आज का दिन बड़ा ही अशुभ रहा। रास्ता दोबारा तय करने से उभाऊ और नीरस हो जाता है। यूँ तो दोबारा आधा रास्ता ही तय करना पड़ा। पर आधा रास्ता पूरा करना सा लगा। सुबह सुबह वहाँ सब को काम समझाया। एक ठीहे से दूसरे ठीहे के लिए निकलने पर तमाम सारी तैयारी करनी पड़ती हैं। काम की अधिकता के कारण जाना कई बार टालता रहा। हालांकि जाना इतना जरूरी भी नही था। फिर भी घने कोहरे को भेदता निकल पड़ा। हर बार की तरह जरूरत से ज्यादा सामान मेरे कंधे पर लदा था। मेरा बैग दूसरे ठीये से भेजी गई लंबी चौड़ी घर गिरहस्ति की लिस्ट के अनुसार भरा था ।
बैग के कलम वाले पॉकेट में मैं न जाने कब से एक महत्वपूर्ण चाबी रखा रहा। आधा रास्ता तय करने के बाद उस चाबी की जरूरत का फोन आया। वापस आना पड़ा । चाबी दी। कुछ देर रुका और वापस अपने रास्ते चल पड़ा। चाबी के चक्कर में 4 घंटे का रास्ता 6 घंटे में बदलने जा रहा था। मैंने सुनीता को फोन कर के आज की देरी का कारण बताना चाहा। उसने बीच में ही मेरी बात काट दी। " मुझे मालूम था , तुम आज भी लेट आओगे" कहते हुए उसने फोन काट दिया। काश फोन न होते। तो हमारे रिश्ते समय का एतिहाद बरतते।
इस बात ने मेरे भीतर झुंझलाहट पैदा कर दी थी। रास्ते भर जो अभी कुछ देर पहले देख रहा था, सोच रहा था । वो अब वैसा एक दम नही था । पहले इस रास्ते पर चलते हुए सब कुछ ताज़ा लग रहा था। पर अब उसी दिशा में हवा रोक रही थी। कंधे पर टंगा बैग और भारी हो चला था। कोहरा अब नही था। बाएं तरफ सूरज सरसों के खेतों के और करीब आता जा रहा था। शाम और चढ़ी जा रही थी। हवा में सिहरन बढ़ गयी थी । पछुआ हवा ने पुरवैया हवा की जगह ले ली थी। बचा हुआ रास्ता लंबा होने लगा था।
सुबह सोचा था कहीं रुक के एक चाय पियूँगा। मैंने इस रास्ते कई चाय के ठीहे बना रखे हैं। हर बार बदल बदल के इस रास्ते पर ब्रेक लेना मेरी आदत में हो गया था। पर आज तो जैसे यह रास्ता एक अजनबी की तरह व्यवहार कर रहा था। बाइक की बत्ती कम होने से अंधेरा होने से पहले दूसरे ठीये पहुँचना था। सर्दियों के दिन छोटे न होते तो इस रास्ते की इतनी हड़बड़ाहट न होती।
बच्चे की बीमारी की ख़बर सभी को विचलित करती होगी। मुझे भी कर रही थी। ऐसा मैं लगातार महसूस करने की कोशिश कर रहा था। मन कर रहा था जल्द से जल्द बच्चे के सिरहाने लेट जाऊँगा। हम दोनों मुस्कुरायेंगे, खेलेंगे और ढिशुम ढिशुम करेंगे। उसकी तबियत और मेरी थकान ठीक हो जाएगी। सुनीता सुबह सुबह फोन पर विचलित थी। सुबह फोन कर के पता नही क्या अजीब अजीब बोल रही थी। कह रही थी मेरी यादाश्त कहीं खो गयी है। तुम्हे कुछ याद नही रहता है। उस समय मन में मैं बार बार खुद से यही सवाल कर रहा था। पर मुझे ऐसा महसूस नही हुआ। मुझे अपने बारे में कम से कम औरों से ज्यादा मालूम रहता है।
