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गुरुवार, 14 मई 2020

पलायन !














एक दिन जब मैं
चैन से सो रहा होऊंगा ...
पीछे छूटी सैकड़ों मील थकन 
पैदल चलने का दर्द नहीं रहेगा 
कर्ज की कोख में उपजे साधन 
समाधान हो जायेंगे 
परिवार के बोझ से 
काँधे हलके हो चुकेंगे 
दूर देश 
मैं सपनों की गठरी बांधे 
अपने बच्चों में 
तारे बाँट रहा होऊंगा !

एक दिन जब मैं 
चैन से सो रहा होऊंगा ...
खेतों में बालियाँ ठूंठ हो चुकेंगी 
घरों के चूल्हे बुत चुकेंगे
महामारी में मडैया चल निकलेंगी  
दुध मुहें बच्चे 
सूखे  स्तनों से चिपटे 
मुझ तक आ पहुचेंगे 
मैं गहरी नींद में लोरियां गुनते 
थपकियाँ देकर उन्हें सुला दूंगा 


एक दिन जब मैं 
चैन से सो रहा होऊंगा
जंग के बाद
जीत का जश्न होगा 
मजदूरों से खाली मकान होगा  
सरकारें मेरे नाम से 
राशन बाँट चुकी होंगी

एक दिन जब मैं 
चैन से सो रहा होउंगा 
सिर्फ सो रहा होऊंगा 
सिर्फ सो रहा होउंगा. 

तस्वीर : साभार गूगल

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