"चेतावनी - यह कहानी केवल वयस्क लोगों के लिए है । कहानी के कुछ प्रसंग एडल्ट की श्रेणी के हैं । कृपया बच्चे या किशोर इसे न पढ़ें । "
निकल जाओ मेरे घर से बाहर . अब तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है . तुम सर पर सवार होने लगी हो . अपनी औकात भूलने लगी हो . ज़रा सा गले क्या लगा लिया . सर पर तांडव करने लगी . नौकरानी हो . नौकरानी रहो . मालकिन बनने की कोशिश मत करो . समझी ... बदतमीज़ .
कुसुम घर आने वाली है . मुझे ज्यादा ड्रामा नहीं चाहिए घर में . समझी तुम ?
सुनीता सब सर झुकाए सुनती रही . और दबे पाँव घर से बाहर निकल गयी .
माधव बिखरे पड़े घर को संभालने लगा . तभी उसका फोन बजता है .
हेलो .. हाँ कुसुम कैसी हो ? आज आ रही हो न ?
नहीं आज नहीं आ पाउंगी . मम्मी कह रही थी . कि उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही है . इसलिए वो चाहती है कि मैं कुछ दिन और रुक जाऊं .
ओके . ठीक है . जब आना तब बता देना . मैं लेने आ जाउंगा . और बाबू कैसा है ?
बाबू ठीक है . खेल रहा है . बात कराऊँ ?
नहीं ! अभी मैं कुछ काम कर रहा हूँ . शाम को कर लूंगा . तुम आराम से मम्मी की देखभाल करो .
ओके कहकर कुसुम ने फोन काट दिया .
माधव फिर से साफ़ सफाई में लग गया . माधव के दिमाग में सुनीता के लिए कही गयी बातों का अफ़सोस बढ़ता ही जा रहा है . घर की साफ़ सफाई करने के बाद . माधव अपने कमरे में ए सी ऑन करके लेट जाता है . उसकी आँख लग जाती है .
दोपहर के 2 बज रहे हैं . घर की डोर बेल बजती है . माधव हडबडा के उठता है . और दरवाज़ा खोलता है . सामने सुनीता फिर से सर झुकाए सामने खड़ी है . माधव इशारे से उसे अन्दर आने के लिए कहता है .
सुनीता सीधे किचन में चली जाती है . माधव अपने कमरे में जाकर वापस लेट जाता है .
सुनीता किचन में गंदे बर्तन धुलती है . धुलने के बाद किचन से आवाज़ लगाती है . बाबू जी क्या बनेगा खाने में ?
माधव का कमरा बंद होने की वजह से सुनीता की आवाज़ें उस तक नहीं पहुचती है . इसलिए वो खुद ही कमरे तक पहुच जाती है . दरवाज़ा धीरे से खटखटाती है .
खुला है . आ जाओ अन्दर सुनीता .
सुनीता अन्दर आती है . और माधव के बेड के पास खड़ी हो जाती है . माधव औंधा लेता हुआ है आँख बंद कर के .
बाबू जी क्या बनेगा खाने में ?
माधव सीधा होकर बैठ जाता है . और सुनीता का हाँथ पकड़ लेता है . सुनीता असहज होती है . पर हाँथ नहीं छुड़ाती है .
सुबह के लिए सॉरी . मुझे तुमसे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी . मुझे मालूम है . तुम एक सीधी सादी लड़की हो . पर जब तुम मुझ पर अपना हक़ जताने लगती हो . तो मुझे डर लगने लगता है . मुझे लगता है कि तुम कुसुम की जगह लेना चाहती हो . और मैं भड़क जाता हूँ .
सुनीता जड़ होकर सब सुनती रहती है . उसकी गर्दन झुकी हुयी है . नज़रें नीचे हैं . सुनीता का हाँथ माधव के हाँथ में है . और पैर जमीन पर ठन्डे रखे हुए हैं . उसकी गर्दन से पसीने की बूँद बहकर सीने में कहीं ढुलक कर गुम हो जा रही है .
सुनीता की चुप्पी को भांप कर माधव भी चुप हो जाता है . वो उठता है . बाहर के दरवाज़ों को बंद होने की पुष्टि करता है . सुनीता मौका पाकर कमरे के बाहर आने लगती है . माधव कमरे की देहरी पर सुनीता को रोक लेता है .
