कुल पेज दृश्य

रविवार, 24 मई 2020

रोहिणी !

- तुम्हे जाना नहीं है ? रोज रोज देर होने का ताना देते रहते हो ! जैसे मेरी ही वजह से तुम्हे हर रोज दफ्तर के लिए देर हो जाती है .
* जाना है यार ! पर आज थोड़ा लेट जाऊँगा .
- क्यों ?
* क्यों क्या होता है ! अभी नहीं जाना तो बस नहीं जाना. तुमने खाना बना के रख दिया है . तुम्हारा काम ख़त्म . बाकी का मुझपर छोड़ दो .
- कैसे छोड़ दूँ ? मेरी कोई अपनी लाइफ नहीं है क्या ?
* मतलब ?
- मतलब ये कि मैं तुम्हारे हिसाब से चलती रहूँ . सुबह से लेकर देर रात तक . तुम्हारी सुबह की  चाय. तुम्हारा ब्रेकफास्ट , तुम्हारा टिफिन , तुम्हारे माँ बाप का खाना पीना, उनका ख्याल . शाम की चाय . रात का खाना . बिस्तर लगाना . और सोने से पहले कभी तुम्हारा सर तो कभी तुम्हारे पैर दबाना .
* अरे रे रे रे   !!!! तुम बात को कहाँ ले जा रही हो ? तुमसे तो बात करना बेकार है .
(रिषभ झन्न में लैपटॉप बन्द करता है , टिफिन उठाता है और निकल जाता है दफ्तर के लिए )

रोहिणी बाहर का दरवाज़ा बन्द कर के रसोईं समेटने लगती है ... मां के सीढियों से उतरने की आवाज़ सुनकर रोहिणी दौड़ी दौड़ी उन्हें सहारे से उतार लाती है डाइनिंग टेबल तक . टेबल पर नाश्ता लगा के वो अपने कामों में फिर से व्यस्त हो जाती है .
बहू ओ बहू !  ज़रा बाबू जी से भी पूछ लेती नाश्ते के लिए .
अच्छा माँ ...
बाबू जी को अखबार और नाश्ता पहली मंजिल पर बने कमरे में अपने बेड पर ही चाहिए होता .
    ------------------------------------------------------------------------------
उस बन्द घर की चाहरदिवारों की परिक्रमा करते करते रोहिणी के पैर भर आते . अक्सर सिर दर्द की शिकायत रहती  . कूल्हों के बीच रीढ़ की हड्डी अक्सर  चिनग उठती  .एक के बाद एक कामों को निबटाने की उलझन में वो अपना ख्याल कम ही रख पाती  वो ये सब किसके लिए करती ? जवाब एक ही होता " अपने परिवार के लिए !
फिर भी किसी न किसी का मुंह फूला बना रहता . शिकायतें और काम दोनों ख़त्म होने का नाम नहीं लेते. मानों दोनों ने एक दूसरे से अपनी अपनी सुविधानुसार संधि कर रखी  हो .

इधर कुछ दिनों से रिषभ का बिगड़ा मिजाज रोहिणी को खाए जा  रहा था . बिना पूछे कोई काम करो तो कहेगा ' पूछा क्यों नहीं ? .. पूछ लिया तो मुझसे क्यों पूछ रही हो . छोटी छोटी बातों में तुनुकमिजाजी शरीर का खून पतला कर देती है . उसने अब सोचना कम कर दिया है . सोचने से क्या होता है सिवाय खुद का कलेजा जलाने  के . उसे मालूम है कि उसे जैसे तैसे किसी भी तरह अपने आप को काम करने लायक बनाए रखना है . शायद जिम्मेदारी इसी को कहते हैं . जो हर स्त्री अपने कन्धों पर न चाहते हुए भी उठाये रखती है . पति की घर के प्रति बेफिक्री भी शायद इसी जिम्मेदारी की परछाईं में पलती हो .

