विरक्ति की चाहत भर
भर दे तीक्ष्ण ज्वर
देंह पर काले निशान
नीले हो जाते
धमनियां रुक जाती
होंठ सी जाते ।
छूटते आस पास
विरह आलाप करते
रूठते एकाकी से
बंधन जाप करते
रोम रोम कुंठित , कलुषित
भीतर के नाले
कल कल बहते
बाहर की ओर
जीवन को तरसते
हम भागते
भागते भागते
तोड़ देते डोर
साँसों की ।
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