कौन हो तुम
जो समय की खिड़की से
झांक कर ओझल हो जाती हो
तुम्हारे जाने के बाद
तुम्हारे ताज़ा निशान
भीनी खुशबू और
गुम हो जाने वाला पता
महसूस तो होता है
पर तुम्हारा सामना करने की
राह नहीं मिलती
तुम्हारे होने न होने के बीच
का फासला हमेशा धुंधला
ही क्यों होता है ?
कौन हो तुम
जो ठहरना भूल गई हो
हवा से बातें करतीं
पंख फड़फड़ाती उड़ती
उन्मुक्त आकाश में
पहाड़ी सर्द हवाओं पर सवार
ऊंघते जीवन को
झंकृत कर जाती हो !

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