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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

बेलातलि !



कभी भूतों के किस्सों से मशहूर , भविष्य के बदलाव से अनिभिज्ञ बेलातली जरूर खुश होती होगी। इतना बड़ा काया कल्प , इतना सुन्दर प्रयास ! कुछ बतखें हरा पा लीं हैं। पानी पा गई है। चिड़िया , मछली और जलीय चर सफाई पाए है। बच्चों ने सपने पाए हैं।  नौकायान का नज़ारा, सुबह शाम की सैर इंसान की आंखों में तालाब जितना पानी हो जाना शुभ है। 

कभी विशालकाय शुगर फैक्ट्री का हलाहल पीने वाली बेलातालि को भूत चुड़ैल का अड्डा कहा जाता था। उस ओर जाती इमली रोड और बेलताली का गहरा नाता प्रतीत होता। पता नहीं कौन कौन कहानियां सुन बड़े हुए हम सब। अजीब सी घबराहट होती इस क्षेत्र से। 

सारी कहानियां अब सुबह की तरोताजा हवा हो गई है। एक तरफ खेत खलिहान , एक तरफ इंडस्ट्रियल एरिया एक तरफ नव उदारी करण के व्यू में दिखते होटल। सब कुछ अब तर गया। एक सुंदर सा उपवन जो अभी बढ़ रहा है। उसकी ठंडक अभी से उसके पास से ही महसूस होती है। सुबह शाम नौकाविहार से उत्पन्न पानी की छल छल कानों को हल्का करती हैं। तालाब के किनारे थोड़ा ही सही वेटलैंड बचा के रखा गया है। इस तालाब का बचना सबसे बड़ी बात है।

एक जमाना था जब हरदोई के कम्पनी गार्डन में पेडल बोट थीं। हिरन थे। उस छोटे से तालाब के किनारे स्कूली बच्चे बाज़ार लगाते थे। इंस्टीट्यूट ऑफ बाइबल या असेम्बली ऑफ गॉड के ठीक सामने अंग्रेज़ी स्टाईल मोटल कम्पनी गार्डन का हिस्सा होता था। नर्सरी , तरणताल, ट्रैक , मार्शियल आर्ट , देसी कसरत , रोज़ गार्डन और न जाने क्या क्या । वो तालाब सूखा फिर सारी रौनक चली गई। 

कभी एक जिलाधिकारी ने कोई तफ्तीश कराई थी। जिसमें तथ्य पाए गए थी । कि हरदोई में बहुत सारे जलाशय हैं। एक जलाशय का संरक्षण हुआ तो उसको सांडी पक्षी विहार से जाना गया। शहर और गांवों में तालाब ही तालाब हुआ करते थे । पर वो सब हलक में सूखते गए। 

फैक्ट्री बरसों से बंद है। यह तालाब सूख रहा था। इसे वर्षों बचाते बचाते खा जाने वाली नज़रों ने इसे छोटा जरूर कर दिया है। पर एक जिलाधिकारी के प्रयासों सेइसे नल कूप से भरने की कोशिश कई महीनों से जारी है। जो कि बिजली के बकाए से बंद हो जाता है कभी कभी। कोई प्रकृति का जानकार ही बता सकता है। कि इसमें पानी कब तक भरा जाएगा यूं ही। सवाल तो उठते ही हैं डलझील से लेकर नैनीताल तक। पर सूरत बदले और सीरत ना बदले तो क्या कहने। बेलाटाली की हजारों मछलियां आज कल ब्रेड खा रही हैं। आंटा खा रही हैं। हम भी जाते हैं अब हवा खाने।

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