रोहिणी दोपहर का सारा काम ख़त्म कर के नहाने चली गयी . उसके पीछे कभी फोन की घंटी तो कभी डोर बेल घनघनाती रही  . माँ बाबू जी के जवाब दे चुके घुटनों ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में बाँध कर रख दिया था . बार बार उन्हें नीचे - ऊपर, उतरने -  चढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ती . रोहिणी की  बे - हिसाब खातिरदारी ने उन्हें और  ठौर ठीहा कर दिया था .  रोहिणी चाह के भी बीच नहान में घंटियाँ  अटेंड  नहीं कर सकती थी . मगर जेहन में वो घंटियाँ लगातार बजती रही . नहाने के बाद वो फोन में पड़ी मिस कॉल चेक करती हैं . उसमें 4  मिस कॉल रिषभ की, 1  उसके भाई की और एक किसी अननोन नंबबर से थी .
  फोन स्क्रीन पर स्क्रोल करते हुए भाई के पास कॉल बेझिझक लग जाती है . उधर से उत्साह से भरी खनकती आवाज़ में "दी हैप्पी एनिवर्सरी" सुनाई दिया . थैंक यू भैया !  मुस्कुराते हुए अचरज से पूछती है भाई तुम्हे कैसे याद रही  मेरी एनिवर्सरी ? .. तुम्हे  मेरा जन्मदिन तो याद नहीं रहता .  क्या दीदी तुम भी ! शादी के बाद से जन्मदिन की छुट्टी हो जाती है . बस वेडिंग एनिवर्सरी रह जाती है . जोर से ठहाका लगाकर वो पूछता है " और क्या ख़ास हो रहा है दीदी आज के दिन ? कुछ नहीं भैया बस रोज का रूटीन ... और बचा ही क्या है जीवन में .
खैर ! तुम सुनाओ कैसी चल रही है तुम्हारी पढाई और घुमाई ? बस दीदी सब ठीक ही चल रहा है .
  कॉल वेटिंग में रिषभ का नंबर देख रोहिणी भाई से कॉल स्वैप करने की  इजाजत लेती है और कहती है  भाई फुर्सत मिलते ही तुम्हे करती हूँ कॉल . !
     रिषभ का कॉल अटेंड करते ही वह बोली ....  हां बोलो ! दूसरी तरफ से ऊँची आवाज़ में ...फोन क्यों नहीं उठाया ? 6 बार कॉल कर चुका हूँ . बाहर दरवाज़े पर कोई तुम्हारा इंतजार करके चला गया . पता नहीं कहाँ व्यस्त थीं . मैंने तुम्हारे लिए बुके भेजा था . वो बेचारा डिलीवरी मेन इंतज़ार कर के वापस चला गया .  मैरिज एनिवर्सरी विश  करने के लिए फोन किया था . सारा मूड ख़राब कर दिया . नान सेन्स ...... !!!! कह कर  रिषभ  ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया .
        रोहिणी की आँखों में पानी भर आया  , गला रुंध गया .  उसने दो बार पलट के कॉल की . पर इस बार मशीनी आवाज़ में " आपके द्वारा डायल किया गया नंबर अभी व्यस्त है , कृपया कुछ समय पश्चात प्रयास करें " आपके द्वारा डायल किया गया नंबर स्विच्ड औफ़ है कृपया कुछ समय पश्चात् कॉल करें "  सुनाई दिया . उसने फोन साइलेंट  मोड पर सेट कर चुप चाप जाकर अपने कमरे में लेट गयी . वैसे उसे दोपहर में सोने की आदत नहीं है या यूँ कहें समय नहीं होता . पर आज भारीपन के कारण  उसकी आँख लग गयी . टुकड़े टुकड़े सपनों के ताने बाने में उलझती , सिहरती वो विचरती रही .  डोर बेल की अधीर आवाज़ के साथ उसकी नींद टूटी .
        रिषभ दरवाज़े पर उसके सामने हाँथ में कुछ थैली भर सामान लिए खड़ा था . ये सामान रखो , अभी मैं कुछ देर में आता हूँ . हमारी एनिवर्सरी पर मैंने कुछ दोस्तों को इनवाईट किया है . पीछे पड़ गए थे स्साले पार्टी के लिए . तुम खाने की तैयारी करो . लेट मी ग्रैब सम ड्रिंक्स .
       रोहिणी ने सामान रसोई में रख दिया . और फोन देखने लगी . कई छूटी हुयी कॉल्स . उनमें से  कुछ जानने वाले लोगों की और वही अननोन नंबर से मिस्ड कॉल्स . उसके पास उन मिस कॉल्स का जवाब देने के लिए न तो समय था न ही इच्छा .  शाम की चाय के साथ ग्रैंड डिनर की तैयारियों में एक बार फिर से वह रसोईं वाले खूंटे में बन्ध गयी . रिषभ वापस आकर ड्रिंक्स फ्रिज में लगा कर फ्रेश होने चला जाता है . वह नहा धो कर फ्रेश मूड से खाने में रोहिणी की मदद करने लगता है . दोनों बिना किसी संवाद के डिनर की तैयारी में जुट जाते हैं .