कल शाम उसने बच्चे की तबियत के बारे में बताया था। मुझे इस सुबह भी याद है। तभी निकला। फिर भी यह सवाल अटक गया दिमाग में। उसको आज सुबह फोन ही तो नही कर पाया। भूल गया फोन करने को। जैसे महत्वपूर्ण चाबी भूल गया था। वहां देने को। जहाँ से आ रहा था।
फिर से उसी रास्ते पर आधा रास्ता तय कर चुका था। थोड़ी देर पहले क्रॉसिंग के ब्रेकर पर ट्रक , ट्रेलर व अन्य गाड़ियां मटक मटक के गुजर रहीं थी। दूर से देखा तो अब उसी रेलवे क्रॉसिंग के पास पुलिस दिख रही थी। मैंने क्रासिंग के इस तरफ बाइक खड़ी की। अपने सारे कागज़ चेक किये। सभी कागज़ पूरे थे। हेलमेट पहना हुआ था। आश्वस्त था कि कागज़ पूरे हैं। कोई व्यवधान नही होगा। देर से ही सही पर दिन रहते पहुच जाऊंगा। कागज़ ऊपर वाली जेब में रख के वापस ड्राइव करने लगा। क्रोसिंग के उस पार पुलिस कुछ लिख रही थी। मोड़ पर सड़क किनारे कुछ पड़ा हुआ था। पास जाकर देखा तो एक साइकिल पड़ी थी। साइकिल के कैरियर में कुछ लकड़ियां बंधी हुई थी। साइकिल का हैंडल सड़क में धँसा था। आगे और पीछे का पहिया ठीक ठाक था। उसी के पास में एक बच्चा पड़ा हुआ था। बच्चे का दाहिना हाँथ सड़क किनारे जंगली घास पकड़े हुए था। बच्चे का चेहरा देख ऐसा लग रहा था जैसे बच्चा अभी अभी सोया हो। पर उसके पेट की अंतड़ियाँ बाहर थीं। पैर मुड़े हुए थे। माँस से सफेद हड्डियाँ निकली पड़ रही थी। सड़क के एक तरफ खून से सने बड़े बड़े टायरों के निशान थे। एक लल गुदिया अमरूद सड़क पर छितरा पड़ा था।
पुलिस वाले आपस में लड़के की शिनाख्त करने की कोशिश कर रहे थे। पंचनामा भर रहे थे। कुछ दूर पर एक ट्रक खड़ा हुआ था। उसमें कोई नही था। आस पास के पेड़ मौन थे। मैंने उस ट्रक के केबिन से एक सफेद रंग का गमछा देखा। और पुलिस की इजाज़त से उस बच्चे को ढाँक दिया। मुझे लगा कि यदि उस बच्चे का पेट और पैर न होते तो वो जरूर उठ खड़ा होता। लकड़िया उठाता और साइकिल से चल देता। घर की ओर।
मौका ए वारदात पर भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। स्थानीय लोग उस बच्चे का नाम अल्ताफ़ बता रहे थे। जो कल ही अपनी मौसी के यहां आया था। जंगल से लकड़ी बीनने गया था। कुछ ही देर में एक और बच्चा आया। अल्ताफ़ के ऊपर गिर गिर के रोने लगा। पुलिस उससे पूछताछ करती रही। वह दूसरे बच्चे पर बिलख बिलख के रोटा रहा। मैं दूर खड़ा रोने को था। तभी मुझे अपने बच्चे का ध्यान हो आया। मैंने फिर से बाइक स्टार्ट की। चलने लगा। मैं उस दृश्य से जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था। पर वह मेरे साथ चलता रहा। मैं दाएं बाएं कहीं कुछ देख नही पा रहा था। बस बाइक पर एक्सेलरेटर खींचे पड़ा था। बाइक की आवाज़ ट्रक की जान पड़ रही थी। जहाँ जाना था , वहाँ जल्द से जल्द पहुँचना था। एक समय मुझे लगा कि मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा है। लगातार