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सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

रेशम !

 हम लांघ जाते हैं 

अपनी हदें

लांघने के बाद 

सहसा सांस 

रुक जाती है ! 

हम पाते हैं

अनजान मरुस्थल में

कोई दिशा नहीं

वजह कोई भी हो

हालात कैसे हों

हमने जो किया है

वह शह और मात है

न मानने की गुंजाइश

होती भी है

नहीं भी !

प्रेम आशा वादी लोगों

का समागम है। 

जो जानते हैं

पानी सा घुल जाना

मीठी बयार ही है

सांस ना मिले

तो बिगड़ना तय है !


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