        सीढ़ियों से बाबू जी के खट.....एक अंतराल .... पट उतरने की  आवाज़ आती है. रिषभ उनके पैर छू कर उन्हें सोफे पर बैठाल देता है . पापा  आज हमारी वेडिंग एनिवर्सरी है . सो मैंने सोचा कि एक पार्टी रख लेते हैं . घर का माहौल बदलेगा . महीनों एक जैसे दिन काट काट के हम सब बोर हो जाते हैं . सोचा फॉर अ चेंज .....
        हां हां बेटा क्यों नहीं ! 6  साल हो गए तुम्हारी शादी को . वक़्त निकलते पता ही नहीं लगता . लगता है जैसे अभी अभी रोहिणी ब्याह के घर आई हो . रोहिणी और तुम लोग खुश तो हो ना ?
       हां पापा ! आप और माँ के आशीर्वाद से सब कुछ ठीक चल रहा है . बस एक ही कमी खलती है . बच्चे की .
   तुम किसी डाक्टर से कंसल्ट कर तो रहे हो ! क्या रेस्पोंस है उसका ?
पापा कई डाक्टर से कंसल्ट कर चूका हूँ . पर डाक्टर प्रसाद की बातों में दम खम लगता है . कहते हैं यह साल नहीं चूकेगा . और यदि स्वाभाविक तौर पर नहीं संभव हुआ तो आई वी एफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन गर्भधारण करवाने की एक कृत्रिम प्रक्रिया) वाला औप्शन कहीं गया नहीं .
 अच्छा अच्छा ठीक है ! चलो तुम लोग पार्टी की तैयारी करो मैं ज़रा घूम के आता हूँ . और हाँ तुम्हारी पार्टी में मैं भी शामिल रहूँगा . हा हा हा ....!
रिषभ रसोईं में पहुँचते ही काम कर रही रोहिणी को  कंधे से धकेलता है . रोहिणी को गुदगुदाते हुए कहता है  6 साल हो गए हमारी शादी को ! गहरी सांस लेते हुए ! बस एक बच्चा हो जाता , तो सारी कमी पूरी हो जाती . हम सब की .
    रोहिणी झुंझलाकर कहती है ! मुझे नहीं चाहिए बच्चा वच्चा ! मुझे लगता है हम अभी बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए तैयार नहीं हैं . हमारे बीच बढती दूरियों का क्या असर पड़ेगा उस पर ? किसी के पास समय है, उस बच्चे की देख रेख करने को ? माँ बाबूजी वक़्त से पहले ही रिटायर हो चुके हैं . काम से भी और शरीर से भी . तुम्हारे पास काम से ज्यादा काम का रोना है . मेरे पास घर का चुल्हा चौका , झाड़ू पोछा और तुम सब मानसिक बीमार लोगों की तीमारदारी की जिम्मेदारी . एक अच्छी भली नौकरी करती थी . बाहर निकल कर खुली हवा में सांस लेने का जरिया था वो . अपनी झूठी शान में तुम सब लोगों ने वो भी छुडवा दी .
  रिषभ के भीतर करेंट सा दौड़ गया . जस्ट स्टॉप दिस नान सेन्स . अदरवाइज़ ......
नहीं तो क्या ? रोहिणी का पारा सातवें आसमान पर था . रिषभ की  तरफ उसके तने हुए हाँथ हथियार हो चले थे .
माहौल को गर्माता देख रिषभ कुछ ठंढा होता है ... जस्ट लीव इट , आई कांट अफोर्ड दिस , राईट नाऊ .
फ्रीज़ से एक बियर निकाल के एक सांस  में आधे से ज्यादा उड़ेल लेता है . दिस टाइम विल पास औन ... डोन्ट वरी .... एक बार बच्चे के कदम घर में पड़ते ही सब कुछ ठीक हो जाएगा.
       डोर बेल बजती है . रिषभ दरवाज़ा खोलता है . उसके चार पांच दोस्त " वैरी वैरी हैप्पी एनिवर्सरी " कह कर घर पर धावा बोल देते हैं . मजाक ठहाकों से घर गूँज उठता है . मेहमानों की दूसरी खेप में रिषभ के आफिस कलीग आते हैं . जिसमें उसके ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करने वाली  रेखा भी शामिल है. रेखा को देखते ही रिषभ की माहौल को ख़राब होने की  चिंता कुछ कम हुयी  . रेखा आओ चलो मैं अपनी वाइफ से तुम्हे मिलवाता हूँ . अच्छा हुआ तुम आ गयीं . रोहिणी का हाँथ बंट जाएगा . रेखा को देख कर रोहिणी भी नार्मल हुयी . रिषभ ने रोहिणी से कहा जल्दी से तुम तैयार हो जाओ . नाऊ वी आर इन सेलिबेरेशन जोन .
