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शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017


आज जब पढ़ी जा रही होंगी कविताएं प्रेम की,कोई सर झुकाये सुन रहा होगाकोई आँख मूंदे कविताओं में कविता हो रहा होगाकोई सोच रहा होगा क्या ऐसा भी होता है प्रेम मेंकोई उलटे सीधे कदमों से दौड़ रहा होगा अतीत से वर्तमान तककोई नया पाठक कोई नया श्रोता उन शब्दों से बनाएगा इंद्रधनुषकोई आवाज़ महीन से भारी हो रही होगीकिसी के प्रेम में रची गयी रचनाकार की कविताएँकिसी और के जुबान से धड़कने बन रही होंगीकोई गठरी भर लेकर जायेगाकोई छोड़ जायेगा पुरानी होती गठरी को वहीँ उसी जगहमैं हूँगा वहीँ अदृश्यन शब्दों में, न कविताओं में, न जुबान पर, न नज़रों में,न किसी के सर पर सवार, न चाय में...बस एक सांस में हूँगा...वो सब मेरे होने का उत्सव मना रहे होंगे।

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

हा हा हा !
हंसना नहीं होता हमेशा
तीखा कटाक्ष हो सकता है
महसूस होना बंद चुके दुःख की चीत्कार हो सकता है
जब दुःख, पीड़ा, सहन के परे
सुने, दिखे, महसूस न किये जाने के परे
भीड़ में अकेले पड़ जाने पर

हा हा हा
भावशून्य सहमति होता है

जैसे राख हवा में उड़ती है
कागज़ की, पेड़ों की, इंसान की,
एहसासों की उम्मीदों की
एक सी !

जब तस्वीरें बोलना बंद कर दें !
तस्वीरें आज कल बात नहीं करतीं। जब भी कोई दृश्य अपने कैमरे में कैद करने की कोशिश करता हूँ, दृश्य तेज़ी से दौड़ता कैमरे की पकड़ से भाग निकलता है। फ्रेम,कलर कम्पोजीशन, सब्जेक्ट, ऑब्जेक्ट, बैकग्राउंड, लाइट्स, इमैजिनेशन सब बनते बनते बिगड़ जाते हैं। इन सबको अपनी अपनी पड़ी है...और मुझे अपनी। कभी कभी ख्याल आता है...जब नहीं बनती तो छोड़ दो कुछ दिनों के लिए...पर छोड़ना क्या होता है ? छोड़ना, पकड़ना, ढील देना, छूटने के डर से कसके पकड़े रहना...हा हा हा। छोड़ने की कोशिश खुद को छेड़ना है। तस्वीर अच्छी बनेगी या खराब...कौन तय करेगा ? अच्छी तस्वीरों में क्या अच्छा होता है...आँखों को सुख और दिल को सुकून देने वाला अच्छा होता है... ? दिल और दिमाग को झकझोर देने वाला सत्य का दृश्य अच्छा होता है...? या दुःख के नितांत अँधेरे में सुख की चाह के रोशनदान अच्छे होते हैं..? भीतर की दुनिया और बाहर की दुनिया में संवाद बंद हो जाए, तारतम्य बिगड़ जाए, चाल का तालमेल बिगड़ जाए...तो अच्छा बुरा सर पर सवार हो जाता है...बाहर की दुनिया को बाहर की दुनिया में रजा बसा चाहिए। भीतर वाला भीतर में गुम हुए खुद को तलाशता है...खुद पूर्ण होने के बाद ही बाहर से बचे रहते हुए बाहर देखना चाहता है... सच पूछिये तस्वीर वही अच्छी होती है...दृश्य हैं, कैमरा है, मैं हूँ, नज़र है.. पर तस्वीर होने की प्रक्रिया के अंतिम चरण में हाँथ काँप जाते हैं...कांपते हांथों की तस्वीरें पसंद नहीं की जाती हैं...पता है मुझे भाई...पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता...मुझे भरोसा है...तस्वीरें फिर से बात करेंगी मुझसे ठहर के...इत्मीनान से...!

