अरे अरे अरे ......
तमीज से पेश आइये , आप मुझे धक्का क्यों दे रहे हैं ? मैं चल रहा हूँ ना
... चल बे (गर्दन के पीछे कॉलर पकडे हुए सिपाही जैसे हांक रहे हों )
देखिये आप लोग समझ नहीं रहे हैं . मैंने उसे हाँथ तक नहीं लगाया .
... चल ना . अभी निकलती है तेरी गर्मी . सब पता चल जायेगा किसने मारा, किसने नहीं मारा .
साहब यही है (रोते हुए , लंगड़ाते हुए एक रिक्शेवाला उनके पीच्चे चलता हुआ ) साहब इसी ने मुझे मारा है . गिरा गिरा के मारा .
रोहन को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है . वो अच्छा भला रोज़ कि तरह ट्रेन से उतरा और स्टैंड से अपनी बैक उठाने जा रहा था . कि अचानक दो सिपाहियों ने उसे दबोच लिया .ऊपर से वो रिक्शे वाला जिसे वह अक्सर अन्य रिक्शे वालों के साथ स्टैंड पर देखता था . कभी कभी गांजे और शराब की बैठकी लगते हुए .आज वह अजीब अजीब हरकतें कर रहा था .
सभी रेलवे चौकी पहुंचे . रोहन का हाँथ सिपहियोंन ने चौकी पहुचते छोड़ा . चौकी कोठरीनुमा तीन शेड से बनी कम चौड़ी , लम्बाई में ज्यादा दीख रही थी . दीवान जी काला चश्मा पहने , पान चब्लाते हुए फोन पर किसी की क्लास ले रहे थे . टेबल के नीच पान कि पीक मारते रोहन की तरफ देखते दीवान जी बोले ... " क्या हुआ , कहा रहते हो ? गरीब को मारोगे स्साले ....
देखिये मैंने इसे नहीं मारा है . मैं इसके पास तक नहीं गया . मैं डेली अप डाउन करता हूँ . जैसे ही मैं ट्रेन से उतरा . स्टेशन के पोर्च से बाहर निकला . तो देखा एक आदमी किसी यात्री पर ऊँची आवाज़ में गालियाँ देकर बात कर रहा था . कुछ देर मैंने दूर से ही उस तमाशे को देखा फिर स्टैंड कि तरफ आगे बढ़ गया . न जाने कहाँ से और क्यों उस यात्री को छोड़ वो मेरे पीछे लग गया .
" अच्छा हजारों आदमी स्टेशन पर आ जा रहे हैं . इसने केवल तुम्ही को देखा . और तुम पर मार पीट का इलज़ाम लगाने लगा . वो रिक्शे वाला झूठ बोल रहा है क्या ? उसे क्या पड़ी झूठ बोलने की . क्या करते हो ? " दीवान ने रोहन से पूछा .
सर मैं पत्रकार हूँ , रहने वाला सीतापुर का हूँ . लखनऊ अप डाउन करता हूँ रोज़ . यहाँ एक हिंदी दैनिक में काम करता हूँ . और सच कह रहा हूँ . मैंने इसे हाँथ तक नहीं लगाया .
ओह तो आप पत्रकार हैं . ( दीवान ने त्योरियां चढाते हुए कहा ) तो पत्रकार हैं तो तोप हो गए हैं आप . किसी को भी राह चलते मार उठाओगे . अच्छी तरह से जानता हूँ . तुम जैसे लोगों को . गरीबों को सताने में तुम्हे मज़ा आता है . और पत्रकार होने का धौंस भी ज़माना है . मैंने कई पत्रकारों को लाइन पर ला दिया है . राम लाल इन पत्रकार महोदय को एक सादा कागज़ दो . सिपाही रामलाल ने सादा कागज़ और एक कलम रोहन के सामने टेबल पर रख दिया .
इस पर एक माफीनामा लिख दो . कि तुमने जो भी कुछ किया वह आवेश में आ कर हुआ . आगे से ऐसा कभी नहीं होगा ...
