प्रिय नाटककार ,
बड़ी ही नज़ाकत से हम आप की परेशानी को खारिज करते हैं । ऐसी परेशानियां हम सब महसूस करते हैं । मुद्रा राक्षसी हंसी लेकर हम सब को दस्ती रहती है। हम छिपाते हैं । जो छिपाते हैं वही काल बन जाता है । नशा काम का हो तो एक बार समझा जा सकता है । मैने आप की अदाकारी देखी है परदे पर । किरदार को ओढ़ना आप को खूब आता है। आप देखने में एक दम कभी देवा नंद बन जाते हो तो कभी राजेश खन्ना । कभी गुस्सैल, लड़खड़ाते हुए अमिताभ बच्चन वाला रोल आप के जीवन पर आधारित लगता है ।
आप की आर्थिक इंडेक्स के उतार चढ़ाव वाली कहानी रोचक लगती है । या यूं कहें उतार की चढ़ास बे तलब हो लेती है । बहुत नेक दिल हैं आप । पर आप पर आप का नशा सर चढ़ के बोलने लगता है । तब समस्या नाजायज लगने लगती है ।
आप को तो पता होगा पहले कोरोना फिर युद्ध पे युद्ध । ग्लोबलाइजेशन और डिजिटाइजेशन के इस दौर में हमारी जेबें कैसे न प्रभावित हों । पिछले कुछ महीनों से मुझसे मांगने वालों की तादात बढ़ती जा रही है । कुछ को दिया तो वापस नहीं आया । कुछ को वापस न आने समझ दे दिया। बामुश्किल दाल रोटी कमाने वाला भला कितना देगा ।
आप से असमर्थता जता देने के बाद भी आप की मांग मुझे परेशान कर रही है । और मना करना आप के सम्मान को ठेस पहुंचाना साबित होगा । इसलिए आप के बार बार कॉल करने पर भी फोन नही उठाया जा सका । आशा ही नही पूर्ण विश्वास है । कि अब आप मेरा जवाब समझ गए होंगे । पर मांगने के लिए कल कभी जाता नही कहीं ।
मुझे आश्चर्य होता है । जब कोई कलाकार किसी मॉडल शॉप से अपनी किल्लत की दुहाई दे । घर में रोटी न ले जाने का आफोस जताए ।
आप ही के जुबान से मैने आप की नाकामियों को छिपाने के लिए कई झूठ सुने हैं । उन झूठ पर हंस हंस गुलाटियां खाते देखा है ।
आप के भीतर एक अभिनेता, रोज आप की शामों में जागता होगा । सुबह सफेद करने का संकल्प लेता होगा । लेकिन शाम किसी से एडवांस ली गई रकम के धुएं में राख हो चुकी होती है । सुबह , शाम के अफसोस के उतार को तलाशती है । मैं बार बार ये अफसोस जाहिर करना चाहता हूं । कि आप की मदद नही कर सकता । हो सके तो मुझे माफ करिएगा । जब कभी इस पत्र से गुजरे तो । अपनी किसी शाम में मुझे शरीक कीजिएगा ।
आप का शुभचिंतक ।
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