बीती रात सोच लिया था
सुबह, बीती चाहत बिसराऊ
मिटने के नज़दीक जीवन
कही जाकर रख आऊँ
अंजुरी भर प्रेम , नोंक भर दुःख
महसूसने के खाली भण्डार रख आया
चिड़ियों के घोसलों में
मजदूरों की कोठरी में
वापस आया खाली घर कर के
आसमानी रंग की दीवारों पर
लिखता रहा बीता
रात बरसने को भूल गयी थी
कोई नशा नहीं था
सुबह नेमतों की बारिश
मुझे भिगो के उड़ गयी
धरती जैसे आज ही हरी हुयी थी .
2 टिप्पणियां:
सिर से अनचीन्हा भार उतरता है तो बड़ा सुकून मिलता है
सच
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