लेकिन मैंने तो कुछ किया ही नहीं है . माफीनामा क्यों लिखूं . आप मुझे जाने दीजिये . मुझे काम के लिए लेट हो रहा है . कल गणतंत्र दिवस के अवसर पर ज्यादा काम है . यह देखिये मेरा पहचान पत्र ....
अब तुम मुझे क़ानून सिखाओगे . मुझे मेरा काम सिखाओगे . दाल दूंगा लॉकअप में सही हो जाओगे . माफीनामा लिख दो और चले जाओ .
नहीं ... मैं माफीनामा नहीं लिख सकता . जो काम मैंने किया नहीं उसके लिए कैसा माफीनामा .
सिपाही रामलाल रोहन के कान में फुसफुसाता है ... " लिख दीजिये माफीनामा . क्या जाता है . दीवान जी ऐसे नहीं छोड़ने वाले हैं .. पर रोहन को माफीनामा लिखना बिलकुल मंजूर नहीं हुआ .
दीवान साहब को यह बात करेंट की तरह लगी . " आप अपना नाम पता , पिता का नाम और मोबाईल नंबर कागज़ पर लिख दो . रामलाल इससे इनका मोबाईल , पर्स , बेल्ट और सारा सामान जमा करवा लो . रोहन के मना करने के बावजूद रामलाल ने सारा सामान एक रुमाल में बाँध के चौकी की अलमारी में बन्द कर दिया . अब तुम्हे हवालात की सैर कराता हूँ ... दीवान साहब बोले ...
ठीक है जैसा आप उचित समझें ( रोहन निराश हो कर बोला ) . क्या मैं एक कॉल कर सकता हूँ घर ?
बड़ा आया कॉल कर सकता हूँ ... पहले एक करेगा फिर दूसरा करेगा . मैंने यहाँ कॉल सेंटर खुलवाया है .
रामलाल ले जाओ पत्रकार साहब और इस रिक्शे वाले को . बन्द कर दो लॉकअप में . कुछ देर में अक्ल ठिकाने आ जाएगी .
यह तो सरासर अन्याय है . आप मेरी बात सुन ही नहीं रहे हैं . बस एक पक्षीय कार्यवाई कर रहे हैं . यह अच्छा नहीं हो रहा है . आप चाहे तो स्टेशन का सी सी टी वी फुटेज देख लें . उससे पता चल जाएगा सच झूठ का .
उसकी किसी बात का चौकी की दीवारों पर कोई असर नहीं हो रहा था . दो सिपाही दोनों रोहन को पकडे लॉकअप की तरफ ले जाते हैं . वह रिक्शे वाला खुद बा खुद लॉकअप की और बढ़ चला . दोनों को सीलन भरे अँधेरी कोठरी में बन्द कर दिया गया . लॉकअप जी आर पी थाने के गलियारे में पड़ता है . गलियारे के दूसरी तरफ बड़ी सी ऊँची मेज पड़ी है . मेज के उस पार बड़ी बड़ी कुर्सिया पड़ी हैं . कुर्सियों पर एक महिला कांस्टेबल , मुंशी और कुछ सिपाही बैठे हैं .
रोहन सलाखें पकड़ महिला कांस्टेबल की तरफ देख कर बुलाता है ... सुनिए सुनिए ...
महिला कांस्टेबल ने रोहन को एक नज़र देखा फिर अपने काम में व्यस्त हो गयी . बारी बारी से सभी ने रोहन को लॉकअप के भीतर असहज मचलता हुआ देखा . रोहन थक हार के वहीँ रिक्शेवाले के पास जाकर बैठ जाता है . रिक्शेवाला साढ़े 6 फीट का लंबा चौड़ा . तन पर फटे , मैले और बदबूदार कपड़े . दाढ़ी बेतरतीब छाती तक बढ़ी हुयी . बाल औघड़ की तरह . होंठ मोटे मोटे एक दम काले . बड़ी बड़ी आँखों में लाल धागों में बंधी नशे की पोटलियाँ.