उबकाई आये जा रही थी। मैंने शहर के थोड़े पहले सड़क के किनारे नो इन्ट्री बैरिकेडिंग के पास बाइक रोकी। चाय की दुकान पर एक बुजुर्ग महिला से चाय बनाने को कहा। वह एक दम तैयार नही थी। उसने चाय बनाने की प्रक्रिया चूल्हा जलाने से शुरू की। चूल्हे में सूखी लकड़ियां डाली। आग जलाई। चाय का खाली बर्तन रखा। मैं उनसे कुछ पूछता। उन्होंने कहा । अब भइया यहां बहुत कम गाड़ियाँ रुकती हैं। पुलिस वाले ले देकर नो इंट्री से गाड़ी जाने देते हैं। मैं उस महिला से सड़क के जानलेवा होने की बातें सुनता रहा। और चाय पर चाय पीता रहा।
इस बात ने मेरे भीतर झुंझलाहट पैदा कर दी थी। रास्ते भर जो अभी कुछ देर पहले देख रहा था, सोच रहा था । वो अब वैसा एक दम नही था । पहले इस रास्ते पर चलते हुए सब कुछ ताज़ा लग रहा था। पर अब उसी दिशा में हवा रोक रही थी। कंधे पर टंगा बैग और भारी हो चला था। कोहरा अब नही था। बाएं तरफ सूरज सरसों के खेतों के और करीब आता जा रहा था। शाम और चढ़ी जा रही थी। हवा में सिहरन बढ़ गयी थी । पछुआ हवा ने पुरवैया हवा की जगह ले ली थी। बचा हुआ रास्ता लंबा होने लगा था।
सुबह सोचा था कहीं रुक के एक चाय पियूँगा। मैंने इस रास्ते कई चाय के ठीहे बना रखे हैं। हर बार बदल बदल के इस रास्ते पर ब्रेक लेना मेरी आदत में हो गया था। पर आज तो जैसे यह रास्ता एक अजनबी की तरह व्यवहार कर रहा था। बाइक की बत्ती कम होने से अंधेरा होने से पहले दूसरे ठीये पहुँचना था। सर्दियों के दिन छोटे न होते तो इस रास्ते की इतनी हड़बड़ाहट न होती।
बच्चे की बीमारी की ख़बर सभी को विचलित करती होगी। मुझे भी कर रही थी। ऐसा मैं लगातार महसूस करने की कोशिश कर रहा था। मन कर रहा था जल्द से जल्द बच्चे के सिरहाने लेट जाऊँगा। हम दोनों मुस्कुरायेंगे, खेलेंगे और ढिशुम ढिशुम करेंगे। उसकी तबियत और मेरी थकान ठीक हो जाएगी। सुनीता सुबह सुबह फोन पर विचलित थी। सुबह फोन कर के पता नही क्या अजीब अजीब बोल रही थी। कह रही थी मेरी यादाश्त कहीं खो गयी है। तुम्हे कुछ याद नही रहता है। उस समय मन में मैं बार बार खुद से यही सवाल कर रहा था। पर मुझे ऐसा महसूस नही हुआ। मुझे अपने बारे में कम से कम औरों से ज्यादा मालूम रहता है।
कल शाम उसने बच्चे की तबियत के बारे में बताया था। मुझे इस सुबह भी याद है। तभी निकला। फिर भी यह सवाल अटक गया दिमाग में। उसको आज सुबह फोन ही तो नही कर पाया। भूल गया फोन करने को। जैसे महत्वपूर्ण चाबी भूल गया था। वहां देने को। जहाँ से आ रहा था।
