कुल पेज दृश्य

शनिवार, 16 जनवरी 2021

मुबारक



 बीती रात सोच लिया था

सुबह, बीती चाहत बिसराऊ  

मिटने के नज़दीक जीवन 

कही जाकर रख आऊँ 


अंजुरी भर प्रेम , नोंक भर दुःख 

महसूसने के खाली भण्डार रख आया 

चिड़ियों  के घोसलों में  

मजदूरों की कोठरी में 


वापस आया खाली घर कर के 

आसमानी रंग की दीवारों पर 

लिखता रहा बीता 


रात बरसने को भूल गयी थी 

कोई नशा नहीं था 

सुबह नेमतों की बारिश 

मुझे भिगो के उड़ गयी 

धरती जैसे आज ही हरी हुयी थी .

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सिर से अनचीन्हा भार उतरता है तो बड़ा सुकून मिलता है

ANHAD NAAD ने कहा…

सच

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...