" झूठा इल्जाम क्यों लगाया मुझ पर ? , फंसा दिया तुमने नाटक फैला कर . तुम लोग इतना नशा क्यों करते हो कि कुछ होश ही न रहे . घर वालों तक नहीं बता पाया .... क्या नाम है तुम्हारा ? रोहन ने रिक्शेवाले से पूछा .
सरजू
कहाँ के रहने वाले हों ?
सीतापुर
सीतापुर में कहाँ से ?
सिन्धोली
और घर में कौन कौन है ?.
घर बाहर सब छोड़ के चले आये रहन दस साल की उम्र मां . ओकरे बाद यहीं दाना पानी चलि रहा है .
रिक्शा कब से चला रहे हो ?
पांच साल से यहीं स्टेशन पर चलाये रहे हन , उससे पहले मजदूरी , उससे पहले खेती ....सब बेकि लिहिन ... फेर भागे का भा .
कितना कमा लेते हो दिन भर में ?
दिन भर वही 300 से 400 ...
इतना कमा लेते हो फि?र भी तुम्हारी दशा इतनी ख़राब है . इतने मैले कि तुम्हारे हाँथ का कोई पानी भी न पिए .
क्या करते हो पैसे का ?
बस खाने पीने में सब चला जात है ... जो कुछ बचत है ... वो साहेब के भेंट चढ़ी जात है ...
लॉकअप में पहली बार आए हो ?
नाही जब तब नंबर लागि जात है ... जब साहेब (दीवान साहेब ) की नज़र टेढ़ी हुयी जात है ... धर लीन जात हन ... फिर वही जी हुजूरी , बेगार ....
कोई दूसरी जगह चले जाओ , पुलिस किसी की नहीं होती .
सरजू फिर जोर जोर से कराहने लगा . हाय .... अम्मा मरी गैएं ... बहुत पिरात है ....
मतलब तुम्हारे कोई चोट नहीं लगी ... तुम्हे किसी ने नहीं मारा ? फिर तुम लंगडा क्यों रहे थे ?
बचपने में एक पाँव टूटी गवा रहे ...
अरे तो तुमने मुझे क्यों फंसाया ...... रोहन खीजते हुए ...
हाय अम्मा .... मरि गएँ .... बहुत पिरात है ... मारि डारा .... गिराए गिराए मारा .....
चुप .... चुप ... बन्द करो यह नाटक ...( रामलाल सिपाही ने लॉकअप के पास आकर उसे फटकारा और रोहन को सलाखों के पास बुलाया )
पत्रकार जी माफीनामा लिख दीजिये . साहेब छोड़ेंगे नहीं ऐसे ..
मैंने कहा मुझे नहीं देना माफीनामा . मुझे झूठा फंसाया गया है .... क्या चाहते हो तुम सब लोग ?... खुल के बताओ .. (रोहन का जवाब साफ़ था )
जैसी आप की मर्जी . कुछ रूपया पैसा का जुगाड़ हो तो बताईये . साहेब से बात की जाए . आज न छूटेंगे तो एक हफ्ते के लिए अन्दर ही रहेंगे . 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस . पूरा सरकारी अमला और पुलिस महीनों तयारी करती है इस दिन के लिए .... फिर आगे इतवार... सबकी खुमारी उतरने में टाइम लगता है .... 10000 रुपये की व्यवस्था कर लेयो . साहब के हाँथ पैसा पहुचते ही ढीले हो जायेंगे . .....( सिपाही की आवाज़ में दया का भाव साफ़ छलक रहा था )
सरजू ... तुम कुछ क्यों नहीं बोलते कुछ ? सब तुम्हारा ही करा धरा है .... बताओ कि सब झूठ है .... (रोहन रिक्शे वाले के कंधे पर हाँथ रख के पूछता है )
साहब अब हामरे हाँथ में कुछ नहीं है . जोने कुछ है साहेब के हाँथ में है ...
4 घंटे बीत चुके थे . रोहन को लॉकअप में बन्द हुए . सरजू वहीँ लोट के खर्राटे लगाने लगा था ...
