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रविवार, 22 अक्तूबर 2023

युद्ध के बाद बुद्ध बन आना !



एक सुबह आंख खुली तो बिग ब्रेकिंग ने दिमाग हिला दिया । फिलिस्तीन के हमास ने इजरायली महोत्सव को मातम में बदल दिया । हर जगह खबरें बिल में से निकल आईं । उस भयंकर हमले ने इजरायल को हिला के रख दिया । इजरायल ने उसी वक्त कहा । कि हम जंग में हैं । 

उस हमले का प्रहार नृशंस था । उसके जवाब में इजरायल का जवाब अंतिम और निर्णायक रहने की आशंका है । युद्ध बीच में छूट जाए । तो घाव ज्यादा तकलीफदेह होते हैं । 

इन दिनों दुनिया के किसी दूसरे हिस्से में डर , दहशत और लाशों के ढेर पर अस्त व्यस्त जिंदगी सड़कों पर है । 

बच्चे , महिलाएं और बुज़ुर्ग असहाय महसूस करते होंगे । कब कहां से मौत का फरमान आ जाए । खाने पीने के लाले । हर जगह कोहराम मचा है । 

पिछले साल एक युद्ध शुरू हुआ, अभी खत्म तक नहीं हुआ । और अब दूसरा । हजारों लोगों की जानें गईं । उन जानों के पीछे रह गए क्षत विक्षत देह शरण के लिए भटक रहे हैं । 

न जाने कितने इजरायलियों को घर द्वार खाली करने पड़ रहे हैं । जितने रॉकेट उतने सायरन । जितने सायरन उतने धमाके । कहीं जमीन पर तो कहीं आसमान में । 

दोनों देशों की तरफ से वार टैक्टिक्स इस्तेमाल की जा रही हैं । एक अत्याधुनिक और एक गुरिल्ला । युद्ध से हम सब बचते हैं । पर दोनों ओर से हथियार उठाने वालों को दिल से सोचने की ट्रेनिंग नही दी जाती।  दिल कमज़ोर होता है । कान, आंख और दिमाग बहुत बल शाली होते हैं । 

पीड़ितों के दिल दहल रहे होंगे । योद्धा आड़ में कहीं खड़ा होगा लड़ने के लिए । दुश्मनों से छिपता । या आम लोगों के बीच में अपनी जगह बना लेना ज्यादा मुश्किल तो नही । दो देश लड़ रहे हैं । एक विशाल भीड़ है । लाखों हांथ हैं । एक एलीट क्लास सेना है । जिनके पास हथियार है । 

भीड़ ने आम जन जीवन में इस्तेमाल होने वाले चीजों को हथियार बना लिया । और जख्म में घरलू नुस्खे । इजरायल का गुस्सा समझ आता है । और फिलिस्तीनियों की कैद । पर दोनों तरफ से नृशंस हमले पूरी मानव सभ्यता पर खतरा हैं । युद्ध हमेशा चलनी वाली शै नही है । दोनों (  एक देश है और एक क्षेत्र है ) युद्ध से उभरेंगे । तो त्रासदियों से भरे दिल में कहीं बुद्ध जन्म ले , कहीं गांधी जन्म ले तो कहीं नेल्सन । 

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

प्रिय नाटककार !



प्रिय नाटककार ,

बड़ी ही नज़ाकत से हम आप की परेशानी को खारिज करते हैं । ऐसी परेशानियां हम सब महसूस करते हैं । मुद्रा राक्षसी हंसी लेकर हम सब को दस्ती रहती है। हम छिपाते हैं । जो छिपाते हैं वही काल बन जाता है । नशा काम का हो तो एक बार समझा जा सकता है । मैने आप की अदाकारी देखी है परदे पर । किरदार को ओढ़ना आप को खूब आता है।  आप देखने में एक दम कभी देवा नंद बन जाते हो तो कभी राजेश खन्ना । कभी गुस्सैल, लड़खड़ाते हुए अमिताभ बच्चन वाला रोल आप के जीवन पर आधारित लगता है । 

आप की आर्थिक इंडेक्स के उतार चढ़ाव वाली कहानी रोचक लगती है । या यूं कहें उतार की चढ़ास बे तलब हो लेती है । बहुत नेक दिल हैं आप । पर आप पर आप का नशा सर चढ़ के बोलने लगता है । तब समस्या नाजायज लगने लगती है । 

