कोई है जो इन दिनों
तितलियों के भेष में
उड़ाती रंग पंखों से
कोई है जो इन दिनों
बारिशों के देश में
भिगाती अंग फाहों से
कोई है जो इन दिनों
ख्वाहिशों के शेष में
सताती संग यादों से
कोई है जो इन दिनों
कैसिनो के कैश में
जिताती चाल चालों से
कोई है जो इन दिनों
रोमियों के देश में
जगाती रात आंखों से
कोई नहीं है इन दिनों
पत्थरों के ठेस में
भुला दी बात बातों से ।
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