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

"रेसेपी में तुम्हारा रूमान"

मुझे मालूम है तुम्हे हरा पसंद है, पर मुझे लाल। पसंदगी और ना पसंदगी के बीच गहरी खाई है, फिर भी रंग तो रंग है, पसंद तो पसंद है...! तुम्हारे हरे यानी न रुकने को मैंने स्वीकार किया है, मेरे लाल यानी तुम्हारे इंतज़ार में मेरा ठहर जाना मेरी जरुरत है। चुनावी मौसम में सारे रंग लोगों के सर चढ़ के बोल रहे हैं, पर मैंने हमारे रंग को उन रंगों से महफूज़ रखा है, मुझे पक्का यकीन है बाकी सब रंग उतर जाने या एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाने के लिए हैं, पर हमारा रंग एक दूसरे में ढल जाने वाला है। हरी शिमला मिर्च न सही हरी सेम की फली ही सही, और हरी तश्तरी भी । चुकंदर का लाल, गाज़र टमाटर का गुलाबी खूब फब रहा है। स्वाद का न पूछो, कभी कभी हरे और लाल की टकराहट में सफ़ेद शान्ति का नज़र बट्टू सिद्ध होता है। सफ़ेद घी से टकराहट की गुंजाइश कम हुयी होगी शायद। रंग और स्वाद बिल्कुल अलहदा है। 4 बाई 8 के कमरे में कुछ इस तरह कम ही पकता है, पर जब पकता है तो दाना दाना, स्वाद स्वाद तुम्हारे रूमान से भरा होता है।

** ख्याली पुलाव **

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017


बच के रहना अपनों से


बच के रहना अपनों से
अपनों की, सुंदरता पर तारीफों से
अपनों की, सुरक्षा की तैयारियों से
अपनों की, पहरेदारियों से

अपनों की, फिक्रमंदियों से

अपनों की, नाराज़गियों से


हालाँकि बचने के बाद
संभावनाएं प्रबल हैं
तुम टांग दी जाओगी
किन्ही अपनों के द्वारा
अपने ही घर में
या अपनी सड़क पर
अपने मोहल्ले में,अपने शहर में
अपने गाँव में
अपने देश में

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

ख़ुदकुशी से आगे...!