आओ मेरे साथ ! माधव सुनीता का हाँथ पकड़ के उसे कमरे के भीतर लाता है .
नहीं बाबू जी , हाँथ छोडिये मेरा . मुझे खाना बनाना है . लेट हो गयी हूँ . अभी और भी घरों में काम करना है . शाम को कुसुम मैडम भी आ जाएँगी . मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता . उन्हें पता चलेगा तो आप का घर बिखर जाएगा . छोडिये मुझे .
कुछ नहीं होगा सुनीता . जैसा मैं कहता हूँ वैसा करो . कुसुम को कुछ पता नहीं चलेगा . वैसे भी वो कुछ दिनों के बाद आएगी . सुबह बात हुयी थी उससे . तुम आओ मेरे साथ .
सुनीता को कुछ समझ नहीं आ रहा था . कि वो इस स्थिति से कैसे निपटे . उसने मन ही मन हार मान ली . उसके पति को मरे कई साल गुजर गए . वो एक नंबर का पियक्कड़ था . शादी के कुछ ही दिन बाद उसे उसके पति के पीने की आदत का पता चला था . लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी . सुनीता ने घरों में काम करने की आमदनी को अपने पति के इलाज में लगा दिया था . पर न तो वो उसका पीना छुड़ा पायी और न ही उसकी जान बचा पायी . उसे शादी से घृणा हो चुकी थी . शराब की बदबू और दवाओं की बदबू से चिढ हो चुकी थी . पति के न रहने के बाद से उसने किसी तरह से खुद को सम्भाला था . घर वालों के लाख कहने के बाद भी उसने दूसरी शादी नहीं की . और न किसी आदमी के पास गयी कभी . सुबह से लेकर शाम तक घरों में काम करना . और महीने के अंत में पैसे बैंक में जमा करना ही उसके जीवन का अर्थ रह गया था .
माधव के घर पर उसने कुछ महीने से काम करना शुरू किया था . कभी उसके मन में माधव के लिए कोई विचार नहीं थे . मालिक और नौकर के बीच की हदें उसे अच्छे से मालूम हैं . पर माधव का सुनीता के प्रति झुकाव का काट वो नहीं ढूंढ पा रही थी .
माधव सुनीता को अपने कमरे के बाथरूम में ले जाता है . सुनीता चुप रहती है . उसकी बॉडी लैंग्वेज उसके स्वीकार और प्रतिकार की कहानी कहती है . जिसका असर माधव पर तनिक भी नहीं पड़ता .
माधव सुनीता को शावर के नीचे खड़ा करता है . और कहता है .
देखो ! तुम एकदम परेशां मत होना . मैं तुम्हे एक दिन के लिए इस घर की मालकिन बनाना चाहता हूँ . मुझे मालूम है . तुमने जीवन में कितने कष्ट झेले हैं . तुम एक अच्छी लड़की हो . इसलिए मैं तुम्हे एक दिन के लिए ही सही . तुम्हे मालकिन होने का एहसास कराना चाहता हूँ . तुम अच्छा महसूस करोगी . मैं जैसा कहता हूँ वैसा करती जाओ . सुनीता एक दम सीधी खड़ी माधव को सुन रही है . नज़रें झुकाए .
माधव सुनीता के चेहरे से बालों को हटाते हुए पीछे की तरफ बाँध देता है . उसके कन्धों को दोनों हांथो से पकड़ कर उसे ढाढस बंधाता है . उसकी झुकी गर्दन को सीधा करता है . उसकी आँख में आँख मिला कर देखने के लिए कहता है . सुनीता सब कुछ वैसे ही करती जाती है . जैसा माधव करवाना चाहता है .