फिर से उसी रास्ते पर आधा रास्ता तय कर चुका था। थोड़ी देर पहले क्रॉसिंग के ब्रेकर पर ट्रक , ट्रेलर व अन्य गाड़ियां मटक मटक के गुजर रहीं थी। दूर से देखा तो अब उसी रेलवे क्रॉसिंग के पास पुलिस दिख रही थी। मैंने क्रासिंग के इस तरफ बाइक खड़ी की। अपने सारे कागज़ चेक किये। सभी कागज़ पूरे थे। हेलमेट पहना हुआ था। आश्वस्त था कि कागज़ पूरे हैं। कोई व्यवधान नही होगा। देर से ही सही पर दिन रहते पहुच जाऊंगा। कागज़ ऊपर वाली जेब में रख के वापस ड्राइव करने लगा। क्रोसिंग के उस पार पुलिस कुछ लिख रही थी। मोड़ पर सड़क किनारे कुछ पड़ा हुआ था। पास जाकर देखा तो एक साइकिल पड़ी थी। साइकिल के कैरियर में कुछ लकड़ियां बंधी हुई थी। साइकिल का हैंडल सड़क में धँसा था। आगे और पीछे का पहिया ठीक ठाक था। उसी के पास में एक बच्चा पड़ा हुआ था। बच्चे का दाहिना हाँथ सड़क किनारे जंगली घास पकड़े हुए था। बच्चे का चेहरा देख ऐसा लग रहा था जैसे बच्चा अभी अभी सोया हो। पर उसके पेट की अंतड़ियाँ बाहर थीं। पैर मुड़े हुए थे। माँस से सफेद हड्डियाँ निकली पड़ रही थी। सड़क के एक तरफ खून से सने बड़े बड़े टायरों के निशान थे। एक लल गुदिया अमरूद सड़क पर छितरा पड़ा था।
पुलिस वाले आपस में लड़के की शिनाख्त करने की कोशिश कर रहे थे। पंचनामा भर रहे थे। कुछ दूर पर एक ट्रक खड़ा हुआ था। उसमें कोई नही था। आस पास के पेड़ मौन थे। मैंने उस ट्रक के केबिन से एक सफेद रंग का गमछा देखा। और पुलिस की इजाज़त से उस बच्चे को ढाँक दिया। मुझे लगा कि यदि उस बच्चे का पेट और पैर न होते तो वो जरूर उठ खड़ा होता। लकड़िया उठाता और साइकिल से चल देता। घर की ओर।
मौका ए वारदात पर भीड़ इकट्ठा होने लगी थी। स्थानीय लोग उस बच्चे का नाम अल्ताफ़ बता रहे थे। जो कल ही अपनी मौसी के यहां आया था। जंगल से लकड़ी बीनने गया था। कुछ ही देर में एक और बच्चा आया। अल्ताफ़ के ऊपर गिर गिर के रोने लगा। पुलिस उससे पूछताछ करती रही। वह दूसरे बच्चे पर बिलख बिलख के रोटा रहा। मैं दूर खड़ा रोने को था। तभी मुझे अपने बच्चे का ध्यान हो आया। मैंने फिर से बाइक स्टार्ट की। चलने लगा। मैं उस दृश्य से जल्द से जल्द दूर हो जाना चाहता था। पर वह मेरे साथ चलता रहा। मैं दाएं बाएं कहीं कुछ देख नही पा रहा था। बस बाइक पर एक्सेलरेटर खींचे पड़ा था। बाइक की आवाज़ ट्रक की जान पड़ रही थी। जहाँ जाना था , वहाँ जल्द से जल्द पहुँचना था। एक समय मुझे लगा कि मुझे कुछ दिखाई नही दे रहा है। लगातार उबकाई आये जा रही थी। मैंने शहर के थोड़े पहले सड़क के किनारे नो इन्ट्री बैरिकेडिंग के पास बाइक रोकी। चाय की दुकान पर एक बुजुर्ग महिला से चाय बनाने को कहा। वह एक दम तैयार नही थी। उसने चाय बनाने की प्रक्रिया चूल्हा जलाने से शुरू की। चूल्हे में सूखी लकड़ियां डाली। आग जलाई। चाय का खाली बर्तन रखा। मैं उनसे कुछ पूछता। उन्होंने कहा । अब भइया यहां बहुत कम गाड़ियाँ रुकती हैं। पुलिस वाले ले देकर नो इंट्री से गाड़ी जाने देते हैं। मैं उस महिला से सड़क के जानलेवा होने की बातें सुनता रहा। और चाय पर चाय पीता रहा।
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