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शनिवार, 2 मई 2020
दूध
मां हमेशा दूध के लिए बहुत संवेदनशील रही . मसलन खुद से घंटों इंतज़ार कर के दूध लाना. उसको अपनी आँखों के सामने खौलाना . खौला कर उसको एकदम ठंढा करना. सुबह फ्रीज़ से निकले दूध की मोटी मलाई को निकाल कर एक अलग बर्तन में रख देना. फिर उस दूध को जरुरत के हिसाब से छोटे छोटे बर्तनों में बाँट के रख देना . हर दिन फ्रीज़ में कम से कम तीन से चार छोटे बड़े बर्तनों में दूध रहता ही रहता है. इस पूरी कसरत का नतीज़ा महीने भर घी के रूप में घर भर के खाने का स्वाद बढाता रहता है. उन्होंने न जाने क्यों दही को कभी ज्यादा तरजीह नहीं दी . दही को वो अधिकतर बाईपास कर जाती . कई बार फरमाइश पर एक आध बार कभी जमा दिया तो ठीक . वरना दही का जावन बाहर से ही लाना होता.
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