कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 5 मई 2020

सहन के उस पार !



रामी ने अब ठान लिया था कि वो गुल्टू को लेकर  घर वापस  कभी नहीं आएगी .  जिग्गा ने इस घर में रहना नरक कर दिया था . शराब के नशे में जिग्गा आदमी नहीं रह जाता . वो जानवर से भी बदतर व्यवहार करता . आये दिन मार पीट, बलात्कार, गाली गलौज और  बच्चे को जान से मार कर खुद मर जाने की धमकी रामी से सहन नहीं होती .
 जिग्गा की  वहशत उसकी पहली पत्नी ने सहन नहीं की . तो वो क्यों करे भला ! उसने खुद को आग लगा ली थी . कोर्ट कचहरी के डर से घरवालों ने उसे घर में ही दफना दिया था . रामी 5  सालों  से जिग्गा और उसके परिवार को  सहन  करती आ रही थी . पर अब नहीं ... अब और नहीं ....! रात में वो किसी समय गुल्टू को लेकर कहीं दूर चली जाएगी . 
     रामी.... रामी ! कहाँ मर गयी , दरवाज़ा खोल ! जिग्गा की लहराती हुयी, ऊँची , कर्कश आवाज़ सुन रामी सिहर जाती है . झट से वो आजादी के सपनों से भरी गठरी  को तख़्त के नीचे सरका देती है . अपने चेहरे से साहस और डर पोछते हुए दरवाज़ा खोलती है . शराब के नशे में धुत्त 6 फीट का जानवर,  रामी के कन्धों पर अपना धढ़ फेंक देता है . दांतों को किटकिटाते  हुए वो पूरी तरह से उसे छाप लेता है . रामी  उसको ठेल देने की भरपूर कोशिश करती   है.  पर  जिग्गा उसकी देंह पर हावी होता रहता है ... रामी की साँसे भारी होने लगती हैं .
      दोनों के बीच बढ़ते संघर्ष की आवाजें दीवारों को हिलाने लगती हैं . दहशत  से गुल्टू की नींद खुल जाती है और वो जोर जोर से मां को पुकारने लगता है . गुल्टू के चीखने की आवाज़ ने रामी के भीतर न जाने कहाँ की ताकत भर दी . एक पलटे हुए दांव में वो जिग्गा की छाती पर चढ़ जाती है . अपनी जांघों से जिग्गा की  पसलियों को रौंदते हुए थप्पड़ों की  बारिश करने लगती है  .  छटपटाहट की एक झूंक के बाद  जिग्गा सिथिल पड़ने लगता है . कमज़ोर पड़ता देख रामी दौड़ के गुल्टू को अपने गोद में उठाती है . और तख़्त के नीचे रखी गठरी  लेकर, नंगे पैर  तेज़ी से खुले दरवाज़े की  देहरी लांघ लेने को  भागती है....और तेज़ भागती है .... भागती रहती है... खुले आसमान के नीचे .... भोर  होने तक....! 
 

कोई टिप्पणी नहीं:

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...