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गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

थकना मना है !

 


मैं

अपने हांथों को तोड़ कर

पीठ दबाने लग जाता हूं

पंजों के ऊपर

मुड़ मुड़ के चूर 

हुए घुटनों के नीचे

जो एक टापू है

उसे निचोड़ता हूं

पैरों को हिलने नहीं देता

कमर से रेंगता बिस्तर पर

गूंथ देता हूं

पैरों को ।

दिन भर दौड़ते भागते

पैरों के निशान

रास्ते नहीं देखते

हाथों में भाव

काठ के हो जाते हैं

काम में देह को

थकना मना है।

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मैं चुप होना चाहता हूँ .

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