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शनिवार, 1 अप्रैल 2017

ख़ुदकुशी से आगे...!

साथ रहने की आदत, और उस आदत को बचाये रखने की जिद...आदत..जिद..जूनून..फिर लौट के वापस न आने के लिए जान से जाना..! कल सुबह की ही बात थी, जब नदी के किनारे पुलिस और तमाशबीनों के झुंड कुछ तलाश रहे थे। हर रात नदी के दोनों किनारों पर महकते फूलों की खुशबू इस सुबह तक तीव्र दुर्गन्ध में बदल गयी थी। उस गंध की तफ्तीश में कोई कहानी ढूंढी जा रही थी। उस कहानी के अंत में किसी को दोषी तो किसी को विक्टिम बनाया जाना था।परिवार, समाज,कानून,न्याय सब उस दुर्गन्ध के पीछे थे,अपने फैसले की मुहर लगाने के लिए।
इस नदी को हाल में ही खूबसूरत बनाया गया है। रंगीन रौशनी, नाचते फव्वारे,एक से एक नायाब फूलों की बाड़ियां (उनमे से कई फूलों को इस आबोहवा की आदत नहीं) आइसक्रीम,चाइनीज़,साउथ इंडियन क्वीज़ीन,जगह जगह जिंदगी में रंग भरने के तमाम इंतजाम..पर नदी के बीचो बीच सिर्फ गहरी नदी है..बहती नदी..उस नदी को सुन्दर बनाने के लिए उसको कई जगह रोका गया, पर वो और गहरी हुयी है।
सुबह नदी के दोनों किनारों पर रात की रंगीनियत के निशानों के बीच एक जोड़ा कुछ दूरी पर खामोश पड़ा था। दोनों की हत्या हुयी थी फिर भी शरीर पर न चोट के निशान, न जोर जबरदस्ती के संकेत। प्रथम दृष्टया झुण्ड ने दोनों के आत्म हत्या कर लेने का मामला जेहेन से लेकर कागजों पर दर्ज कर लिया था। दोनों शरीरों को भेज दिया गया था, बाकी की कहानी के सुराग लेने के लिए। गवाही के लिए मौके के आगे पीछे के चश्म दीदों को भी ले जाया गया था। गवाही में नदी को शामिल नहीं किया गया था, रात के उनके दोनों रंगीन किनारों को भी नहीं और न ही उस पुल को जहाँ से उन्होंने पहली छलांग लगायी थी।
आज फिर रात सजी है, सैकड़ों जोड़े नदी के किनारों पर बढ़ रहे हैं हाँथ में हाँथ डाले। सेल्फ को खो चुके जोड़े जबरदस्ती सेल्फ़ी में घुस के पाउट्स बना रहे हैं। तस्वीरें जो कभी बीतते लम्हों की यादों को संजोये रखने के लिए रख दी जाती थीं,आज उन तस्वीरों के पास स्खलन के सिवाय कुछ नहीं हैं। लगातार स्खलन से, साथ सालों साल तक खाली चलते ही रहते हैं दूरी शायद ही उनके चलने में दर्ज होती है कभी।
इस रात उन सैकड़ों जोड़ों में एक जोड़ा ऐसा है, जो खामोश, नदी के किनारे बैठा है.. अपने साथ के साथ...। उसका साथ कहीं दूर पहाड़ियों से पिघल कर नदी की शक्ल में यहाँ तक आ पंहुचा है। रंगीनियत के शोर के बीच भी उसे नदी की कल कलाती धुन सुनाई दे रही है। नदी फैल जाना चाहती है...उसने भी अपने दोनों पैरों को आपस में जोड़ कर टिका दिए थे नदी के किनारे की हद तक। नदी बहती रही और वह तैरता रहा नदी में सुबह की पहली किरणों तक।
इस नदी को हाल में ही खूबसूरत बनाया गया है। रंगीन रौशनी, नाचते फव्वारे,एक से एक नायाब फूलों की बाड़ियां (उनमे से कई फूलों को इस आबोहवा की आदत नहीं) आइसक्रीम,चाइनीज़,साउथ इंडियन क्वीज़ीन,जगह जगह जिंदगी में रंग भरने के तमाम इंतजाम..पर नदी के बीचो बीच सिर्फ गहरी नदी है..बहती नदी..उस नदी को सुन्दर बनाने के लिए उसको कई जगह रोका गया, पर वो और गहरी हुयी है।सुबह नदी के दोनों किनारों पर रात की रंगीनियत के निशानों के बीच एक जोड़ा कुछ दूरी पर खामोश पड़ा था। दोनों की हत्या हुयी थी फिर भी शरीर पर न चोट के निशान, न जोर जबरदस्ती के संकेत। प्रथम दृष्टया झुण्ड ने दोनों के आत्म हत्या कर लेने का मामला जेहेन से लेकर कागजों पर दर्ज कर लिया था। दोनों शरीरों को भेज दिया गया था, बाकी की कहानी के सुराग लेने के लिए। गवाही के लिए मौके के आगे पीछे के चश्म दीदों को भी ले जाया गया था। गवाही में नदी को शामिल नहीं किया गया था, रात के उनके दोनों रंगीन किनारों को भी नहीं और न ही उस पुल को जहाँ से उन्होंने पहली छलांग लगायी थी।आज फिर रात सजी है, सैकड़ों जोड़े नदी के किनारों पर बढ़ रहे हैं हाँथ में हाँथ डाले। सेल्फ को खो चुके जोड़े जबरदस्ती सेल्फ़ी में घुस के पाउट्स बना रहे हैं। तस्वीरें जो कभी बीतते लम्हों की यादों को संजोये रखने के लिए रख दी जाती थीं,आज उन तस्वीरों के पास स्खलन के सिवाय कुछ नहीं हैं। लगातार स्खलन से, साथ सालों साल तक खाली चलते ही रहते हैं दूरी शायद ही उनके चलने में दर्ज होती है कभी। इस रात उन सैकड़ों जोड़ों में एक जोड़ा ऐसा है, जो खामोश, नदी के किनारे बैठा है.. अपने साथ के साथ...। उसका साथ कहीं दूर पहाड़ियों से पिघल कर नदी की शक्ल में यहाँ तक आ पंहुचा है। रंगीनियत के शोर के बीच भी उसे नदी की कल कलाती धुन सुनाई दे रही है। नदी फैल जाना चाहती है...उसने भी अपने दोनों पैरों को आपस में जोड़ कर टिका दिए थे नदी के किनारे की हद तक। नदी बहती रही और वह तैरता रहा नदी में सुबह की पहली किरणों तक।


कहानी इत्ती सी 

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