समझ कर बात आंखों की
मैं तुमसे दूर जाती हूं
सुबक कर शाम यादों की
मैं तुमको भूल जाती हूं
समझ कर बात आंखों की ...
जमीं का यूं फिसलना
और ठहर जाना कहीं पर
खुदी का यूं संभलना
और मचल जाना कहीं पर
धधक कर राख सांसों की
मैं खुद को ही जलाती हूं
समझ कर बात आंखों की
मैं तुमको भूल जाती हूं ।
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