साथ रहने की आदत, और उस आदत को बचाये रखने की जिद...आदत..जिद..जूनून..फिर लौट के वापस न आने के लिए जान से जाना..! कल सुबह की ही बात थी, जब नदी के किनारे पुलिस और तमाशबीनों के झुंड कुछ तलाश रहे थे। हर रात नदी के दोनों किनारों पर महकते फूलों की खुशबू इस सुबह तक तीव्र दुर्गन्ध में बदल गयी थी। उस गंध की तफ्तीश में कोई कहानी ढूंढी जा रही थी। उस कहानी के अंत में किसी को दोषी तो किसी को विक्टिम बनाया जाना था।परिवार, समाज,कानून,न्याय सब उस दुर्गन्ध के पीछे थे,अपने फैसले की मुहर लगाने के लिए।
इस नदी को हाल में ही खूबसूरत बनाया गया है। रंगीन रौशनी, नाचते फव्वारे,एक से एक नायाब फूलों की बाड़ियां (उनमे से कई फूलों को इस आबोहवा की आदत नहीं) आइसक्रीम,चाइनीज़,साउथ इंडियन क्वीज़ीन,जगह जगह जिंदगी में रंग भरने के तमाम इंतजाम..पर नदी के बीचो बीच सिर्फ गहरी नदी है..बहती नदी..उस नदी को सुन्दर बनाने के लिए उसको कई जगह रोका गया, पर वो और गहरी हुयी है।
सुबह नदी के दोनों किनारों पर रात की रंगीनियत के निशानों के बीच एक जोड़ा कुछ दूरी पर खामोश पड़ा था। दोनों की हत्या हुयी थी फिर भी शरीर पर न चोट के निशान, न जोर जबरदस्ती के संकेत। प्रथम दृष्टया झुण्ड ने दोनों के आत्म हत्या कर लेने का मामला जेहेन से लेकर कागजों पर दर्ज कर लिया था। दोनों शरीरों को भेज दिया गया था, बाकी की कहानी के सुराग लेने के लिए। गवाही के लिए मौके के आगे पीछे के चश्म दीदों को भी ले जाया गया था। गवाही में नदी को शामिल नहीं किया गया था, रात के उनके दोनों रंगीन किनारों को भी नहीं और न ही उस पुल को जहाँ से उन्होंने पहली छलांग लगायी थी।
आज फिर रात सजी है, सैकड़ों जोड़े नदी के किनारों पर बढ़ रहे हैं हाँथ में हाँथ डाले। सेल्फ को खो चुके जोड़े जबरदस्ती सेल्फ़ी में घुस के पाउट्स बना रहे हैं। तस्वीरें जो कभी बीतते लम्हों की यादों को संजोये रखने के लिए रख दी जाती थीं,आज उन तस्वीरों के पास स्खलन के सिवाय कुछ नहीं हैं। लगातार स्खलन से, साथ सालों साल तक खाली चलते ही रहते हैं दूरी शायद ही उनके चलने में दर्ज होती है कभी।
इस रात उन सैकड़ों जोड़ों में एक जोड़ा ऐसा है, जो खामोश, नदी के किनारे बैठा है.. अपने साथ के साथ...। उसका साथ कहीं दूर पहाड़ियों से पिघल कर नदी की शक्ल में यहाँ तक आ पंहुचा है। रंगीनियत के शोर के बीच भी उसे नदी की कल कलाती धुन सुनाई दे रही है। नदी फैल जाना चाहती है...उसने भी अपने दोनों पैरों को आपस में जोड़ कर टिका दिए थे नदी के किनारे की हद तक। नदी बहती रही और वह तैरता रहा नदी में सुबह की पहली किरणों तक।
इस नदी को हाल में ही खूबसूरत बनाया गया है। रंगीन रौशनी, नाचते फव्वारे,एक से एक नायाब फूलों की बाड़ियां (उनमे से कई फूलों को इस आबोहवा की आदत नहीं) आइसक्रीम,चाइनीज़,साउथ इंडियन क्वीज़ीन,जगह जगह जिंदगी में रंग भरने के तमाम इंतजाम..पर नदी के बीचो बीच सिर्फ गहरी नदी है..बहती नदी..उस नदी को सुन्दर बनाने के लिए उसको कई जगह रोका गया, पर वो और गहरी हुयी है।सुबह नदी के दोनों किनारों पर रात की रंगीनियत के निशानों के बीच एक जोड़ा कुछ दूरी पर खामोश पड़ा था। दोनों की हत्या हुयी थी फिर भी शरीर पर न चोट के निशान, न जोर जबरदस्ती के संकेत। प्रथम दृष्टया झुण्ड ने दोनों के आत्म हत्या कर लेने का मामला जेहेन से लेकर कागजों पर दर्ज कर लिया था। दोनों शरीरों को भेज दिया गया था, बाकी की कहानी के सुराग लेने के लिए। गवाही के लिए मौके के आगे पीछे के चश्म दीदों को भी ले जाया गया था। गवाही में नदी को शामिल नहीं किया गया था, रात के उनके दोनों रंगीन किनारों को भी नहीं और न ही उस पुल को जहाँ से उन्होंने पहली छलांग लगायी थी।आज फिर रात सजी है, सैकड़ों जोड़े नदी के किनारों पर बढ़ रहे हैं हाँथ में हाँथ डाले। सेल्फ को खो चुके जोड़े जबरदस्ती सेल्फ़ी में घुस के पाउट्स बना रहे हैं। तस्वीरें जो कभी बीतते लम्हों की यादों को संजोये रखने के लिए रख दी जाती थीं,आज उन तस्वीरों के पास स्खलन के सिवाय कुछ नहीं हैं। लगातार स्खलन से, साथ सालों साल तक खाली चलते ही रहते हैं दूरी शायद ही उनके चलने में दर्ज होती है कभी। इस रात उन सैकड़ों जोड़ों में एक जोड़ा ऐसा है, जो खामोश, नदी के किनारे बैठा है.. अपने साथ के साथ...। उसका साथ कहीं दूर पहाड़ियों से पिघल कर नदी की शक्ल में यहाँ तक आ पंहुचा है। रंगीनियत के शोर के बीच भी उसे नदी की कल कलाती धुन सुनाई दे रही है। नदी फैल जाना चाहती है...उसने भी अपने दोनों पैरों को आपस में जोड़ कर टिका दिए थे नदी के किनारे की हद तक। नदी बहती रही और वह तैरता रहा नदी में सुबह की पहली किरणों तक।


कहानी इत्ती सी 

मैं जलना चाहता हूँ
उच्च ताप से नहीं, आग में भी नहीं
मैं भीगना चाहता हूँ
आँखों से नहीं, बारिश में भी नहीं
मैं जम जाना चाहता हूँ
स्थिर साँसों से नहीं, हिमपात में भी नहीं
मैं बचना चाहता हूँ,
मृत्यु से नहीं, जीवन में भी नहीं
तुम
सुन रहे हो न !



जो जलाए जायेंगे
वो देव होंगे
जो दफनाए जायेंगे
वो बीज होंगे
जो बहाए जायेंगे
वो पवित्र होंगे
जो लावारिस हैं
वो विस्फोट होंगे।
अनंतिम संस्कार...!


इंतज़ार 


कुछ यादें
कुछ ख्वाहिशें
कुछ किस्से
और ढेर सारा प्यार
पकाया है

इंतज़ार की मद्धिम आंच में !


कि तुम आओगी एक रोज़
नीली चमकदार आँखों वाली 
बिल्ली की तरह
दबे पाँव
चट कर जाओगी सब !

मैं छिप के देखूंगा
तुम्हारे अघाए हुए मदमस्त
क़दमों को जाते हुए।

मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...