       रोहिणी रेखा को काम समझा कर अपने रूम में तैयार होने चली गयी . साइलेंट फोन की स्क्रीन पर वही अन नोन नंबर फ्लैश हो रहा था . उसने फोन पलट कर रख दिया . शावर से निकलने वाली गुनगुनी बूंदों से रोहिणी ने अपनी सारी जहनी और जिस्मानी थकन धो डाली . मन पसंद ड्रेस पहनी . शीशे के सामने बैठ कर गहरी - लम्बी साँसे समेटती - छोडती  . उसने ड्रेसिंग टेबल पर  एक उदास मुखौटा उतार के रख दिया और दूसरा पार्टी टाइप पहन लिया .  फोन पर अभी भी वो अन नोन नंबर फ्लैश कर रहा था . फोन को अन लॉक किया . उस अन नोन नंबर की 26 मिस कॉल्स .
        रोहिणी ने नंबर डायल किया . फोन के दूसरे छोर से भारी , गहरी ठहरी हुयी आवाज़.... हेलो रोहिणी   !
 एक लम्बी चुप के बाद ..  कौन ..... राकेश ?
हाँ ! मैं राकेश बोल रहा हूँ .
ओह ! कैसे हो ?
मैं ठीक हूँ , तुम कैसी हो ?
मैं भी ठीक हूँ .
परसों से मैं तुम्हारा नंबर ट्राई कर रहा हूँ . उठ ही नहीं रहा . थोड़ी सी फिक्र हुयी . मुझे तुम्हारी एनिवर्सरी याद थी . इत्तेफाक से मैं शहर में ही हूँ . कल रात मैंने रिषभ का नंबर खोजा . याद आया तुमने एक बार दिया था . कहीं डायरी में लिख लिया था . आज सुबह सुबह मैंने उसे कॉल कर के विश किया . मैंने बोला था उसे तुमको मेरी कॉल के बारे में बताये और मेरी विशेज भी पंहुचा दे...उसने मुझे भी इनवाईट किया था आज शाम को . मैंने सोचा तुम्हारी मर्ज़ी भी तो जरुरी है .
रोहिणी के दिमाग में दिन का पूरा घटनाक्रम रिवाइंड हो गया . उसके  चेहरे पर अभी अभी खिली मुस्कान राकेश तक पहुच चुकी थी . व्यस्तता के चलते मैं कोई उपहार नहीं ले सका . पहुँचता हूँ मैं थोड़ी देर में . और उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी .
 बाहर लिविंग एरिया का  माहौल मस्ती  में सराबोर था . रेखा डिनर को फिनिशिंग टच दे रही थी .
रोहिणी को देख कर रेखा ने उसके सुन्दर दिखने की तारीफ़ की . दोनों उस शोर में शामिल हो गए .
 रोहिणी पहले की तरह अब असहज नहीं थी . उसके दिमाग में राकेश की बातें चल रही थी . राकेश जो कि अब रोहिणी की  दुनिया में नहीं है .फिर भी गाहे बगाहे हाल चाल लेने भर की बातें फोन पर  हो जाती . कई सालों से वो मिले तक नहीं थे. रिषभ से विवाह होने के बाद दोनों ने ही आपसी समझ से एक दूसरे से दूरी बना ली थी . उसका इतनी बार कॉल करना , शहर में होना ... अजीब सा इत्तेफाक है . खासतौर से तब जब रोहिणी अपने आप को बेहद अकेला फील कर रही थी . वो खुद को वापस राकेश से खींच रेखा के पास ले आती है . रेखा दोनों के लिए ड्रिंक्स बनती है . रोहिणी ने नशे के नाम पर कभी कुछ नहीं चखा था . फिर भी उसने रेखा को मना नहीं किया . रेखा पहली ड्रिंक ख़त्म करके दूसरी पर आ गयी . लेकिन रोहिणी की  ग्लास वैसे ही रखी है ... वो दोनों बाकी आदमियों के बीच होते हुए भी अलग ही थे . रोहिणी चाह कर भी खुद को स्थिर नहीं रख पा रही है .   उधर रिषभ अपने सारे दोस्तों के सामने प्रेम, शादी और परिवार पर डींगे हांक रहा है . कई बार रोहिणी का मन हुआ रिषभ से राकेश की कॉल के बारे में पूछने का ....लेकिन उसने टाल दिया . रिषभ ने भी अभी तक राकेश का कोई जिक्र नहीं किया था . 
        हाई नोट्स पर बज रहे संगीत के बीच डोर बेल बजती है . इस बार वो केवल रोहिणी को सुनाई देती है .  रोहिणी यूँ ही अपने मोबाइल में अपना चेहरा देखती है . वो दरवाज़े की धीरे धीरे बढती है . दरवाज़े कि सिटकिनी खोलती है . देहरी के उस पार बाबूजी को देख कर उसके माथे पर फिर से उदासी की लहर रेंगने लगती है . वो खुद को देहरी के उस पार छोड़ बाबूजी को सहारे से  भीतर ले आती है . पूरा घर सुरूर में बहकने लगता है . इस बार रोहिणी ने भी अपनी ग्लास का ड्रिंक ख़त्म कर लिया था . पूरी महफ़िल में रिषभ और रोहिणी ही चर्चा के केंद्र थे . दोनों बगैर आपस में बात किये हुए औरों कि हाँ में हाँ मिला रहे थे . सब रोहिणी के हांथों बनाए स्नैक्स  की तारीफों के पुल बांधते रहे . 