आप को तो पता होगा पहले कोरोना फिर युद्ध पे युद्ध । ग्लोबलाइजेशन और डिजिटाइजेशन के इस दौर में हमारी जेबें कैसे न प्रभावित हों । पिछले कुछ महीनों से मुझसे मांगने वालों की तादात बढ़ती जा रही है । कुछ को दिया तो वापस नहीं आया । कुछ को वापस न आने समझ दे दिया। बामुश्किल दाल रोटी कमाने वाला भला कितना देगा । 

आप से असमर्थता जता देने के बाद भी आप की मांग मुझे परेशान कर रही है । और मना करना आप के सम्मान को ठेस पहुंचाना साबित होगा । इसलिए आप के बार बार कॉल करने पर भी फोन नही उठाया जा सका । आशा ही नही पूर्ण विश्वास है । कि अब आप मेरा जवाब समझ गए होंगे । पर मांगने के लिए कल कभी जाता नही कहीं । 

मुझे आश्चर्य होता है । जब कोई कलाकार किसी मॉडल शॉप से अपनी किल्लत की दुहाई दे । घर में रोटी न ले जाने का आफोस जताए । 

आप ही के जुबान से मैने आप की नाकामियों को छिपाने के लिए कई झूठ सुने हैं । उन झूठ पर हंस हंस गुलाटियां खाते देखा है । 

आप के भीतर एक अभिनेता, रोज आप की शामों में जागता होगा । सुबह सफेद करने का संकल्प लेता होगा । लेकिन शाम किसी से एडवांस ली गई रकम के धुएं में राख हो चुकी होती है । सुबह ,  शाम के अफसोस के उतार को तलाशती है । मैं बार बार ये अफसोस जाहिर करना चाहता हूं । कि आप की मदद नही कर सकता । हो सके तो मुझे माफ करिएगा । जब कभी इस पत्र से गुजरे तो । अपनी किसी शाम में मुझे शरीक कीजिएगा । 


आप का शुभचिंतक ।

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

इन दिनों मैं लिए घूमता हूं भगवान !



इन दिनों मैं भगवान लाया हूं

कमरे की छोटी सी अलमारी में 

जो लेने गया था बाज़ार में 

वो तो न मिला 

पर फ्रेम वाली फोटो हनुमान की

कांच का शिवलिंग मिला कस्बे में 


अलमारी में 

किताबे भी रखी हैं नई पुरानी

छिपकलियां घूमती हैं जिसमें

दादी की सील चुकी फ्रेम तस्वीर

के पीछे छिप रहती हैं अक्सर


मैं भगवान के साथ

खूब ढेर सारी धूप , अगरबत्ती 

हवन सामग्री , लोबान , गुग्गल, कपूर 

और कुछ ज्यादा ठंडा करने वाला चंदन

टूटी आम की लकड़ियां सुलगाने 

पिछले महीने लिए खाने वाला घी

काम आया हवन में , 

स्थापना के वक्त


इन दिनों मैं रोज सुबह शाम 

धूप जलाता हूं , घी का दीपक जलाता हूं 

अगरबत्ती सुलगाता हूं 

और कुछ नई स्तुतियां गाता हूं 


मैने सीख लिया है हमारे बीच नहीं रहे

पूर्वजों के आगे धूप जलाना 

अन्य भगवानों के लिए दीप जलाना

कुछ आशीष के आकांक्षा लिए 

हांथ जुड़ते हैं , होंठ बुदबुदाते हैं 


इन दिनों जो में काम कर रहा हूं 

ये कई वर्षों से किया जाता रहा है 

मेरे करीबियों के जीवन में 

मेरे मार्गदर्शकों के घरों में 


घर के उस कोने में छिपकलियां 

अब नही आती , 

मच्छर भी धूप धुएं से 

कम हैं पहले से 


इन सारे उपायों के केंद्र बिंदु में 

मन के भीतर से जब भी कोई 

मांग करता हूं


मन भटक जाता है 

मैं , मेरा परिवार , मेरी संपत्ति 

या अमन चैन

से होता हुआ मन

यात्रा करता है 

मणिपुर , यूक्रेन , रूस , इजराइल 


कितना कुछ है मांगने को 

पर मांगना क्यों ? 

ईश्वर मुझसे कहता है 

मांगना क्यों ? 


मैं बंद कर देता हूं पूजा

कस लेता हूं जूते

निकल पड़ता हूं

लंबी यात्रा पर 

इन दिनों मैं 

भगवान लिए घूमता हूं । 


मैं आ रहा हूं ... #imamdasta

  जो सिनेमा हमारे नज़दीक के थिएटर या ओ टी टी प्लेटफार्म पर पहुंचता है । वह हम दर्शकों को तश्तरी में परसा हुआ मिलता है । 150 से लेकर 600 रुपए...