माधव के हाँथ सुनीता की कमीज के बटन खोलते हैं . सुनीता की देह चट्टान की तरह सख्त हो जाती है . और आँखे बंद हो जाती हैं . चेहरा लाल हो जाता है . देह का तापमान बढ़ने लगता है . माधव सुनीता की कमीज निकाल के बाथरूम की खूंटी पर टांग देता है . सुनीता के सामने घुटनों के बल बैठ के माधव उसकी सलवार के नाड़े को खोलने लगता है . सुनीता का हाँथ उसके नाड़े को कसके जकड लेता है . माधव झट से अपना हाँथ हटा लेता है . कुछ सेकंड के बाद फिर से माधव धीरे धीरे सुनीता का हाँथ नाड़े से हटाता है . इस बार सुनीता की पकड़ ढीली हो जाती है . नाड़े के खुलते ही सुनीता की सलवार जमीन पर ढह जाती है . माधव सुनीता के घुटने के नीचे पैर को पकड़ के हलके से उठाता है . बारी बारी से दोनों पैर हवा में उठ कर नीचे जमीन पर गिरते हैं . माधव सलवार को उठा कर खूंटी पर टांग देता है . सुनीता की आँखें अभी भी बंद हैं . सुनीता का शरीर एकदम जड़ है . जैसे उसमें जान न हो .
माधव सुनीता को घुमा के उसकी लाल ब्रा के हुक खोलता है . और उसे उसके शरीर से अलग कर देता है . सुनीता के दोनों हाँथ स्वतः उसके स्तनों को ढँक लेते हैं . माधव उसे फिर से सीधा मोड़ देता है . माधव फिर से घुटने के बल बैठ के सुनीता की काली पैंटी को धीरे धीरे नीचे सरका कर अलग कर देता है . सुनीता की आँखें और अन्दर धंस जाती है . सुनीता का एक हाँथ उसके स्तनों को ढँक रखा है दूसरा उसके जननांग को छुपाये हुए है .
माधव फिर से सुनीता के सामने खड़ा हो जाता है . उसके कन्धों को पकड़ता है . और हल्का सा दबाता है . जैसे माधव सुनीता को उसके सुरक्षित रहने की दिलासा दे रहा हो .
माधव शावर को चलाता है . शावर की बौछारे सुनीता के चेहरे पर पड़ने लगती है . सुनीता के दोनों हाँथ उसके चेहरे पर पड़ रही बौछारों को समेटने लगते हैं . सुनीता की देंह शावर की बौछारों से मचलने लगती है . कुछ छीटें माधव के ऊपर भी पड़ती है . माधव सुनीता को देखता रहता है . उसके शरीर पर पड़ती पानी की बुँदे उसके सारे कष्ट जैसे धुले दे रही हों . सुनीता का शरीर पूरी तरह से तरबतर होते ही शावर बंद हो जाता है . माधव शावर जेल से सुनीता की देंह को मलता है . धीरे धीरे शावर जेल के झाग से सुनीता का शरीर ढँक जाता है . और शावर के खुलते ही झाग बह जाता है . माधव हलके हलके हांथों से सुनीता को नहलाता है . माधव के हाँथ सुनीता के पूरे शरीर पर रेंगते हैं . सुनीता अब बिलकुल भी असहज नहीं थी . और वह इन पलों को इत्मीनान से , खुल के जी रही थी . माधव सुनीता के शरीर को तौलिये से थपथपा के पोछता है . और उसको आदर सहित कमरे में बेड पर बैठालता है .
माधव इतनी देर में पहली बार बोलता है .
कैसा लगा ?
सुनीता मुस्कुरा देती है .
माधव कुसुम की अलमारी से उसके कपडे निकालता है . कुसुम के महंगे इनर वियर सुनीता को पहनाता है . और कुसुम का सबसे पसंदीदा सलवार सूट सुनीता को पहनाता है . महंगा परफ्यूम छिड़कता है . सुनीता को कुसुम के ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठाल कर उसे मनचाहा मेक अप करने की इजाजत देता है . और वह खुद बाथरूम में नहाने चला जाता है .
सुनीता खुद को शीशे में निहारती है . और अपनी दुनिया से निकल कर दूसरी दुनिया में पाकर खूब खुश होती है . फेसिअल क्रीम , काजल , और डार्क कत्थई रंग की लिपस्टिक लगा कर अपने बालों को सुलझाती है . अच्छे से तैयार होकर सुनीता बेड पर आराम से बैठ जाती है . उसे जितना इस पल को जीने में मज़ा आ रहा था . उससे कहीं ज्यादा इस पल के ख़त्म होने का डर भी सता रहा था .
माधव बाथरूम से नहा के बाहर निकलता है . सुनीता को देख कर वो दंग रह जाता है . वो कुसुम से कहीं ज्यादा खूबसूरत नज़र आ रही थी . सांवलापन इतना खूबसूरत हो सकता है उसे यकीन नहीं हो रहा था .