शाम होगी .... फिर रात होगी ... पूरी रात लॉकअप में ... इस बदबूदार रिक्शे वाले के साथ ....फिर पुलिस का क्या .... क्या पकड़ा दे हाँथ में ... चरस, गांजा , कट्टा , हथियार धर के चालन कर दे ...सब कुछ तो धरा लिया है ...कोई संपर्क नहीं हो पायेगा ...झूठ जब असरदार तरीके से बार बार कहा जाए तो वह क़ानून की नज़र में भी सच लगने लगता है ... उसके बाद धीरे धीरे समाज की नज़रों में ... फिर परिवार की नज़रों ....मैंने कितनी दलीलें दी .... क्या किसी को पकड़ना , लॉकअप में डालना इतना आसान होता है .... लॉकअप खुद में एक प्रताड़ना है ... ऊपर से अमानवीय व्यवहार ....( रोहन गहरी सोच में डूबा हुआ )
रामलाल सिपाही फिर आया " पत्रकार जी , क्या सोचा है ? जल्दी फैसला करो ... शाम होने को है साहब निकल जायेंगे चारबाग़ की रात सूंघने ...
ठीक है मैं लिखता हूँ माफीनामा ... पर पैसे वैसे नहीं दे पाउँगा . मेरे पास उतने पैसे नहीं होते .. (रोहन पूरी तरह से सरेंडर था )
अब आप साहेब से ही बात कर लीजियेगा . सिपाही बोला
लॉकअप का दरवाज़ा खोला गया ....
चौकी पहुचते ही दीवान साहेब बोले ... क्यों पत्रकार साहेब ठंढे हो गए ?
रोहन के में फिर से कागज़ कलम आ गया .
हाँ .. तो लिखिए ( दीवान साहेब टेबल पर उचकते हुए बोले )
मैं रोहन उम्र 25 वर्ष पुत्र श्री रामेन्द्र विक्रम सिंह निवासी कस्बा सिन्दोली जिला सीतापुर यहाँ स्थानीय अखबार में पत्रकार हूँ . रोज़ की तरह आज भी मैं अपने जनपद से यहाँ आया रहा था . ट्रेन से उतरते ही मेरी किसी बात को लेकर सरजू पुत्र स्वर्गीय अशर्फीलाल से कहा सुनी हो गयी . तैश में आकर हमारी हान्था पाई हो गयी . सरजू के कुछ छोटे आयीं . आपसी सहमती से 1000 रुपये सरजू को दवा इलाज वास्ते दे रहा हूँ . प्रार्थी कभी ऐसे काम नहीं करेगा . जो हुआ उसके लिए मैं माफ़ी माँगता हूँ .
नाम - पता , मोबाईल नंबर , पिता का नाम , एवं अन्य स्थानीय जान पहचान के व्यक्ति का पता व मोबाईल नंबर ....
रोहन के दस्तखत ......................... सरजू का अंगूठा ...
राम लाल ने रोहन का सारा सामान वापस कर दिया . रोहन वहां से निकलने लगा .
रोहन वहाँ से निकलने लगा .
तभी दीवान साहेब ने कहा " रामलाल इन्हें और कुछ नहीं बताया था .
बताया था साहेब .... तो कह रहे थे .... इतने पैसे नहीं हैं ...
चलिए कोई नहीं .... आप पत्रकार हैं तो छोड़े दे रहे हैं वरना आप की रेल बना देते .....
सुन बे सरजुआ ज्यादा नशाखोरी न किया कर . चल कूलर में पानी भर दे . पत्रकार जी से पैसे लेकर चाय समोसा नाश्ता बोल दे रतन सेठ के यहाँ .
रोहन के भीतर अभी अभी एक कैदी रिहा हुआ था . उसमें यह अनुभव किसी से साझा करने का मन नहीं हो रहा था . और न ही ऑफिस या फील्ड पर जाने का ही . कोई खबर , रिपोर्ट लिखनी दूर की बात थी . रोहन ने वह शाम और रात स्टेशन पर ही गुजार दी . उसके भीतर गुस्सा नहीं था . बस हतास्षा थी , निराशा थी और अचम्भे का भाव था .
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