शहर की तंग गलियों से एक लाल रंग की स्कूटी सुबह से नाच रही है .कभी भीड़ भाड़ इलाके में व्यस्त सड़क . तो कभी अनजान गलियों की नयी पहचान की खुशबु में लाल रंग की स्कूटी भटक रही है . बारिश का महीना, तरबतर सड़क , जलभराव से संकरी होती गलियों में वो लाल रंग की स्कूटी गुम हो जाना चाहती थी .
बारिश तेज़ होने लगती है . स्मिता सोचती है कि चाय की टपरी में रुक के चाय पी जाए . भईया किसी चाय की अच्छी सी टपरी पर रोक लीजिएगा . एक फीकी चाय पीने का मन कर रहा है . रेड कलर की एस यू वी अटल चौक पर रूकती है . कार की पीछे सिकचे से शीशा धीरे स्वतः खुलता है . स्मिता काला चश्मा उतारते हुए . चाय वाले को एक चाय का आर्डर देती है . 2 मिनट के इंतज़ार के बाद कुल्हड़ में चाय सिकचे के पास आती है . स्मिता बड़े ही संभाल के चाय का कुल्हड़ पकडती है . और पहला सिप लेती है .
चाय तो अच्छी है , ड्राइवर भईया ! आप लेंगे ?
नहीं मैडम ! हम पी कर आये थे .
स्मिता पैसे देती है . और शीशा बंद कर लेती है .
तेज़ बारिश में लाल स्कूटी फर्राटा भरते हुए आती है . और कार के पीछे धाड़ से एक जोरदार टक्कर होती है . चाय की टपरी के सारे लोग और सड़क के राहगीरों का ध्यान इस घटना ने खींच लिया था .
कार से ड्राइवर उतर के आया . कार के थोड़े मुड़े बम्पर ने ड्राइवर का आधा गुस्सा ठंढा कर दिया था . क्या भईया आप को दिखाई नहीं देता ? इस बात का समर्थन करते हुए कुछ और लोगों ने भी इसी बात को दोहराया . वहाँ का वातावरण बढ़ता ही जा रहा था .
लाल स्कूटी पर सवार एक गठीला नवयुवक अपनी स्कूटी को संभालता है . स्टैंड पर खड़ी करता है . और हेलमेट निकालते हुए . ड्राइवर से और सभी लोगों की तरफ देख के सॉरी कहने लगता है . लाल स्कूटी का आगे वाला मडगार्ड में थोड़ा डेंट था . बाकी किसी भी प्रकार चोट किसी को नहीं आई .
अरे भईया इन सब को एक एक चाय पिलाना मेरी तरफ से . आप सभी से मैं माफ़ी माँगता हूँ . आगे से ध्यान रखूंगा . असल में मेरे हेलमेट के वाइज़र पर बारिश की बूँदें आ रही थीं . तभी अचानक सड़क के आधे किनारे खाड़ी गाड़ी से टक्कर हो गयी . न पार्किंग डिपर और न ही कोई रुके होने का चिन्ह .
कार से इस पूरे प्रकरण को ध्यान से देख रही स्मिता कार से उतरती है . और सीन में घुस जाती है .
देखिये आप लोग , मेरा कुर्ता खराब हो गया है . गर्म चाय के गिरने से मैं कई जगह जल गयी हूँ . और ये बदतमीज़ कहानी बता रहा है यहाँ . और आप सब को चाय पिला कर बचना चाहता है .
मैम मेरा नाम समीर है . मैं एक जर्नलिस्ट हूँ . बारिश में शहर के जलभराव की रिपोर्ट कवर करनी थी . कुछ तस्वीरें निकालनी थी . तब तक तेज़ बारिश आ गयी . हेलमेट में कुछ दिखाई नहीं दिया . और आप की कार से टक्कर हो गयी . आप अपनी गाड़ी चेक कर लीजिये , कोई ख़ास नुक्सान नहीं हुआ है . मेरी स्कूटी और आप की कार का बराबर नुक्सान हुआ है . फिर आप के कार में पार्किंग लाईट भी नहीं जल रही थी .
दोनों में कुछ देर बेहेस होती है . स्मिता और समीर दोनों ही पढ़े लिखे हैं इसलिए बहस स्तर हीन कभी नहीं हुयी . लेकिन हाँ बहस बिना हार जीत के ख़त्म हुयी .
स्मिता अपने कुरते को साफ़ करती है . और बाहर बारिश में खड़ी हो जाती है . ड्राइवर दौड़ के आता है . स्मिता कहती है भईया अब जब भीग लिए हैं तो थोड़ा और भीग लूँ . जलन कम पड़ जायेगी . ड्राइवर फिर से टपरी के नीचे चला जाता है . स्मिता कुछ देर पानी से तरबतर हो जाती है .
अन्दर से समीर की आवाज़ आती है .
अरे मैम , ज्यादा मत भीगिए तबियत खराब हो जायेगी .
स्मिता झेंप के टपरी के नीचे आ जाती है . टपरी के नीचे हो रहे ठहाके शांत हो जाते हैं .
स्मिता पूरी , नीचे से ऊपर तक भीगी हुयी थी . टपरी के नीचे ज्यादा जगह न होने के कारण स्मिता बाहर की ही तरफ खड़ी थी .
टपरी में सभी की नज़र स्मिता पर थी . बारिश के शोर में पूरी टपरी में सन्नाटा .
