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सोमवार, 8 फ़रवरी 2021

मिलन !


तुम्हे समय नही मिलता ?

मुझे भी नही मिलता !

ये सोचकर बोलूं 

कि मैं तुमसे मिलूं 

हुँह !

नही मिलना 

मिलकर प्रीत के मीठे कीड़े

रेंगते हैं दिमाग में

रहा बचा की उलझन

गुम होती है

न मिलने में !

3 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

अरे!
गज़ब

Virendra Singh ने कहा…

सुंदर। आपको बधाई और शुभकामनाएँ।

मन जैसा कुछ ने कहा…

मिलकर प्रीत के मीठे कीड़े

रेंगते हैं दिमाग में...

बहुत खूब..
प्रणाम आपको

बड़ा पार्क / कहानी

    डिस्क्लेमर :- कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं . जगह और समय भी काल्पनिक है . कहानी में किसी भी नाम और समाज का उपयोग , केवल वस्तुत्स्थ...