कसक लेकर ...जाते वक्त तुम अपनी खरी खोटी से मुझे लाड देती हो . कभी भी हल्का महसूस कर के तुमने मुझे विदा नहीं किया .

शिवानी : आ गए न असलियत पर . तुम्हारी मेरे पास आने कि इच्छा ही नहीं होती . 

मनीष : यार बकवास न करो ... नाटक बना रही हो स्टेशन पर ....

अब नहीं आउंगा यहाँ . तुम्हारी बकवास सुनने नहीं आता हूँ इतनी दूर . तुम्हारी प्यार की इमरजेंसी हमेशा लगी रहती है . घर से बहाने कर के कितने जतन कर के मैं यहाँ आता हूँ . कभी चौदह पंद्रह घंटे की बस की यात्रा . कभी चालु डिब्बे की ठोकरें . ...

शिवानी : तुम्हे सलीके से आना नहीं आया तो मैं क्या करूँ ? आने की इच्छा हो तो हज़ार रास्ते खुल जाते हैं . रास्ते सरल हो जाते हैं . यात्रा सरल नहीं भी हुयी तो मिलने पर उसकी थकान चली जाती है .... मेरे साथ तो ऐसा ही होता है ... तुम थके के थके रह जाते हो तो तुम जानो ...

मनीष : हाँ , जैसा तुम समझो .... हार गया मैं तुमसे और तुम्हारे तर्कों से ..... बस थोड़ी देर और सह लो .... फिर मैं कभी नहीं आउंगा .  तुम रहना चैन से .... सुकून से..... 

शिवानी : ठीक है ...... मैं चाहती हूँ .... कि तुम चैन से रहो ........रखो अपना सामान .... मैं चली ....

मनीष : शिवानी ..... शिवानी ... कहाँ भागे जा रही हो रेल की पटरियों पर ? रुको ..... रुक जाओ शिवानी ..... अपने बच्चे के लिए रुक जाओ ..... शिवानी ... शिवानी ... शिवानी .... 

शिवानी दूसरी तीसरी रेलवे लाइन के बीच की चलती ट्रेनों में अलोप हो जाती है ...

शिवानी और ट्रेनें जा चुकी होती हैं ....

मनीष के कानों में अब बच्चे का रोना सुनाई देता है ...... 


कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चोर !

एक बड़ी संस्था के  ऑफिस टेबल के नीचे ठीक बीचों बीच  एक पेन तीन दिन पड़ा रहा  ऑफिस में आने वाले अधिकारी , कर्मचारियों की रीढ़ की हड्डी की लोच...