समीर इस सन्नाटे को ख़त्म करते हुए स्मिता से एक और चाय के लिए आग्रह करता है .
स्मिता पलट के एक चाय का इशारा टपरी वाले भईया से करती है .
मैम यहाँ बैठ जाइए . हम लोग आप के लिए जगह बना देते हैं .
स्मिता फिर एक बार पलट के बोली नहीं मैं यहीं ठीक हूँ . मैं भीगी हूँ इसलिए आप लोगों के बीच अच्छा नहीं लगता .
स्मिता की चाय उस तक पहुचती है . साथ ही समीर भी एक और चाय लेने उसके पास पहुचता है . समीर को स्मिता के साथ वही चाय मिल जाती है .
टपरी के नीच बाकी के लोग अब थोड़ा सहज महसूस करते हैं .
समीर स्मिता से पूछता है . क्या आप वाकई बहुत ज्यादा जल गयी हैं ?
स्मिता : हाँ ! वो वाकई बहुत तगड़ा झटका था या सिर्फ मुझे ही लगा . मैं जस्ट चाय की पहली दूसरी सिप ली थी . और झटके में खुद को संभाल नहीं पायी . सब चाय मेरी गोद में गिर गयी . पहला ज्यादा जल रहा था . बारिश में भीगने के बाद कुछ आराम है .
समीर : सॉरी ! ये तो अच्छा हुआ कि जान माल का नुक्सान नहीं हुआ . वरना लेने के देने पड़ जाते . एक्सीडेंट वही अच्छे होते हैं जिनसे कम नुक्सान में बड़ी सीख मिल जाए . करती क्या हैं आप ?
मैं भी मीडिया में हूँ . स्मिता कॉन्फिडेंस के साथ कहती है .
समीर : ओह ! किस मीडिया में ?
स्मिता : क्यों ? क्या करना है आप को ?
समीर : नहीं नहीं पूछा आप से बस ! मैं भी मीडिया में हूँ . इसलिए शायद पुच लिया मैंने आप से . भाई बंदी में .
स्मिता : हाँ मैं एक कॉर्पोरेट पब्लिकेशन हाउस के लिए काम करती हूँ . आज ऑफ था . तो सोचा शहर के चक्कर लगाऊं . और फिर बारिश भी आ गयी . मेरा दिन बन गया था . पर ..... स्मिता खीज के फिर समीर से पूछती है . क्या आप को वाकई में नहीं दिखा था ? But that was extremely shocking !
समीर : आप शायद ध्यान में कहीं खो गयी होंगी . ध्यान में हलके झटके भी बहुत तेज़ से लग जाते हैं .
स्मिता ने मुंह सिकोड़ते हुए नंब नोट्स दिए
बारिश कम होने लगी थी . स्मिता के कपडे भी कुछ हद तक सूखने लगे थे .
स्मिता काउंटर पर पैसे देने पहुची . तो समीर ने पैसे देने से किसी तरह स्मिता को रोक लिया . दोनों टपरी के बाहर आये .
स्मिता अपनी कार में बैठ गयी . पीछे से स्मिता का ड्राइवर भी आ गया .
समीर अपनी हेलमेट पहन के अपनी स्कूटी स्टार्ट करने लगता है . पर वो स्टार्ट नहीं हो रही है .
स्मिता ने किसी बहाने से अपनी कार रुकवा रखी थी और रियर मिरर में समीर की स्कूटी न स्टार्ट होना देख रही थी .
स्मिता ने ड्राइवर को भेज के स्कूटी स्टार्ट करने में मदद के लिए कहा .
पर स्कूटी स्टार्ट होने से रही .
स्मिता ने ऑनलाइन बाइक वाला से सर्विस कॉल की . कुछ मिनटों में एक मैकेनिक आ गया . और वह स्कूटी रिपेयर करने लगा .
स्मिता ने अपने ड्राइवर को चलने को बोला .
तब तक समीर दौड़ के आ गया . क्या वो मैकेनिक आप ने बुलाया . समीर ने मुस्कुराते हुए पूछा .
स्मिता : जी हाँ ! पर उसका बिल आप ही देंगे . मीडिया वाले हो कर भी इतना स्मार्ट न हुआ तो क्या हुआ ! मुझे लगा कि आप उसे घसीट के ले जायेंगे . मेरे पास कांटेक्ट था . इसलिए सर्विस कॉल की . चलिए कोई बात नहीं . टेक केयर ! भईया चलिए ...
समीर : ओके ... ! एक सेकंड ... क्या आप का कांटेक्ट नंबर मिलेगा कोई ?
स्मिता : हाँ ! देती हूँ . उसने एक नेम कार्ड अपनी पर्स से निकाल के दिया . स्मिता खन्ना , प्रिंसिपल कोरेस्पोंडेंट आई बी आई नेटवर्क इंडिया . और कांटेक्ट नंबर .
समीर : थैंक यू और एक बार फिर से सॉरी .
स्मिता इट्स ओके कह कर चली गयी .
समीर की स्कूटी बन चुकी थी . उसने टपरी के नीचे एक और चाय का आर्डर दिया . कार्ड को बहुत देर तक देखता रहा . उसके दिमाग में पूरा घटना क्रम क्रमबद्ध तरीखे से चल रहा था . नाम , नंबर और काम जान के समीर के चेहरे पर मुस्कान की हंधी हवाएं चलने लगी .
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