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रविवार, 27 सितंबर 2020

समाधान समस्या नहीं !


समाधान का काम 

समस्या से जटिल है

कहीं तो पीढ़ियां खप जाती

कहीं जन्म लेता बचपन

मुंह फेर लेता

शिकन माथे की

त्योरियां हो जाती 

बरसने को तैयार 

कारोबार 

यकीन नहीं करता


हम सब लोग ही तो हैं !

बड़े छोटे

ऊंचे नीचे


आपस में बात करना

चीन की दीवार होना

समन्दर में चांद होना

कोई मुश्किल नहीं है 

और न ही

बच्चे का 

ए से ज़ेड पढ़ना !


मैं सोचता हूं

बूढ़ा हो चला हूं

देह लुजगुन

पलट जाती है

कुछ ठोस

सुझाई नहीं देता 

पर हां 

वक़्त परिश्रम से

चलता है 

श्रम की गुंजाइश न हो

तो दिमाग से 

संसाधन को मानव 

साधन 

बन जाने दो !



मंगलवार, 15 सितंबर 2020

वो कहीं ...

 वो कहीं डर के छिपे है

मेरी किस्मत की तरह ...

बात दो बात की हामी

मेरी फितरत ही कहां...

शनिवार, 12 सितंबर 2020

शायद मैं न रहूं !





होना संसार की

सबसे छल शै  है ।


मैं जब नहीं था

और जब मैं हूं 

या मैं था

और अब नहीं हूं

रहूंगा या नहीं 

यकीनन नहीं रहूंगा ...


कौन आभास कराता है 

मेरे होने न होने को

रोज़ पैदा होता हुआ मैं

या मेरे पहले

पैदा करने वाले मुझे ?


या फिर 

रेंगती ज़िन्दगी में 

होने की बाँट जोहते  

बनते बिगड़ते समीकरण  

घटनाएँ , परिद्रश्य.... 


थक चला हूँ

अपने होने का प्रमाण देते देते  

कोई हक नहीं

मैं , मुझे मेरी जागीर समझूँ  

बेदखली से डरूं 

मैं रहूँ 

शायद मैं न रहूँ ....    


गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मैं नहीं मानता !








मैं नहीं मानता आतताई व्यवस्था को

ठग पुलिस को ,

कुटिल जन प्रतिनिधि को

चौराहों पर खड़े गुंडों को ,

घरों में पड़े मुस्टंडों  को


मैं नहीं मानता ईश्वरीय मान्यताओं को

बंधन में बंधे रिश्तों को, 

पितृसत्तात्मक ढांचों को , 

रूढ़ियों की किरचों को


मैं नहीं मानता अपनी देह को

आती जाती सांसों को , 

चक्रव्यूह में फंसते मन को

अपने अकेलेपन को !


मैं मानता हूँ 

समस्याओं के जड़ में बैठे 

समाधानों को 

कर्म को , प्रकृति को 

सायास सरल रिश्तों को 

और मृत्यु को ! 

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...