बाबूजी हाँथ में आखरी ड्रिंक उठाये चियर्स करते हुए गर्व से कहते हैं .... रिषभ की पसंद पर मुझे नाज़ है जिसने रोहिणी जैसी बहू का चुनाव किया . डिनर ख़त्म होता है . अस्त व्यस्त घर छोड़ के सारे मेहमान एक साथ बाहर निकल जाते हैं . रिषभ और रोहिणी भी बाहर तक सबको सी औफ़ करने आते हैं . रिषभ दोस्तों के साथ कुछ दूरी तय करता है . रोहिणी पलट के घर के अन्दर प्रवेश करने को मुड़ती है . दरवाज़े के बाहर किनारे वाली बेंच पर एक किताब और कुछ फूल पाती है . किताब के कवर पर काँटों में उलझी एक काया नज़र आती है . नीचे बॉटम में किताब का नाम " रोहिणी " लिखा होता है . पहले पन्ने पर " हैप्पी एनिवर्सरी " फ्रॉम राकेश लिखा देख कर रोहिणी अवाक रह जाती है . अपने कमरे में जाकर फोन से " थैंक यू " का मेसेज उस अन नोन नंबर पर भेज देती है . और अस्त व्यस्त पड़े घर को संभालने में लग जाती है ... 

*****************************************************

कोई टिप्पणी नहीं:

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...