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गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

Kahna vyaktigat

Kitna kathin hota hai kehna
Kahne ko bahut si baaten
Roz chaunki jati hain
Din ke pateele mein 

Shaam ki piyali 
Aundhe munh girti 
Khanakti door Chali jati hai 

Kahne ko bacha hi kya hai
Humare tumhare darmiyan
Hum jab bhi kahne ko
Chalte hain , bhid jate hain
Choor choor ho jate hain
Haar ke rooth jate hain

Bagair kuch kahe sune 
Kayi saal kajal ki kothri
Mein surmayi sapnon ke 
Khwaab paarate hain 

Behtar hai 
Kahne ki aadat mein
Sunne ko ahmiyat dena
Sunna prakratik hai
Kahna vyaktigat !

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

रेशम !

 हम लांघ जाते हैं 

अपनी हदें

लांघने के बाद 

सहसा सांस 

रुक जाती है ! 

हम पाते हैं

अनजान मरुस्थल में

कोई दिशा नहीं

वजह कोई भी हो

हालात कैसे हों

हमने जो किया है

वह शह और मात है

न मानने की गुंजाइश

होती भी है

नहीं भी !

प्रेम आशा वादी लोगों

का समागम है। 

जो जानते हैं

पानी सा घुल जाना

मीठी बयार ही है

सांस ना मिले

तो बिगड़ना तय है !


शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2020

नंदी

 नंदी को पता नहीं उसकी मां उसको पैदा कर के क्यों चली गई ट्रेन में बैठ कर। उसको यह भी नहीं पता चला कि ट्रेन किस दिशा में गई। पता चलता तो आज वो मुक्त होता । वो मुक्त होता और व्यस्त होता उसके अपनों के द्वारा संवारी गई ज़िन्दगी में । 

उसकी मुस्कान में बोरिंग से निकलते हुए पानी की इतनी तरावट है। बड़ों के भार उसके मजबूत कंधों पर सवाल हो कर उसे उदास कर देते हैं। शाम को भौरियों ऐसे पाओं लेकर हांथी की तरह चलता है। उसकी खानगी को लेकर अक्सर लोग हंसते हैं। सुबह ग्यारह बजे वो कहता है हां खाना खा लिया। समय पूछने पर बीती शाम उसकी आंखों में तैरती है। वो गुल्लक में पैसे जमा कर रहा है। दिवाली में संभवतः उसे नए कपड़े खरीदना नसीब हो। वो  छह भाइयों का कथित भाई है। गालियां , मार और बुरा भला उसको बहुत अखरता है। वो लड़ता है , गुस्साया रहता है। सब के काम करता है। 

 वो खाली समय में सायकिल चलाता है। पास के कुत्तों के पिल्लों से खेलता है। उनका ख्याल रखता है। गुल्लक को बार बार उठाकर देखता है। वो जल्द ही बड़ा होना चाहता है। दिल्ली जाकर किसी ढाबे पर या किसी फैक्ट्री में काम करना चाहता है। वो मजबूत होकर जगह बदलना चाहता है। उसके दिन पहाड़ से होते हैं। रातें पता नहीं चलती बेहोशी में।  वह जल्द ही मुक्त होना चाहता है।


शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

बेलातलि !



कभी भूतों के किस्सों से मशहूर , भविष्य के बदलाव से अनिभिज्ञ बेलातली जरूर खुश होती होगी। इतना बड़ा काया कल्प , इतना सुन्दर प्रयास ! कुछ बतखें हरा पा लीं हैं। पानी पा गई है। चिड़िया , मछली और जलीय चर सफाई पाए है। बच्चों ने सपने पाए हैं।  नौकायान का नज़ारा, सुबह शाम की सैर इंसान की आंखों में तालाब जितना पानी हो जाना शुभ है। 

कभी विशालकाय शुगर फैक्ट्री का हलाहल पीने वाली बेलातालि को भूत चुड़ैल का अड्डा कहा जाता था। उस ओर जाती इमली रोड और बेलताली का गहरा नाता प्रतीत होता। पता नहीं कौन कौन कहानियां सुन बड़े हुए हम सब। अजीब सी घबराहट होती इस क्षेत्र से। 

सारी कहानियां अब सुबह की तरोताजा हवा हो गई है। एक तरफ खेत खलिहान , एक तरफ इंडस्ट्रियल एरिया एक तरफ नव उदारी करण के व्यू में दिखते होटल। सब कुछ अब तर गया। एक सुंदर सा उपवन जो अभी बढ़ रहा है। उसकी ठंडक अभी से उसके पास से ही महसूस होती है। सुबह शाम नौकाविहार से उत्पन्न पानी की छल छल कानों को हल्का करती हैं। तालाब के किनारे थोड़ा ही सही वेटलैंड बचा के रखा गया है। इस तालाब का बचना सबसे बड़ी बात है।

एक जमाना था जब हरदोई के कम्पनी गार्डन में पेडल बोट थीं। हिरन थे। उस छोटे से तालाब के किनारे स्कूली बच्चे बाज़ार लगाते थे। इंस्टीट्यूट ऑफ बाइबल या असेम्बली ऑफ गॉड के ठीक सामने अंग्रेज़ी स्टाईल मोटल कम्पनी गार्डन का हिस्सा होता था। नर्सरी , तरणताल, ट्रैक , मार्शियल आर्ट , देसी कसरत , रोज़ गार्डन और न जाने क्या क्या । वो तालाब सूखा फिर सारी रौनक चली गई। 

कभी एक जिलाधिकारी ने कोई तफ्तीश कराई थी। जिसमें तथ्य पाए गए थी । कि हरदोई में बहुत सारे जलाशय हैं। एक जलाशय का संरक्षण हुआ तो उसको सांडी पक्षी विहार से जाना गया। शहर और गांवों में तालाब ही तालाब हुआ करते थे । पर वो सब हलक में सूखते गए। 

फैक्ट्री बरसों से बंद है। यह तालाब सूख रहा था। इसे वर्षों बचाते बचाते खा जाने वाली नज़रों ने इसे छोटा जरूर कर दिया है। पर एक जिलाधिकारी के प्रयासों सेइसे नल कूप से भरने की कोशिश कई महीनों से जारी है। जो कि बिजली के बकाए से बंद हो जाता है कभी कभी। कोई प्रकृति का जानकार ही बता सकता है। कि इसमें पानी कब तक भरा जाएगा यूं ही। सवाल तो उठते ही हैं डलझील से लेकर नैनीताल तक। पर सूरत बदले और सीरत ना बदले तो क्या कहने। बेलाटाली की हजारों मछलियां आज कल ब्रेड खा रही हैं। आंटा खा रही हैं। हम भी जाते हैं अब हवा खाने।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...