क्या मैं तुम्हारी तस्वीर खींच सकता हूँ ? माधव सुनीता के सामने बैठ के पूछता है .
सुनीता मुस्कुराती है .
डरो नहीं , मैं तुम्हारी तस्वीर खींच के तुम्हे भेज दूंगा . और अपने फोन से डिलीट कर दूंगा . मुझे बवाल नहीं चाहिए बाद में .
सुनीता हाँ में सर हिलाती है . माधव रौशनी के सामने उसकी तस्वीर खींच कर सुनीता को भेज देता है .
अब चलें खाना बनाएं चल के . सुनीता इस यू टर्न से स्तब्ध थी . और कहती है . मैं बनाती हूँ आप के लिए खाना . आप क्यूँ तकलीफ लेंगे .
माधव ने कहा नहीं हम दोनों साथ में खाना बनायेंगे . और खायेंगे . उसके बाद तुम चली जाना .
माधव लिविंग एरिया में रखे साउंड सिस्टम पर धीमी आवाज़ में म्युज़िक बजाता है . और दोनों लोग खाना बनाने लगते हैं .
तभी डोर बेल बजती है .
माधव इरिटेट होकर किचन से ही चिल्लाता है . कौन है ?
डोर बेल दोबारा तिबारा बजती है .
माधव , सुनीता से खाना बनाना जारी रखने कहकर दरवाज़ा खोलने चला जाता है . माधव दरवाज़ा खोलता है . सामने कुसुम और बाबू को देख कर माधव के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती है . वो दरवाज़ा खोल कर दौड़ता हुआ किचन की तरफ जाता है . और सुनीता से कहता है कुसुम आ गयी . सुनीता के आँखों से आंसू बहने लगते हैं .
कुसुम सुनीता को किचन में उसके कपड़ों में देख कर दंग रह जाती है . तुम मेरे कपड़ों में क्या कर रही हो ? कुसुम चीखती है . माधव कुसुम का हाँथ पकड़ कर अपने कमरे में ले जाता है . और कहता है आओ मैं तुम्हे सब बताता हूँ . उससे कुछ मत कहो .
कुसुम कमरे में पहुचते ही , माधव की कॉलर पकड़ कर उसे झकझोरती है . ये क्या चल रहा है घर में . माधव कुसुम को बेड पर बैठने के लिए कहता है . और कमरे का दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लेता है . जिससे उनकी आवाज़ बाहर न जा पाए . कुसुम का पारा सातवे आसमान पर चढ़ जाता है . वो अपने कमरे में सुनीता के निशाँ ढूँढने लगती है . और माधव से चीख चीख कर जवाब मांगती है . पर माधव को कुछ भी बताने का मौका नहीं देती है . कुसुम झुंझलाई हुयी पूरे कमरे में घुमती है . और फिर बाथरूम में जाती है . जहां सुनीता के कपडे खूंटी पर टंगे हुए देखती है . वो सारे कपडे उठा उठा के बाथरूम के बाहर कमरे में फेंक देती है .
छि ... तुम इतने गिरे हुए हो सकते हो . मुझे पता ही नहीं था . मेरी अब्सेंस में तुम सुनीता के साथ ऐयाशी कर रहे हो ?
माधव कुसुम के पीछे पीछे सॉरी , प्लीज़ प्लीज़ कहता घूम रहा है . पर वो कुसुम को कुछ भी समझा नहीं पा रहा है . कुसुम दरवाज़ा खोल के बाहर आ जाती है . सुनीता के इनर वियर लाकर उसके मुंह पर फेंकती है . बदतमीज़ तुम्हे शर्म नहीं आई ये सब करते हुए ? खुद को मालकिन समझ बैठी मेरे न रहने पर . सुनीता रोये जा रही थी . उसके पास अपनी सफाई में कुछ भी कहने सुनने के लिए बचा नहीं था .
कुसुम बाबु का हाँथ पकड़ कर अपना सामान लेकर घर से बाहर निकल जाती है . माधव उसके पीछे पीछे बाहर तक आता है . पर कुसुम के सर पर गुस्सा सवार था . और वह चली जाती है . कुसुम के बाद सुनीता उन्ही कपड़ों में खाना बनाना बीच में छोड़ कर बाहर चली जाती है . माधव सर पकड़ के लिविंग एरिया में बैठ जाता है .
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